माइक्रोफाइनेंस: आर्थिक आज़ादी की चाबी

स्वयं सहायता समूह इस माइक्रो क्रेडिट के सबसे बड़े ग्राहक हैं. माइक्रोफाइनेंस से अनगिनत महलाओं और समुदायों को आर्थिक स्थिरता, पूंजी तक पहुंच और आर्थिक आज़ादी हासिल करने में मदद मिली.

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मिस्बाह
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आर्थिक आज़ादी, महिलाओं के मिलने वाले अवसरों के दरवाज़े खोलती हैं. ख़ुद के फैसले लेना, परिवार को बेहतर भविष्य दे पाना, अपनी ज़रूरतों को पूरा करना, पारिवारिक और सामाजिक फैसले ले पाना.  ये सब तभी मुमकिन है जब आर्थिक आज़ादी मिले. इस आज़ादी को पाने का एक ज़रिया हैं रोज़गार. महिलाओं की आर्थिक आज़ादी से केवल इनके घर को ही नहीं बल्कि पूरे देश की इकॉनमी को फायदा मिलता है. ज़रा सोचिये, ये आधी आबादी अगर पैसे कमाना शुरू करदे तो सकल घरेलु उत्पाद (GDP) में कितना योगदान मिलेगा. माइक्रोफाइनेंस इंस्टीट्यूशन महिलाओं को अपना रोज़गार शुरू करने में अहम भूमिका निभा रहे हैं . इनसे छोटा उधार लेकर महिलाएं अपना बिज़नेस शुरू करती हैं. काम बढ़ने पर और भी महिलाएं इस से जुड़ती हैं. 

स्वयं सहायता समूह इस माइक्रो क्रेडिट के सबसे बड़े ग्राहक हैं. माइक्रोफाइनेंस से अनगिनत महलाओं और समुदायों को आर्थिक स्थिरता, पूंजी तक पहुंच और आर्थिक आज़ादी हासिल करने में मदद मिली. पूरी दुनिया की सफलता संयुक्त राष्ट्र (UN) के 17 सतत विकास लक्ष्य (SDGs) पर टिकी है. हालांकि, जब तक महिलाएं आर्थिक रूप से सशक्त नहीं होंगी, तब तक इन SDGs को हासिल करना  मुश्किल है. SDG के लक्ष्य 5 का गोल ऐसे समाज बनाना है जहां सभी को अपने सपनों और आर्थिक आज़ादी हासिल करने के समान अवसर हों. महिलाओं को इसे हासिल करने में मदद करने का एक तरीका उन्हें फाइनेंशियल रिसोर्सेस तक पहुंच देना है, जो पहले के समय में भेदभाव की वजह से हासिल करना मुश्किल था.

इन फाइनेंशियल रिसोर्सेस तक पहुंच होने पर महिलाओं की सामाजिक-राजनैतिक स्थिति में सुधार आता है. वे स्वास्थ्य, पोषण और साक्षरता पर खर्च कर अपने लिविंग स्टैंडर्ड को सुधारती हैं. स्वयं सहायता समूह से जुड़कर महिलाओं ने ख़ासकर ग्रामीण महिलाओं ने मइक्रोक्रेडिट की मदद से रोज़गार शुरू किया. इससे उनकी सामाजिक और राजनीतिक स्थिति के साथ-साथ उनके आर्थिक अवसरों में सुधार आया. इसके अलावा, वित्तीय समावेशन (फाइनेंशियल इन्क्लूजन) ने कई महिलाओं को बैंकिंग सेवाओं, सरकारी योजनाओ, और बीमा स्कीमों से जोड़ा. 

सरकार, नाबार्ड, जीविका मिशन, बैंकों और माइक्रोफाइनेंस संस्थानों ने कई महिलाओं को वित्तीय शिक्षा (फाइनेंशियल लिट्रेसी), आसान लोन और पूंजी तक आसान पहुंच दिलाई. माइक्रोफाइनेंस संस्थान (एमएफआई) आमतौर पर महिलाओं को उधार देने की अधिक संभावना रखते हैं क्योंकि उनके पास पुरुषों की तुलना में बेहतर पुनर्भुगतान (रीपेमेंट) इतिहास होता है, जो इन कंपनियों के लिए क्रेडिट जोखिम को कम करने में मदद करता है. माइक्रोफाइनेंस आर्थिक प्रणाली का एक अहम हिस्सा है, जो कम आमदनी वाले परिवारों को लोन, बीमा और फाइनेंशियल लिट्रेसी जैसी सेवाएं देते हैं. इन संस्थानों के साथ से स्वयं सहायता समूह आज देश भर में आर्थिक क्रांति ला रहे हैं. 

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