माइक्रोफाइनेंस में ग्रामीण महिलाओं के जीवन को बदलने की अपार क्षमता है. ग्रामीण महिलाओं की आर्थिक आज़ादी का सपना जुड़ा हुआ है SHG से. आज देशभर में जो विकास की बात चल रही है वह तभी सबके लिए और सबके साथ होगा जब फिनेंशिअल इन्क्लुशन यानि आर्थिक रूप से सबको साथ में आगे बढ़ाया जाए. इसके लिए ज़रूरी है 'वित्तीय समावेशन' गवर्मेंट पॉलिसी का हिस्सा बने. सरकार भी अब आजीविका मिशन के साथ जन-धन योजना, सामाजिक पेंशन, बीमा, डीबीटी और माइक्रोफाइनेंस जैसे कार्यक्रमों के साथ यह करने की कोशिश में है.
माइक्रोफाइनेंस की बड़ी कोशिश स्वयं सहायता समूह बैंक लिंकेज प्रोग्राम (SHG-BLP) के साथ शुरू हुई, जो 1989 में नाबार्ड द्वारा शुरू किए गए MYRADA के एक्शन रिसर्च प्रोजेक्ट से निकला था. SHG क्रांति में मुख्य रूप से महिलाएं क़रीब 90% शामिल हैं. छोटे जमा खाते और छोटे ऋण के लिए बैंकों के साथ समूहों को जोड़ने की आरबीआई की इस पहल ने एसएचजी-बीएलपी को एक वास्तविकता बना दिया.
500 SHG को बैंकों से जोड़ने के एक मामूली लक्ष्य के साथ शुरू किया गया यह कार्यक्रम आज दुनिया का सबसे बड़ा माइक्रोफाइनेंस प्रोग्राम है जिसमें 129 लाख SHG बैंक से जुड़े हुए है और लगभग 1,81,500 करोड़ रुपये के ऋण के साथ काम कर रहे है . एसएचजी-बीएलपी कार्यक्रम ; गैर सरकारी संगठनों, सरकार और बैंकों की ताकत को महिलाओं को सशक्त बनाने में लगता है.
दक्षिण और पूर्व भारत के राज्य एसएचजी-बीएलपी में सबसे आगे है. SHG-BLP के तहत, 8.4 करोड़ महिलाओं ने औसतन प्रति सदस्य लगभग ₹21,600 का ऋण लिया है. यदि हम पांच दक्षिणी राज्यों को छोड़ दें, तो प्रति सदस्य ऋण बकाया घटकर ₹12,300 रह जाता है, जो इस कार्यक्रम में क्षेत्रीय असमानताओं को उजागर करता है. माइक्रोफाइनेंस ने 2000 के दशक की शुरुआत में अपना रंग बदल दिया, जिसकी शुरुआत दक्षिण भारत से हुई, जहां एसएचजी-बीएलपी शुरू हुआ और अभी भी जीवंत है, मुख्य रूप से माइक्रोफाइनेंस इंस्टीट्यूशंस (एनबीएफसी-एमएफआई) के आगमन के साथ. सभी माइक्रोफाइनेंस का सकल ऋण पोर्टफोलियो 6.4 करोड़ के साथ लगभग ₹3.2 लाख करोड़ है. एसएचजी-बीएलपी के तहत सदस्य व्यक्तिगत बचत, नियमित समूह बैठक और सदस्यों के बीच इंटर-लेंडिंग के बाद ही बैंकों से ऋण प्राप्त कर सकते हैं.
कई एक्सपर्ट्स का मानना है कि एसएचजी-बीएलपी भारत के लिए उपयुक्त मॉडल है, क्योंकि सरकार द्वारा दी जाने वाली ब्याज सहायता और कम ब्याज दर वसूली जाती है. लेकिन एसएचजी-बीएलपी के तहत दिए ऋण की राशि छोटी होती है और एमएफआई से जल्दी और बड़े ऋण की तुलना में ऋण प्रक्रिया थोड़ी लंबी है. इसलिए धीरे-धीरे एमएफआई ज़्यादा प्रचलित हो रहे हैं. SHG-BLP सही तरीके से रुपये तक पहुँचने के लिए सामाजिक उद्देश्यों के साथ शुरू हुआ, MFI ने धीरे-धीरे इस आंदोलन को एक कमर्शियल मैनेजमेंट में बदल दिया.
भारत जैसे विशाल देश में कई माइक्रोफाइनेंस मॉडल की ज़रुरत है. ग्राहकों की जरूरतों को ध्यान रखते हुए ज़रूरी बदलाव करने होंगे. एसएचजी-बीएलपी पर निगरानी, फेडरेशन बनाना , ब्याज की धीरे वापसी एसएचजी-बीएलपी को लचीला बना सकती है. जब एमएफआई ग्राहक पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो क्षमता निर्माण, सलाह, प्रौद्योगिकी के उपयोग, अधिक उत्पादक ऋण जारी करने, नियामक मानदंडों के अनुपालन के साथ, मुनाफे को बढ़ाएगा.
एनसीएईआर के अनुसार, माइक्रोफाइनेंस लगभग 130 लाख नौकरियों और हमारे जीवीए का 2 प्रतिशत योगदान देता है. इसमें सभी 6.3 करोड़ गैर-कृषि उद्यमों तक पहुंचने की क्षमता है. माइक्रोफाइनेंस का भविष्य सभी माइक्रोलोन्स को औपचारिक क्षेत्र में ले जाना बैंकों (एमएफआई) के माध्यम से संभव है.
माइक्रोलोन्स को आगे बढ़ाना होगा
माइक्रोफाइनेंस की बड़ी कोशिश स्वयं सहायता समूह बैंक लिंकेज प्रोग्राम (SHG-BLP) के साथ शुरू हुई, जो 1989 में नाबार्ड द्वारा शुरू किए गए MYRADA के एक्शन रिसर्च प्रोजेक्ट से निकला था. SHG क्रांति में मुख्य रूप से महिलाएं क़रीब 90% शामिल हैं.
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