आरंभ से आज... SHG के साथ NABARD

SHG की महिला आर्थिक आज़ादी की क्रांति को शुरू हुए 30 साल हो गए हैं. आज SHG को आगे बढ़ाने का श्रेय NABARD जैसे संस्थानों को भी जाता है. महिला को देश, समाज और घर पर स्थान दिलाने वाले SHG आंदोलन के प्रारंभ से लेकर आज प्रणेता के रूप में NABARD मौजूद है.

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NABARD

2023 SHGs के लिए सबसे महत्वपूर्ण साल है. जहां 2023 के बजट में और G 20 के कोर एजेंडा में सरकार SHG के सशक्तिकरण पर ज़ोर दे रही है वही इस महिला आर्थिक आज़ादी की क्रांति को शुरू हुए 30 साल हो गए हैं. किसी भी सामाजिक और आर्थिक क्रांति के लिए 30 साल का वक़्त भले ही छोटा है लेकिन इन 30 सालों में 81 लाख SHGs देशभर में बनाए गए हैं जिनमें से 84% महिला सदस्य हैं. ग्रामीण विकास के उद्देश्य से शुरू हुआ ये सफर आज ग्रामीण अंचल की महिलाओं के सशक्तिकरण का सबसे कारगर माध्यम बन चूका है.

भारत में SHG को अनूठा स्वरूप मिला और यह मुहीम विश्व की सबसे बड़ी माइक्रोफाइनेंस प्रोग्राम के तौर पर पूरी दुनिया में छा गई. कैसे हुई इस सफर की शुरुआत ?  कैसे हासिल किया भारत ने यह मुकाम ? यह तो बहुत लंबी दास्तान हो जाएगी लेकिन SHG क्रांति को भारत में खड़ा करने में NABARD ne महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.  

1982 का वो साल जब 'नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चरल एंड रूरल डेवलपमेंट' उर्फ़ NABARD को स्थापित किया गया. NABARD  का उद्देश्य था ग्रामीण इलाकों की आर्थिक स्थिति में बदलाव लाना. इस मिशन को मद्देनज़र रखते हुए वर्ष 1992 में NABARD ने 'सेल्फ हेल्प ग्रुप-बैंक लिंकेज प्रोग्राम' की शुरआत की. इस 'SHG - BPL' मॉडल का मुख्य लक्ष्य गांवों और कस्बों को आर्थिक रूप से मज़बूत करने के लिए SHGs को बैंको से जोड़ना है. 

500 SHGs से शुरू हुआ यह सफ़र देखते ही देखते 81 लाख SHGs में तब्दील हो गया. जिसने देश के 10 लाख घरों को समर्थ और सक्षम बनाया. इस माइक्रोफाइनेंस प्रोजेक्ट की सफलता के पीछे का राज़ जानने के लिए कई सारे रिसर्च पेपर्स और थीसिस लिखे गए.  रिसर्च से पता चला की  'SHG - BPL' प्रोग्राम अपने 'कॉस्ट-इफेक्टिव मैकेनिज्म' के कारण आसानी से गरीब से गरीब तबके के लोगों तक आर्थिक सेवाएं उपलब्ध करवा पाता है. इतना ही नहीं माइक्रोफाइनेंस की दुनिया में आया यह बदलाव NABARD और अनेक संघठनो के सामूहिक प्रयासों का नतीजा है.

कई NGOs ने 'सेल्फ हेल्प ग्रुप प्रमोटिंग इंस्टीटूशन' (SHPI) की भूमिका निभाते हुए SHGs को बैंको से जोड़ने में मदद की. NGOs की इस पहल से प्रेरित होकर NABARD ने भी 'सेल्फ हेल्प ग्रुप प्रमोटिंग इंस्टीटूशनस ' (SHPI) बनाना शुरू कर दिये.  SHPI से जुड़ने  के लिए  NABARD ने  ग्रामीण वित्तीय संस्थानों, फार्मर क्लब , इंडिविजुअल रूरल वालंटियर्स को 'प्रोत्साहन अनुदान सहायता' देना शुरू किया. SHGs के साथ मिलकर काम कर रहे बैंको को  100% पुनर्वृत्ति भी दी गयी. 

स्वसहायता समूह बनाने के बाद SHG सदस्यों के लिए ट्रेनिंग वर्कशॉप्स, सेमिनार्स आयोजित किये गए. समूह की महिला सदस्यों को रोज़गार दिलवाने के लिए उन्हें नाबार्ड माइक्रो एंटरप्राइज डेवलपमेंट प्रोग्राम और लाइवलीहुड - एंटरप्राइज डेवलपमेंट प्रोग्राम्स से जोड़ा गया. SHGs में समय - समय पर  उभरने वाली मुश्किलों को सुलझाने के लिए नाबार्ड ने  ग्रुप सेविंग्स , जॉइंट लायबिलिटी ग्रुप्स का गठन , केश क्रेडिट का सैंक्शन जैसे बदलाव जारी किये. 

कोरोना काल में SHGs का काम रुके नहीं इसलिए 'इ-शक्ति ' प्लेटफार्म का भी गठन किया गया. वही SHGs ने भी मास्क्स और सांइटिज़ेर्स बनाकर NABARD के पिछले ३० सालों की मेहनत को सरकार और समाज के सामने प्रस्तुत किया. उस विषम काल में SHG और NABARD की महत्ता को देश दुनिया ने न केवल समझा बल्कि कोरोना काल के बाद SHG को प्रोत्साहित भी किया.

आज SHG को आगे बढ़ाने का श्रेय सरकार के साथ NABARD जैसे संस्थानों को जाता है. SHG क्रांति की रीड की हड्डी बैंक लिंकेज प्रोग्रम की शुरुआत जहां NABARD ने करी वहीं कैटालिटिक केपिटल फंड भी मुहैया कराएं. इस तरह महिला को देश , समाज  और घर पर भी स्थान दिलाने वाले SHG आंदोलन के प्रारंभ से लेकर आज प्रणेता के रूप में NABARD मौजूद है.

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