विश्व जीडीपी रैंकिंग (World GDP Ranking) 2023 सूची के अनुसार, भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि भारत,आने वाले 10 सालों में दुनिया की तीन बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनने की ताकत रखता है. McKinsey & Co. के ग्लोबल मैनेजिंग पार्टनर बॉब स्टर्नफेल्स ने कहा, "मुझे पूरा विश्वास है कि यह सिर्फ भारत का दशक ही नहीं, बल्कि भारत की सदी भी हो सकता है." मॉर्गन स्टेनली जैसे निवेश बैंक अनुमान लगा रहे हैं कि भारत तेज़ी से विकास कर 2027 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा. इस तर्क की वजह भारत को मिलने वाले ऐसे अवसर है जो पहले कभी नहीं मिले. भारत चीन को पछाड़कर सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया है और अंतरराष्ट्रीय कंपनियां चीन से बाहर अपनी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट ले जाना चाह रही हैं. ऐसे में, भारत के पास आर्थिक विकास की बागडोर आ जाती है.
अगला दशक भारत का तभी हो सकता है, जब कार्यबल (Workforce) में समानता आएगी. इसके बिना, अभूतपूर्व अवसर जल्द ही अभूतपूर्व अवसर लागत में बदल सकते हैं.
2022 में, कार्यबल में महिलाओं की संख्या केवल 13% थी, जबकि चीन में 61% और अमेरिका में 56% थी. यह समस्या अवसरों की कमी से नहीं बल्कि शिक्षा, जागरूकता और सामाजिक समर्थन की कमी की वजह से है. एफएसजी द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, रोजगार योग्य आयु की 85% से अधिक महिलाएं कॉलेज नहीं गई हैं, और 50% से अधिक ने 10वीं कक्षा पूरी नहीं की है. इसके अलावा, 84% ने कहा कि उन्हें काम शुरू करने के लिए अपने परिवार से अनुमति की आवश्यकता होती है, और एक बार जब उन्हें काम मिल जाता है और किसी कारण से इसे छोड़ देती हैं, तो उनके कार्यबल में लौटने की संभावना 20% कम हो जाती है.
इस असमानता की वजह से भारत में श्रम उत्पादकता (labour productivity) में कमी आई है. एशियाई विकास बैंक (ADB) के अनुसार, भारत की श्रम उत्पादकता $5.45 प्रति व्यक्ति प्रति घंटा है. इसकी तुलना में, मेक्सिको की श्रम उत्पादकता चार गुना अधिक $20.51 प्रति व्यक्ति प्रति घंटे है. कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ने से उपभोक्ता खर्च पर सीधा असर पड़ता है. महिलाएं अपने वेतन का 42% घरेलू खर्च के लिए इस्तेमाल करती हैं, जिसमें बच्चों की शिक्षा भी शामिल है, जबकि पुरुष घरेलु ज़रूरतों पर केवल 28% खर्च करते हैं. सेल्स प्रोफेशनल्स की एक स्टडी में, महिला सेल्सपर्सन ने अपने सेल्स टारगेट का 86% हासिल किया, जबकि पुरुष सेल्सपर्सन ने केवल 78%. कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी न बढ़ाकर, भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 27% की ग्रोथ खो रहा है.
भारत में फ्रंटलाइन कार्यबल में असमानता की वजह सूचना की कमी है. इस समस्या को हल करने के लिए, बाज़ार में कई उत्पाद उतारे गये, जो मार्केटप्लेस मॉडल फॉलो करते हैं. बाज़ार में सूचना विषमता को दूर करने और सूचना प्रवाह में आने वाली बाधाओं को हटाने के लिए बाज़ार मॉडल का आविष्कार किया गया था. इस मॉडल से निजी फाइनेंस, खरीदारी, और मार्केटप्लेस इनोवेशन जैसे क्षेत्रों में सफलता हासिल की, पर फ्रंटलाइन वर्कफोर्स में मौजूद सूचना विषमताओं को दूर नहीं कर पाया.
इसके मुख्यतः तीन कारण थे. पहला, जब ये मार्केटप्लेस सॉल्यूशंस (Marketplace Solutions) लॉन्च किए गए थे, तो भारत के पास ऐसे मॉडल को सपोर्ट करने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं था. इंटरनेट की पहुंच कम थी, और डिजिटल मार्केटप्लेस मॉडल भारत में शुरू ही हो रहे थे. दूसरा, इंटरनेट के कम इस्तेमाल की वजह से उद्यमों के साथ-साथ श्रमिकों के बीच भी डिजिटल स्वीकृति नहीं थी, जिसके कारण नौकरियों और आवेदकों की संख्या बहुत कम हो गई थी. अंत में, आवेदक बड़े पैमाने पर अकुशल होत थे इसलिए, उद्यमों को ये प्लेटफ़ॉर्म उपयोगी नहीं लगे, और श्रमिकों को इन प्लेटफ़ॉर्मों का उपयोग करने से हतोत्साहित किया गया क्योंकि उन्हें अपनी ज़रूरत की नौकरियां नहीं मिलीं.
अब भारत में 70% से अधिक स्मार्टफोन प्रवेश दर है और तेजी से डिजिटल अडॉप्शन रेट भी बढ़ रहा है. मार्केटप्लेस बाज़ार में वापसी कर सकते हैं, लेकिन ये महिला कर्मियों के बिना नहीं हो सकेगा. इसलिए, वर्कफोर्स मार्केटप्लेस 2.0 को इक्विटी हासिल करने के लिए तीन दिशा में ध्यान देने वाली एप्रोच का इस्तेमाल करना पड़ेगा -
मौजूदा महिला कार्यबल को औपचारिक और डिजिटाइज़ करना
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की एक रिपोर्ट के अनुसार, उद्योगों में काम करने वाली 88% और सेवा के क्षेत्र में 71% महिलाएं अनौपचारिक हैं.पहला कदम, इस बड़े इनफॉर्मल वर्कफोर्स को फॉर्मल बनाना होगा. ऐसा करने के लिए, हमें ऐसे केंद्रों तक पहुंचना होगा जिसमें है जिनमें महिला श्रमिकों की भागीदारी और योगदान हो. ऐसा ही एक केंद्र स्वयं सहायता समूह (Self Help Groups-SHG) है. भारत में 1.2 करोड़ स्वयं सहायता समूह हैं, और उनमें से 88% महिलाएं हैं. फाइनेंशियल इन्क्लुशन (Financial Inclusion) को बढ़ावा देने के लिए एसएचजी के ज़रिये काफी सफलता मिली है. एसएचजी बैंक लिंकेज प्रोजेक्ट 1992 में शुरू किया गया जिसने 119 लाख एसएचजी के माध्यम से 14.2 करोड़ परिवारों को कवर किया, जिसमें 47,240 करोड़ रुपये की बचत जमा और 1.5 लाख करोड़ रुपये का बकाया ऋण था. इन एसएचजी का हिस्सा रहे कार्यबल को औपचारिक बनाने और फिर डिजिटाइज़ करने के लिए उसी मॉडल का उपयोग करने से हमें भारत में कम से कम 10-20% महिला कार्यबल को औपचारिक रूप देने में मदद मिल सकती है.
स्किलिंग
एक बार जब ये महिलाएं प्लेटफॉर्म पर आ जाती हैं, तो हम स्किलिंग के अगले स्टेप पर जा सकते हैं. ज़्यादातर ज़रूरी कौशल किसी के मोबाइल फोन पर इंटरनेट के ज़रिये सीखे जा सकते हैं. हालांकि, महिला कर्मियों के लिए पाठ्यक्रम को आसान बनाना ज़रूरी है. स्पोकन इंग्लिश, टेलीकॉलिंग और सेल्स जैसे कोर्सों को इन कौशल पाठ्यक्रमों में शामिल कर महिलाओं के रोज़गार का जरिया बनाया जा सकता है.
उद्यमों की शुरुआत करना
एक बार कौशल से भरपूर वकर्स रोजगार योग्य बन जाए, तो उद्यमों की शुरुआत की जा सकती है. भारत में उद्यम पहले से ही 10% कार्यबल कमी से जूझ रहे हैं. महिला श्रमिकों की उत्पादकता ज़्यादा होने की वजह से ज़्यादा से ज़्यादा बिस्नेज महिला कर्मियों को अपॉइंट करने का सोच रहे है. इससे कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ सकेगी.
इस अप्रोच से उत्पादक चक्र बनेगा. क्योंकि इस क्षेत्र में ज्यादातर नई भर्तियां रेफरल के माध्यम से की जाती हैं, पहले से कुशल महिलाएं और ज़्यादा महिलाओं को बढ़ावा देने के लिए अपने स्वयं सहायता समूहों में वापस जा सकती हैं. इससे उद्यमों के लिए श्रमिकों का एक बड़ा पूल तैयार होगा जो एक्वेटिबिलिटी को बढ़ायेगा. इस प्रोडक्टिव साइकिल पर बना बाज़ार प्रभावी और टिकाऊ होता है.
(साभार : Hindustan Times)