लाड़ली बहना: महिलाएं रुपये-पैसे की बेहतर प्रबंधक क्यों होती हैं?

समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से, MMLBY के तहत दी जाने वाली राशि महिलाओं के वित्तीय सशक्तिकरण का मार्ग प्रशस्त करेगी. ऐसी नीतियां महिलाओं को अपने परिवार का बजट तय करने के अवसर देती हैं. इस तरह से निम्न आय वर्ग महिलाओं में आत्मसम्मान की बढ़ोतरी होगी.  

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पी. नरहरि
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मुख्यमंत्री लाड़ली बहना योजना (MMLBY) मध्य प्रदेश में 23 से 60 वर्ष की आयु की महिलाओं के लिए विशेष योजना है. जून 2023 से चयनित लाभार्थी महिलाओं के खाते में 1000/- रुपये का वास्तविक प्रत्यक्ष लाभार्थी हस्तांतरण (डायरेक्ट बेनेफिशरी ट्रांसफर) किया जाएगा.

मध्य प्रदेश के महिला एवं बाल विकास विभाग की वेबसाइट के अनुसार सांख्यिकीय साक्ष्य (स्टैटिस्टिकल एविडेंस) बताते हैं कि शहरी क्षेत्रों में महिला से पुरुष श्रम बल भागीदारी अनुपात 23.3: 57 है, जो क्रमशः .7% और 13.6:59.6% है.

इसका तात्पर्य यह है कि ऐसी महिलाएं, जिनके पास व्यय योग्य आय (एक्सपेंडेबल इनकम) का अपना स्रोत है, वे पुरुषों की तुलना में बहुत कम है. इससे न सिर्फ उनकी आर्थिक स्वतंत्रता प्रभावित होती है बल्कि इसका सीधा असर उनके स्वास्थ्य और पोषण के साथ-साथ उनके बच्चों पर भी पड़ता है. गरीब और निम्न आय वर्ग परिवारों के लिए MMLBY के तहत दिया जा रहा पैसा आवश्यक घरेलू सामान, सब्ज़ियों, फल, दूध और किराने का सामान खरीदने को आसान बना रहा है.

5 मार्च, 2023 को लॉन्च के बाद, एक बहस शुरू हुई कि राजकीय खजाने से महिलाओं को प्रति वर्ष 12,000 रुपये दिए जाएं या नहीं ? इस व्यय का मतलब यहां आवश्यक वस्तुओं के भुगतान से है. यह पहले से निर्धारित योजना का हिस्सा होता है, जिसके लिए बजट भी पहले से तय किया जाता है. महिलाएं घर का बजट संभालती है और ऐसा देखा गया है कि खर्च करने के मामले में महिलाएं स्वभाव से सतर्क होती हैं. दिन-प्रतिदिन के खर्चों का प्रबंधन करना और यह सुनिश्चित करना कि परिवार के वित्तीय लक्ष्य पूरे हों, उनकी प्राथमिकता होती है.

व्यवहार संबंधी अध्ययनों से पता चलता है कि महिलाएं पैसे बचाने और बुद्धिमानी से निवेश करने की अधिक संभावना रखती हैं. साथ ही परिवार-उन्मुख होने की वजह से प्राथमिकताओं को बेहतर ढंग से संतुलित कर पाती हैं. खरीदारी करने से पहले डील, छूट और स्कीम को देखती हैं. 

महिलाओं में उद्यमिता होती है. छोटे उद्यमों को शुरू कर, सफलता पाना आज कई घरों की कहानी है. उद्यम का स्केल और आकर उनके लिए ज़्यादा मायने नहीं रखता . उनके लिए मार्जिन मायने रखती है. महिला स्वयं सहायता समूहों (SHG) ने भारत में बड़ी सफलता पाई है. रोज़मर्रा के वित्तीय निर्णय लेने की क्षमता उन्हें अपने खर्चे बेहतर तरीके से करना सिखाती है. इस तरह समझकर खर्च करना, एक कौशल के रूप में देखा जा सकता है.  

महिलाएं किराए, उपयोगिताओं, आवश्यक वस्तुओं और रेस्तरां में बाहर खाने के बीच किस पर पहले खर्च करना है इसको बखूबी प्राथमिकता देती है. अपनी नेगोशियेशन क्षमता की वजह से वह बेहतर निर्णय लेती हैं. खरीदारी के दौरान पूछना परखना और फिर कोई निर्णय लेना, छोटी खरीददारी से लेकर हवाई जहाज खरीदने में ज़रूरी होता है.  

भारत में महिलाओं के खर्च और बचत की आदतों में संस्कृति भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. इसीलिए उनसे अक्सर रुपये-पैसे के साथ मितव्ययी और जिम्मेदार होने की उम्मीद भी की जाती है. जैसे अपनी सीमित आय और अप्रत्याशित खर्चों को पूरा करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं में बचत करने की अधिक संभावना देखी जाती है. सांस्कृतिक और सामाजिक मानदंडों के आधार पर भारतीय महिलाओं की वित्तीय संसाधनों तक पहुंच में अंतर है.

समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से, MMLBY के तहत दी जाने वाली राशि महिलाओं के वित्तीय सशक्तिकरण का मार्ग प्रशस्त करेगी. ऐसी नीतियां महिलाओं को अपने परिवार का बजट तय करने के अवसर देती हैं. इस तरह से निम्न आय वर्ग महिलाओं में आत्मसम्मान की बढ़ोतरी होगी और वह अपनी बात रखने में सक्षम बनेगी.  
 

(लेखक पी. नरहरि, आईएएस अधिकारी हैं और वर्तमान में सचिव, एमएसएमई उद्योग विभाग, मध्य प्रदेश सरकार के पद पर कार्यरत है)
(साभार - द टाइम्स ग्रुप)
(अनुवाद - रविवार ब्यूरो)

मध्य प्रदेश महिला एवं बाल विकास विभाग पी. नरहरि मुख्यमंत्री लाड़ली बहना योजना ( MMLBY )