'पोस्टपार्टम डिप्रेशन' को नज़र अंदाज़ ना करें…

Adele ने जब इस बात को दुनिया के सामने बिना झिझक के रखा, तो बहुत सी महिलाओं को हिम्मत मिली होगी. भारत में 22% महिलाएं 'Postpartum Depression' से जूझती हैं. इन सभी महिलाओं के परिवारों को शायद ये पता भी न हो कि वे किस स्थिति में हैं.

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रिसिका जोशी
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Adele Postpartum Depression

Image Credits: Ravivar Vichar

Adele Adkins, जिन्होंने अपने म्यूज़िक करिअर में 6 बार 'ग्रैमी अवार्ड' (Grammy Award) जीता, आज उनका बर्थडे हैं. उनके फैंस और पूरी दुनिया के लिए, Adele की ज़िन्दगी एकदम परफेक्ट हैं. पर जब Adele से उनकी ज़िन्दगी के बारे में पूछा गया तो उन्होंने अलसियत सबके सामने रखी. पहली बार माँ बनाने के बाद Adele बहुत समय तक 'Postpartum Depression' से लड़ रही थीं. बिना किसी वजह के रोना, दुखी होना, मूड स्विंग्स, ऐंग्जाइटी, और ना जाने क्या क्या... उनकी हर दिन का हिस्सा बन चूका था. 'इंटरनेशनल फोरम' पर इस बात को उठाकर Adele ने एक बोल्ड स्टेप लिया. 

हां यह सच हैं कि 'मदरहुड' एक बहुत अच्छी फीलिंग हैं , लेकिन इस फीलिंग से साथ आने वाले दर्द के बारें में किसी भी महिला को बात ही नहीं करने दी जाती. इन सब बातों को पूरी तरह से अनदेखा कर दिया जाता हैं. माँ बनाने के बाद मानो एक महिला को यह सीखा दिया जाता हैं कि अब दर्द हो या कोई परेशानी, सहन करना ही होगा. लेकिन यह बात किस हद तक महिलाओं पर असर डालती हैं, यह सबके सामने रखा Adele ने.

भारत में भी ऐसी कई महिलाएं हैं जो 'Postpartum Depression' से गुज़रती हैं, लेकिन समाज उनकी सुनना ही नहीं चाहता. एक बच्चे को जन्म देने के बाद महिला बहुत ज़्यादा नाजुक स्थिति में रहती हैं. वो उम्मीद करती हैं कि उसकी परेशानी को समझा जाए, और मेन्टल सपोर्ट मिले. ज़्यादातार परिवारों में इस बात को पूरी तरीके से नज़रअंदाज़ कर दिया जाता हैं. शहरों में फिर भी लोग जागरूक हैं, लेकिन गांव में किसी ने इस बीमारी के बारे में सुना भी नहीं होगा. सही मायनों में एक माँ को बच्चे के जन्म के बाद भी उतनी देखभाल कि ज़रूरत होती हैं जितनी पहले. 

Adele ने जब इस बात को दुनिया के सामने बिना झिझक के रखा, तो बहुत सी महिलाओं को हिम्मत मिली होगी. भारत में 22% महिलाएं 'Postpartum Depression' से जूझती हैं. इन सभी महिलाओं के परिवारों को शायद ये पता भी न हो कि वे किस स्थिति में हैं. इस परेशानी से लड़ना उतना ही ज़रूरी हैं जितनी किसी और चीज़ से. तरीका सिर्फ एक हैं, महिलाएं जिन्हें इससे गुज़रना पड़ रहा हैं, वो सामने आएं और अपने जैसी दूसरी महिलाओं के साथ मिलकर एक दूसरे की मदद करें. गांव की महिलाएं स्वयं सहायता समूह (SHG) बनाकर ना जानें कितनी महिलाओं की मदद कर सकतीं हैं. 'जब पांचों उँगलियाँ मिल जाए तो मुट्ठी बन जातीं हैं', बस इसी तरह जब महिलाएं आपस में मिल जाए तो किसी भी परेशानी को खत्म करना उनके बाएं हाथ का खेल बन जाएगा.

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