1772 में एक ऐसे बच्चोंए का जन्म भारत की धरती पर हुआ, जिसने भारत के राजनीतिक, सामाजिक, मौलिक और शैक्षिक ढंगों को बदल के रख दिया...बचपन से ही आतुर और चीज़ों को लेकर काफी जिज्ञासु रहे होंगे ये, तभी तो बड़े होकर अपने मन की करने में यकीन करा... आज की भाषा में कहे, तो तब के शायद सबसे बड़े फेमिनिस्ट होंगे ये. क्योंकि उस वक़्त इन्होने जितने काम महिलाओं के लिए किए है वो अविस्मरणीय है.
Raja Ram Mohan Roy का परिचय
बात हो रही है भारतीय पुनर्जागरण के जनक राजा राम मोहन रॉय की. राजा राम मोहन रॉय को अक्सर "आधुनिक भारत के जनक" कहा जाता है. वे एक ऐसे सुधारक थे जिन्होंने समाज, शिक्षा, धर्म और राजनीति के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनका जन्म 22 मई 1772 को बंगाल के राधानगर में हुआ था. उनके कार्यों ने भारतीय समाज में एक नई रोशनी लाई.
Raja Ram Mohan Roy- प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
राजा राम मोहन रॉय का जन्म एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था. वे कई भाषाओं जैसे संस्कृत, फारसी, अरबी, अंग्रेजी और बंगाली में माहिर थे. उन्होंने बचपन में ही विभिन्न संस्कृतियों और धार्मिक विचारों का अध्ययन किया, जिससे उनकी सोच पर गहरा असर पड़ा. उन्होंने तिब्बत की यात्रा की और विभिन्न धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन किया, जिससे उन्हें अंधविश्वास और कुरीतियों के खिलाफ लड़ने की प्रेरणा मिली.
Raja Ram Mohan Roy के काम
राजा राम मोहन रॉय ने समाज की कई बुराइयों के खिलाफ लड़ाई लड़ी, खासकर सती प्रथा के खिलाफ. सती प्रथा में विधवाओं को उनके पति की चिता पर जलने के लिए मजबूर किया जाता था. उनके प्रयासों से 1829 में इस प्रथा को कानूनन बंद कर दिया गया.
उन्होंने महिलाओं के अधिकारों की भी वकालत की, जैसे विधवा पुनर्विवाह और महिलाओं की शिक्षा. उन्होंने बाल विवाह और बहुविवाह का भी विरोध किया और समाज में सुधार के लिए कानून बनाने की मांग की.
राजा राम मोहन रॉय ने एकेश्वरवाद और तर्कवाद में विश्वास किया. उन्होंने 1828 में ब्रह्म समाज की स्थापना की, जिसका उद्देश्य हिंदू धर्म को मूर्तिपूजा और जातिगत भेदभाव से मुक्त करना था. ब्रह्म समाज ने एक निराकार ईश्वर की पूजा पर जोर दिया और तर्कवाद, मानवतावाद और सामाजिक न्याय को बढ़ावा दिया.
वे वेद, उपनिषद, कुरान और बाइबिल जैसे विभिन्न धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करते थे और इन ग्रंथों की तर्कसंगत व्याख्या की वकालत करते थे. उन्होंने शिक्षा की शक्ति को समझा और आधुनिक शिक्षा के समर्थक बने. उन्होंने 1817 में कोलकाता में हिंदू कॉलेज (अब प्रेसीडेंसी कॉलेज) की स्थापना का समर्थन किया, जो प्रगतिशील विचारों और शिक्षा का केंद्र बन गया.
उन्होंने पारंपरिक भारतीय शिक्षा के साथ-साथ पश्चिमी विज्ञान और अंग्रेजी भाषा के अध्ययन को भी बढ़ावा दिया. उनका मानना था कि आधुनिक शिक्षा भारत की प्रगति के लिए जरूरी है.
Raja Ram Mohan Roy- राजनीतिक सहभागिता
रॉय ने भारतीय समाज में राजनीतिक अधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की भी वकालत की. उन्होंने ब्रिटिश शासन की नीतियों की आलोचना की और न्याय प्रणाली में सुधार, दमनकारी करों को खत्म करने और स्वतंत्र प्रेस को बढ़ावा देने की मांग की.
1830 में, वे मुगल सम्राट अकबर द्वितीय के राजदूत के रूप में इंग्लैंड गए ताकि भारतीय नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए और ब्रिटिश शासन के तहत बेहतर व्यवहार की मांग कर सकें. इंग्लैंड में उनके समय ने उनके विचारों को और मजबूत किया.
Raja Ram Mohan Roy- पत्रकारिता में योगदान
राजा राम मोहन रॉय भारतीय पत्रकारिता के भी अग्रदूत थे. उन्होंने कई समाचार पत्रों की स्थापना की, जिनमें 1821 में बंगाली साप्ताहिक "संवाद कौमुदी" शामिल है. उनके प्रकाशनों ने साक्षरता, सूचित बहस और जन जागरूकता को बढ़ावा दिया.
राजा राम मोहन रॉय की विरासत बहुत बड़ी और स्थायी है. उन्होंने भारतीय सुधारकों और स्वतंत्रता सेनानियों की भावी पीढ़ियों के लिए रास्ता तैयार किया. उनके सामाजिक न्याय, शिक्षा और धार्मिक सुधार के प्रयासों का भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा और वे आज भी प्रगतिशील आंदोलनों को प्रेरित करते हैं.
उनका जीवन और कार्य जिज्ञासा, तर्कवाद और मानवता की भावना का प्रतीक हैं. राजा राम मोहन रॉय का आधुनिक, प्रगतिशील और समावेशी भारत का सपना आज भी हमें प्रेरित करता है.
राजा राम मोहन रॉय का भारतीय समाज में योगदान अद्वितीय था. उनके सामाजिक सुधार, महिलाओं के अधिकारों की वकालत, शिक्षा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता, और पत्रकारिता में उनकी अग्रणी भूमिका ने उन्हें भारतीय इतिहास के सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों में से एक बना दिया है.
आज की इस modern दुनिया में जहां हम महिलाएं इतने सुकून से जीवन व्यक्तीत कर रही है, उस समाज को ऐसा बनाने का बहुत बड़ा श्रेय जाता है राजा राम मोहन रॉय.