आज की दुनिया में देश डिप्लोमेसी के दम पर, सरहदों पार अपनी छाप छोड़ रहे हैं. डिप्लोमेसी (diplomacy) की बदौलत हम शान्ति, प्रगति, और समानता के साझा लक्ष्यों पर एकसाथ काम कर पा रहे हैं. अपनी समझ, दृढ़ निश्चय, और काबिलियत से महिला डिप्लोमेट्स देश का प्रतिनिधित्व ग्लोबल मंच पर कर रही हैं. ये महिलाएं रूढ़िवादिता की सरहदों को पार कर इंटरनेशनल रिलेशन के नए आयाम छू रही हैं. चोनिरा बेलियप्पा मुथम्मा (C.B. Muthamma) भारतीय सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण करने वाली पहली महिला थीं. वह भारतीय विदेश सेवा (Indian Foreign Sevice) में शामिल होने वाली और डिप्लोमेट बनने वाली पहली भारतीय महिला थीं. उन्होंने कई लड़कियों को इस फील्ड में अपनी जगह बनाने के लिए प्रोत्साहित किया.
मुथम्मा से लेकर अरुंधति घोष (Arundhati Ghosh), निरुपमा राव (Nirupama Rao), मीरा शंकर (Meera Shankar), मीरा कुमार (Meira Kumar), सुजाता सिंह (Sujata Singh) से लेकर रुचिरा कंबोज (Ruchira Kamboj) ने डिप्लोमेसी की फील्ड में अपने काम से पहचान बनाई. पूर्व भारतीय प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) और पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज (Sushma Swaraj) जैसी महिला राष्ट्राध्यक्षों ने दुनिया के सामने अपने देश का प्रतिनिधित्व करने में अहम भूमिका निभाई.
रॉयल एकेडमी ऑफ साइंस इंटरनेशनल ट्रस्ट (RASIT) द्वारा आयोजित 2023 के IDWID उद्घाटन फोरम के लिए विषय, "बाधाओं को हटाना, भविष्य को आकार देना: सतत विकास के लिए कूटनीति में महिलाएं" (“Breaking Barriers, Shaping the Future: Women in Diplomacy for Sustainable Development”) चुना गया. राजनयिक भूमिकाओं में भाग लेने वाली महिलाओं की संख्या में बढ़ोतरी महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता की लिए ज़रूरी हैं.
डिप्लोमेसी में लैंगिक समानता (gender equality) की दिशा में भारत आज़ादी के समय से ही काम कर रहा है. विजया लक्ष्मी पंडित (Vijaya Lakshmi Pandit) और हंसा जीवराज मेहता (Hansa Jivraj Mehta) जैसी महिलाएं उन डिप्लोमेट्स में से थीं जिन्होंने जेंडर रोल्स को चुनौती दी और डिप्लोमेसी की दुनिया में कदम रखा. विजया लक्ष्मी पंडित ने 1953 में संयुक्त राष्ट्र महासभा की पहली महिला अध्यक्ष बनकर इतिहास रचा. इन ट्रैल्ब्लैज़र महिलाओं ने भारतीय महिलाओं की आने वाली पीढ़ियों को डिप्लोमेसी में प्रवेश करने का रास्ता दिखाया. 2021 में, विदेश मंत्रालय ने रीवा गांगुली दास (Riva Ganguly Das) को जर्मनी में पहली महिला राजदूत और शांभवी शर्मा (Shambhavi Sharma) को गिनी गणराज्य में पहली महिला राजदूत नियुक्त किया. इन महिलाओं का चयन उच्च रैंकिंग पदों पर लैंगिक समानता हासिल करने के लिए भारत के मज़बूत इरादों को दर्शाता है.
महिला डिप्लोमेट्स (women diplomats) का योगदान शांति स्थापना (peace keeping), जलवायु परिवर्तन (climate change), मानवाधिकार (human rights), आर्थिक सशक्तिकरण (financial empowerment) और सांस्कृतिक आदान-प्रदान (cultural exchange) सहित कई क्षेत्रों में फैला है. अपनी डिप्लोमेसी स्किल्स से, भारतीय महिलाओं ने मुश्किल भू-राजनीतिक चुनौतियों (geo -political challenges) को दूर करने में मदद की और वैश्विक मंच (global stage) पर भारत के दृष्टिकोण (Indian perspective) और प्राथमिकताओं (priorities) की प्रभावी ढंग से वकालत की है.
विदेश सेवा में 1,115 अधिकारियों में से 253 महिलाएं हैं, जिनमें से 10 राजदूत और चार उच्चायुक्त हैं. ये आंकड़ें बताते है कि डिप्लोमेसी की फील्ड में आज भी महिलाओं की भागीदारी काफी कम है. इनकी संख्या को बढ़ाकर भारत और दुनिया का महिला सशक्तिकरण (women empowerment) का लक्ष्य पूरा हो सकेगा. महिला डिप्लोमेट्स लैंगिक समानता, कार्यबल में महिलाओं की समान भागीदारी, और आर्थिक सशक्तिकरण जैसे महिलाओं से जुड़े मुद्दों को हकीकत में बदलने के लिए काम करेंगी. महिला डिप्लोमेट्स के ज़रिये समान, शांतिपूर्ण और समृद्ध विश्व बनाने का सपना पूरा हो सकेगा.