परिंदा और अर्धसत्य में क्या समानता है? जाने भी दो यारो, हैदराबाद ब्लूज़, बैंडिट क्वींस, या 1942: ए लव स्टोरी को जोड़ने वाली कड़ी क्या है? इन सभी यादगार फिल्मों की क्रिएटिव फ़ोर्स (creative force) रहीं है रेनू सलूजा (Renu Saluja). फिल्म एडिटर (film editor) वह होता है जो डायरेक्टर (director) के नज़रिये को स्क्रीन पर उतारता है. 80 और 90 के दशक में बनी कई फिल्मों में रेनू ने एडिटर की तौर पर काम किया. नसीरुद्दीन शाह ने सलूजा पर लिखी गई किताब, 'इनविजिबल: द आर्ट ऑफ रेनू सलूजा' (Invisible: The Art of Renu Saluja) के लॉन्च पर कहा, “वह एक एडिटर से कहीं ज़्यादा थीं. वह एक फिल्म निर्माता थीं.”
गॉडमदर (1998) के डायरेक्टर विनय शुक्ला (Vinay Shukla) रेनू को याद करते हुए बताते हैं, "वे फिल्म इंडस्ट्री की पहली वुमन एडिटर थी जो एक्सपेरिमेंट करने से और रूल ब्रेक करने से कभी नहीं घबराई. कहानी को लेकर उनकी समझ गहरी और एडिटिंग में मैथमेटिकल प्रिसिशन सटीक होता." विनय शुक्ला ने बताया कि रेनू असाइनमेंट लेने से पहले फिल्म की स्क्रिप्ट (script) पढ़ती थी, यदि उन्हें कहानी में संवेदनशीलता नहीं दिखती, तो असाइनमेंट नहीं लेती."
रेनू ने परिंदा (1989), धारावी (1993), सरदार (1993) और गॉडमदर (1999) के लिए बेस्ट एडिटिंग केटेगरी में नेशनल फिल्म अवॉर्ड्स जीते. परिंदा (1989) और 1942: ए लव स्टोरी (1994) के लिए फिल्मफेयर भी मिला. 'गॉडमदर' (Godmother) की स्क्रिप्ट पढ़, रेनू ने कहा, "ये मेरी पहली एडिटेड स्क्रिप्ट है, इसमें मेरे करने के लिए तो कुछ छोड़ा ही नहीं."
Image Credits: Film Critics Circle Of India
'खामोश' (1985), रेनू द्वारा एडिट की गई शुरुआती फीचर फिल्मों में से एक थी, जिसका निर्देशन उनके पहले पति विधु विनोद चोपड़ा (Vidhu Vinod Chopra) ने किया था. दोनों की संवेदनशीलता और फिल्मों की थीम का नज़रिया मेल खता था. FTII के दिनों से एक साथ प्रोजेक्ट्स करने की बाद, कुछ ही समय में दोनों ने शादी करली. सालों बाद तलाक होने पर भी उनकी साझेदारी जारी रही. रेनू की असामयिक मृत्यु तक उन्होंने चोपड़ा की बनाई हर फिल्म में एडिटिंग की.
रेनू के दूसरे पति और लंबे समय से सहयोगी रहे सुधीर मिश्रा (Sudhir Mishra) ने इंटरव्यू में उनके बारे में बात करते हुए कहा, "एक अच्छे एडिटर की अहमियत यह है कि वे आपको बताते हैं कि आपने वास्तव में क्या बनाया है, जबकि आपने जो बनाया है, आप उसी में फंसे रहते हैं."
रेनू सलूजा ने उस समय फिल्म इंडस्ट्री (film industry) में अपनी पहचान बनाई जब सिर्फ एडिटिंग क्या, किसी भी टेक्निकल फील्ड (technical field) में महिलाएं दूर-दूर तक नज़र नहीं आती थी. उनके काम ने महिला फिल्म संपादकों (female film editors) को रास्ता दिखाया.