कोविड-19 जैसी महामारी के बीच अपनों को टिकटोक वीडियोस और रंगबिरंगे फ्लायर्स के ज़रिये हौंसला देती SHG की महिलाओं ने सबका दिल जीता. कोविड में अपनों को खोने, पाबंदियों और अनसुनी मदद की गुहारों की कहानियां तो सबने कई बार सुनी. पर याद करिये, एक दुसरे के साथ ने कांपती उम्मीद को थामे रखा था. आज हम बात करने वाले है स्वसहायता समूहों की, जिन्होंने ग्रामीण और दूरदराज़ के क्षेत्रों में काम किया, जहां सरकार और मीडिया की पहुँच मुश्किल थी. SHG के योगदान केवल मास्क और सैनिटाइज़र बनाने तक ही सीमित नहीं थे.
कुछ इलाकों में कोरोना वाइरस को लेकर कई तरह के भ्रम थे जिसकी वजह से सही जानकारी जैसे कहीं दब गई थी. स्वसहायता समूहों ने अफवाहों और ग़लत सूचनओं पे रोक लगाने के लिए अपने व्हाट्सप्प ग्रुप के नेटवर्क का यूस किया. मोबाइल फोन, पोस्टर और साप्ताहिक बैठकों के माध्यम से हाथों की स्वच्छता और सामाजिक दूरी के बारे में जागरूकता बढ़ाकर सरकार के 'ब्रेक द चेन' अभियान की अगुवाई करी. कोविड वेक्सीनेशन के नाम से डरते लोगों को सही जानकारी दी , लोगों को स्लॉट बुक करने में मदद की और अपने समुदाय के लोगों के वेक्सीनेशन का ज़िम्मा ख़ुद लिया. उस वक़्त लोगों ने सरकार से ज़्यादा अपने समुदाय की इन महिलाओं की बात समझी.
ग्रामीण विकास मंत्रालय के अनुसार, करीब 68 हज़ार स्वसहायता समूहों ने 2 करोड़ से अधिक मास्क बनाकर मुफ्त बांटें . उत्तर प्रदेश में, खादी ग्रामोद्योग की मदद से, SHG सदस्यों ने 6 लाख मीटर खादी कपड़े के मास्क बनाये. SHG ने तीन लाख लीटर से अधिक सैनिटाइज़र और लगभग 50 हज़ार लीटर हैंडवॉश बनाया. खीरी जिले में, स्वसहायता समूहों ने फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और पुलिस कर्मियों के लिए पीपीई किट बनाने के लिए चौबीसों घंटे काम किया. इसके अलावा, हाथ धोने और सामाजिक दूरी के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए रंगोली, टिकटॉक वीडियो और गाने जैसे तरीकों से स्थानीय भाषा में जागरूकता फैलाई. झारखंड में, SHG ने सब्जियां बेचने के लिए आजीविका फ़ार्म फ्रेश मोबाइल ऐप का उपयोग किया और सामाजिक दूरी का पालन करवाया.
महामारी के दौरान स्वसहायता समूहों के सबसे बड़े योगदानों में से एक जरूरतमंद लोगों को भोजन और रोज़मर्रा की ज़रूरी चीज़ों में मदद करना रहा. झारखंड के दीदी किचन की 4,185 सामुदायिक रसोइयों को SHG महिलाओं ने संचालित की. लोगों और परिवारों को हेल्पलाइन्स और काउंसलिंग डेस्क के ज़रिये इमोशनल सपोर्ट दिया. कई स्वसहायता समूहों ने फ़्लायर्स के ज़रिये जागरूकता अभियान चलाए और सूचना सत्र आयोजित किए. ऐसी कोशिशें ग्रामीण इलाकों में कारगर साबित हुए जहा विश्वसनीय जानकारी तक पहुंच सीमित थी.
SHG की इन महिलाओं ने ज़रुरत के वक़्त आगे आना और साथ देना सिखाया. ये SHG केवल अपनी आर्थिक आज़ादी के लिए ही नहीं काम करते पर वक़्त आने पर सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर ज़मीनी स्तर पर सहारा बनने का होंसला भी रखते है. ये SHG उन जगहों पर पहुंचे जहां आप और हम तो क्या, सरकार और मीडिया भी नहीं पहुंच पा रही थी. रविवार विचार का मानना है, सही ट्रेनिंग और जानकारी लेकर ये समूह ज़मीनी स्तर पर बदलाव का ज़रिया बनेंगे. वक़्त-वक़्त पे इन स्वसहायता समूहों ने साबित किया है 'जब आएंगे हम साथ.. देंगे कोरोना को मात ' केवल कोरोना काल का एक स्लोगन नहीं पर एक दुसरे का सहारा बन बदलाव लाने की पुकार है...