बढ़ती जनसंख्या की वजह से ज़रूरतें भी बढ़ रही हैं. जिस वजह से कृषि उत्पादन करने के लिए ज़मीन पर दबाव बढ़ रहा है. खाद्य सुरक्षा (food security), पर्यावरण (environment), और स्वास्थ्य (health) खतरे में है. प्रदुषण (pollution) और गरीबी (poverty) जैसी चुनौतियों से लड़ना मुश्किल हो रहा है. बदलते हालातों की साथ संतुलन बना पाना मुश्किल हो रहा है. ऐसी कई वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए G20 जैसे अंतरराष्ट्रीय फोरम (International Forum) से समाधान की उम्मीद की जा रही है. G20 आर्थिक विकास, स्थिरता, और वैश्विक सहयोग जैसे लक्ष्यों के साथ ग्लोबल लेवल पर काम करता है. इसके मुख्य लक्ष्यों में से एक ‘सतत विकास का लक्ष्य है -एक ऐसा विकास जो प्रकृति से मिली वस्तुयों के कुछ इस प्रकार इस्तेमाल को प्रोत्साहित करता है जिससे आने वाली पीढी को समझौता ना करना पड़े.
ज़मीन पर बढ़ते दबाव को काम करने के लिए सीवीड फार्मिंग (seaweed farming) कारगर साबित हो सकती है. यूनिवर्सिटी ऑफ क्वींसलैंड (University of Queensland) की एक रिसर्च (research) से पता चलता है कि समुद्री सिवार या सीवीड (seaweed) की खेती न केवल खाद्य सुरक्षा (food security) की समस्या को हल कर सकती है, बल्कि यह जैव विविधता को होते नुकसान और जलवायु में आते बदलावों से निपटने में भी मददगार साबित होगी. G20, वैश्विक अर्थव्यवस्था के लगभग 84 % हिस्से और दुनिया के करीब 50 % समुद्री तटों तक पहुंच रखता है. यदि G20 समूह के सदस्यों द्वारा मज़बूत कदम उठाये जायें तो सीवीड फार्मिंग के ज़रिये कई सतत विकास लक्ष्यों को पूरा किया जा सकता है.
सीवीड बढ़ते समय कार्बन डाइऑक्साइड (carbon dioxide) को सोखते हैं, जिसकी वजह से क्लाइमेट चेंज (climate change) से हो रहे नुक्सान को काम करने में मदद मिलती है. सीवीड फार्मिंग समुद्री जीवों (marine creatures) को रहने की जगह देते हैं. सीवीड खाद्य सुरक्षा को बेहतर करने में भी मदद करते हैं. सीवीड पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं. इंसानों और पशुओं के भोजन में इन्हें शामिल किया जा सकता है.
इसके अलावा, सीवीड फार्मिंग में आर्थिक संभावनाएं भी छुपी हैं. सीवीड से बने उत्पादों, जैसे बायोफ्यूल, बायोप्लास्टिक और न्यूट्रास्यूटिकल्स को बढ़ावा देकर उद्यमियों, तटीय समुद्री समुदायों, रिसर्च संस्थानों, और स्वयं सहायता समूहों (SHG) के लिए आजीविका के नए अवसर बनाये जा सकते हैं. सीवीड की खेती में रोजगार बढ़ सकते हैं, ख़ासकर उन क्षेत्रों में जहां पारंपरिक जीविकाएं जैसे मछली पकड़ने, जलवायु परिवर्तन की वजह से खतरे में हैं.
बड़े पैमाने पर की जा रही ओशियन फार्मिंग (ocean farming) के लिए फंड और लोन मिल जाता है. पर, विकासशील देशों में कमजोर समुदायों की लोन तक पहुंच काफी सीमित है. माइक्रो क्रेडिट (micro credit) तक आसान पहुंच देकर सीवीड फार्मिंग में लोगों की रुचि बढ़ाने और समुद्री खेती को अपनाने में मदद मिल सकती है. इससे समुदायों को आजीविका का साधन मिलेगा. भारत में की गई रिसर्च से पता चलता है कि सामुदायिक भागीदारी को बढ़ाने और पूंजी इकट्ठा करने के लिए स्वयं सहायता समूहों (Self Help Groups) का गठन किया जा सकता है. SHG की माइक्रो क्रेडिट तक आसान पहुंच होती है. उन्हें सीवीड फार्मिंग के फायदों के बारे में बताकर और खेती और मार्केटिंग के लिए ट्रेनिंग देकर सीवीड फार्मिंग के लिए प्रोत्साहित करना होगा. सीवीड फार्मिंग का विकल्प न केवल आजीविका बढ़ाने में मदद करेगा, बल्कि पर्यावरण संरक्षण (environment protection) में ज़रूरी कदम साबित होगा.