लेबर छोड़ अब लखपति हुईं लाखों महिलाएं

ये वो महिलाएं हैं जिन्होंने मजदूरी को अपना जीवन मान लिया था. ये ही महिलाएं अब लेबर नहीं हैं. मप्र में 15 लाख से ज्यादा महिलाएं लखपति की गिनती में आ गई. ये कोई एक या दो जिले की कुछ गांव की महिलाएं की बात नहीं, प्रदेश के 38 हजार गांव की महिलाएं हैं.

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Garima sai Sundaram

Image Credits: Ravivar vichar

स्वयं सहायता महिला समूह (women self help group) के कई प्रोजेक्ट अलग-अलग जिलों में चल रहे. इन प्रोजेक्ट ने ही महिलाओं में आत्मविश्वास बढ़ाया और कमाई के नए साधन बना दिए. प्रदेश के पूरे 52 जिले में ये समूह ग्राम संघठन के साथ जुड़ कर काम कर रहे. इसकी बदौलत ये महिलाएं जो कभी परिवार के पालन-पोषण के लिए मजदूरी करती थीं ,वे अब कई यूनिट की मालकिन बन गई. कहीं लघु उद्योग, मछली पालन, खेती, खिलौने निर्माण, लोक संस्कृति से जुड़ी कलाकृति और कई तरह की आर्ट के साथ फेब्रिक्स पर काम कर रहीं हैं.

महिलाओं की मेहनत ने ही इन्हें लखपति की कतार में ला खड़ा किया. रविवार विचार ने प्रदेश के साथ देशभर की ऐसी महिलाओं की ज़िंदगी को करीब से देखा जिनकी जीवनशैली बदल गई. मप्र (Madhya Pradesh) में आजीविका मिशन (Ajeevika Mission) से जुड़ी महिलाओं की ये कहानियां रोचक और प्रेरणादायक हैं.

गांव की महिलाओं ने अपनी तक़दीर खुद लिख दी. ये वो महिलाएं हैं जिन्होंने मजदूरी और आर्थिक तंगहाली को ही अपना जीवन मान लिया था. ये ही महिलाएं अब लेबर नहीं हैं. मप्र में 15 लाख से ज्यादा महिलाएं लखपति की गिनती में आ गई. ये अपना जीवन अब खुश होकर गुज़ार रही. ये कोई एक या दो जिले की कुछ गांव की महिलाएं की बात नहीं, प्रदेश के 38 हजार गांव की महिलाएं हैं. आजीविका मिशन से जुड़ी स्वयं सहायता समूह (SHG) की इन महिलाओं की सालाना इनकम अब एक लाख रुपए से अधिक हो गई. ये कोई मौखिक आंकड़े नहीं बल्कि कराए गए मिनिस्ट्री ऑफ़ रूरल डेवलॅपमेंट (Ministry of Rural Development) के एक सर्वे की रिपोर्ट है. 

चूड़ियों से खनकती कमाई 

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देवास जिले में बन रही चूड़ियां (Image Credits: Ravivar vichar)

देवास (Dewas) जिले में टौंकखुर्द ब्लॉक की आलरी गांव की पहचान ही अब ' चूड़ियों वाला गांव ' के नाम से है. आरती स्वयं सहायता समूह की अध्यक्ष रचना चौहान अब मजदूरी नहीं करती. इनकी यूनिट में 35 से ज्यादा महिलाएं मजदूरी छोड़ अब शान से चूड़ियां बना रहीं हैं. लाख से लगा कर सीप तक की चूड़ियों ने इस गांव और महिलाओं को अलग पहचान दी. आजीविका मिशन की जिला परियोजना प्रबंधक शीला शुक्ला कहती हैं -इन महिलाओं को ट्रेनिंग दिलवा कर ट्रेंड किया गया. अब इनकी आर्थिक स्थिति में बहुत बड़ा बदलाव आ गया. 

कॉन्टिनेंटल से बढ़ाई करेंसी

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बुरहानपुर में मशरूम उत्पादन (Image Credits: Ravivar vichar)

बुरहानपुर (Burhanpur) के पास जयसिंगपुरा गांव की प्रियंका कुशवाह को सिलाई में कभी फायदा नहीं हुआ. छोटा गांव और ग्राहकों की कमी ने प्रियंका की स्थिति को सुधरने नहीं दिया. मशरूम की खेती के लिए योजना आई. कॉन्टिनेंटल डिश में शुमार मशरूम की खेती ने प्रियंका सहित सुनीता, प्रतिभा सहित कई महिलाओं की तक़दीर बदल गई. यहीं केले के पेड़ों के रेशे से बन रहे बेग में भी महिलाओं ने अपनी आर्थिक स्थिति को सुधार लिया. जिला परियोजना प्रबंधक संतमति खोखल ने बताया - यहां समूह की महिलाओं को नए कारोबार से बहुत लाभ हुआ. 

टाइगर से लाइफ हुई टर्न

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बांधवगढ़ के टाइगर नेशनल पार्क में लेडी गाइड (Image Credits: Ravivar vichar)

प्रदेश के दूसरे छोर पर बसे उमरिया (Umariya) जिले महिलाओं ने मिसाल कायम कर दी. यहां बांधवगढ़ के टाइगर नेशनल पार्क में टूरिस्ट विजिट के लिए लेडी गाइड की ज़िंदगी टाइगर ने टर्न कर दी. यहां 22 महिलाएं गाइड हैं जो जंगल सफारी में गाइड की भूमिका में हैं. कभी घरेलु महिला या छोटी-मोती मजदूरी करने वाली ये महिलाएं अब सम्मान की जिंदगी जी रहीं हैं.आजीविका मिशन और वन विभाग का यह मिशन सफल मन जा रहा है.राधा स्वयं सहायता समूह की अहिल्या जायसवाल और दूसरी गाइड अब यहां ट्रेनिंग के बाद अनुभवी हो गईं. यहां के डीपीएम प्रमोद शुक्ला कहते हैं - "इन महिलाओं ने बहुत आत्मविश्वास से काम किया. इनकी यहां अच्छी कमाई हो रही. और भी समूह की महिलाएं अलग-अलग काम से आय कर रहीं हैं."

कहीं शहद सी ज़िंदगी तो कहीं फ़ूड वेन की मालकिन 

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मुरैना में शहद का रिकॉर्ड उत्पादन (Image Credits: Ravivar vichar)

पूरे प्रदेश में महिलाओं का दबदबा दिखने लगा है. मुरैना (Morena) जिले में एसएचजी से जुड़ी महिलाएं मधुमक्खी पालन और शहद उत्पादन ने महिलाओं की ज़िंदगी में मिठास हो दी. रिकॉर्ड उत्पादन ने नै पहचान दी ,गांव धुरकूड़ा की मां संतोषी स्वयं सहायता समूह की रेखा धाकड़ हो या गांव मिरघान के बजरंग स्वयं सहायता समूह की माया देवी कुशवाह ने अपने परिवार और दूसरी साथी सदस्यों के साथ अलग पहचान बना ली. यहां आजीविका मिशन और कृषि विज्ञान केंद्र ने साथ मिलकर इस मिशन को सफल बना दिया. केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. योगेश यादव और डीपीएम दिनेश तोमर ने कहते हैं -" महिला की लगातार काउंसलिंग का नतीजा है कि महिलाएं आत्मनिर्भर बन गईं.

रायसेन (Raisen) के पर्यटक और आस्था का स्थान सांची में भी फ़ूड वेन की मालकिन सरस्वती स्वयं सहायता समूह की हेमलता पाल हैं. हेमलता ने भोपाल (Bhopal) में एडवांस ट्रेनिंग ली. डीपीएम एम.राजा कहते हैं - समूह की हेमलता का हौसला बढ़ाने खुद केंद्रीय सचिव शैलेश सिंह, अपर मुख्य सचिव मलय श्रीवास्तव सहित जिला अधिकारी पहुंचे थे.  

पूरे प्रदेश में लगातार स्वयं सहायता समूह से महिलाऐं जुड़ कर नए कामकाज और कारोबार से जुड़ रहीं हैं. रतालम (Ratlam) में जिला परियोजना प्रबंधक रहे हिमांशु शुक्ला कहते हैं -"रतलाम में समूह की महिलाएं कई तरह के प्रोजेक्ट से जुड़ीं. यहां आचार-पापड़ यूनिट ,स्लीपर चप्पल यूनिट सहित कई कामों से महिलाओं की आय हो रही है. यहां तक मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान इन समूह सदस्य के हाथ का बना अचार चख चुके हैं."

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स्टेट प्रोजेक्ट मैनेजर गरिमा साईं सुंदरम (Image Credits: Ravivar vichar)

मिशन की स्टेट प्रोजेक्ट हेड गरिमा साईं सुंदरम (Garima Sai Sundaram) कहती हैं -" मिशन से जुड़ी महिला समूहों को उनकी इच्छा और जिले की खास पहचान के हिसाब से योजना से जोड़ा गया. भोपाल में बैंक सखी हो,या नीमच का नल-जल योजना से जुड़ी महिलाओं या सैनेटरी पेड यूनिट ने साबित कर दिया कि वे पैसे के हिसाब करने में भी कमजोर नहीं हैं. 96 हजार से ज्यादा महिलाएं अब खुद के घर की मालकिन बन परिवार सहित रहने लगीं. और कई सुख-सुविधा के सामान भी अब इनके घर में देखे जा सकते हैं." ११ जिला स्तर पर कलेक्टर,सीईओ लगातार मॉनिटरिंग कर रहे वहीं आजीविका मिशन के प्रदेश सीईओ एलएम बेलवाल  प्रदेश की योजनाओं और उनसे जुड़ी समूह सदस्य महिलाओं की समीक्षा कर रहे. 

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