मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर , लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया, मजरूह सुल्तानपुरी का ये शेर वैसे तो कई लोगों और संस्थाओं पर फिट बैठता है. लेकिन हमारे देश में एक ऐसा एसोसिएशन है जिसके लिए यह शेर सबसे सही है. सेल्फ एम्पलॉईड वीमेन एसोसिएशन (SEWA) एक ऐसा कारवां है जिसकी शुरुआत भी एक छोटे से कदम के साथ हुई थी. जो की आज पुरे देश में आपने कामों के लिए जानी जाती है.
गुजरात की अनसूया साराभाई देश के लिए तो कुछ करना ही चाहती थी लेकिन उसमें भी वो भारतीय महिलाओं पर विशेष ध्यान दिया. महात्मा गांधी से सलाह और प्रेरणा ले कर उन्होंने साल 1920 में इसकी स्थापना की. वैसे तो यह अहमदाबाद में टेक्सटाइल लेबर एसोसिएशन (TLA) से शुरू हुआ था, लेकिन इस आर्गेनाईजेशन के पास कोई एम्प्लॉयर न होने के कारण इन्हे 1972 तक ट्रेड यूनियन का दर्जा नहीं दिया गया. 1974 में सेवा ने गरीब महिलाओं को छोटे लोन देने से अपने 'SEWA ' बैंक शुरु किया और इस पहल को 'अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन' (डब्ल्यू एल ओ ) ने 'माइक्रोफाइनेंस आंदोलन' का नाम दिया. इस समुदाय का सदस्य बनने के लिए महिलाओं को मात्रा 10 रुपये का वार्षिक शुल्क देना होता था. इस सामुदायिक प्रयास को भारत का शुरूआती SHG बोले तो गलत नहीं होगा.
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इलाबेन भट्ट, ने इस प्रयास को नयी ऊचाईयां दी और स्थापना का श्रेय भी उनको जाता है. उन्हें टेक्सटाइल लेबर एसोसिएशन की महिला विंग का अध्यक्ष बनाया गया और सेवा संस्था को उन्होंने देश का सबसे बड़ा लेबर यूनियन बना दिया. उन्हें पद्मश्री, पद्मभूषण, रेमन मेग्सेसे अवार्ड, इंटरनेशनल लाइवलीहुड अवार्ड व इंदिरा गांधी शांति पुरस्कार जैसे खिताबों से नवाज़ा गया.
100 साल से भी ज़्यादा समय से SEWA समुदाय देश के 18 राज्यों में लगातार काम कर रहा है. सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि एशिया के अन्य देश , दक्षिण अफ्रीका और लैटिन अमेरिका तक भी इसकी पहुंच है. इस संस्थान ने अब तक 18 हजार बेघर महिलाओं को रहने की सुविधा प्रदान की, करीब 900 स्लम विस्तारों का सेटलमेंट कराकर गंदी बस्ती में परिवारों को रहने के लिए फ्लैट व घर मुहैया हो चुके है. बहुत सी महिलाओं को खुद का काम शुरू करने के लिए कर्जा भी दिया गया है. ऐसे न जाने कितने प्रयास और उपलब्धियां आज SEWA के हिस्से में है
अजीम प्रेमजी फाउंडेशन, एचएसबीसी, युनाइटेड स्टेट एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट, बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन, बैंक ऑफ अमेरिका, जॉर्जिया तकनीकी संस्थान, मिलेनियम एलायंस, ऑक फाउंडेशन, एशियन कॉलिशन हाउसिंग राइट, अर्बललैब शिकागो जैसी कितनी ही संस्थाओं SEWA को मदद करती है.
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जब यह संस्था शुरू की गयी थी तब इसका सीधा सा उद्देश्य था हमारे देश की महिलाओं को सशक्त करना और इस कार्य में ये इलाबेन की ये सोच सफल भी हुई. इतने समय बाद भी यह संस्था पुरे देश में काम कर रही है, उम्मीद है की आगे भी हमे इसकी उपलब्धियां दिखती रहेंगी.
यह संस्थान आज के स्वयं सहायता समूहों के लिए एक बड़ी मिसाल बन सकती है. इलाबेन ने भी जब इसकी शुरुआत की होगी तब उन्हें नहीं पता होगा की क्या उनकी ये सोच सफल रहेगी ? लेकिन फिर भी उन्होंने 'SEWA ' संस्थान को इस मुकाम तक पहुंचाया.
आज के समय में जहां हर काम को आसानी से किया जा सकता है, स्वयं सहायता समूहों के लिए कोई भी मुकाम हासिल करनामुमकिन है. आज की महिलाएं किसी से कम नहीं, ये बहुत बार साबित कर चुकी है, और अगर वो 'SEWA ' आर्गेनाईजेशन जैसी सोच लेकर अपने स्वयंसहायता समूह को आगे बढ़ाएंगी तो देश की हर महिला को सशक्त बनाने से कोई नहो रोक सकता.