आपने अपने घर में मां या दादी को सिलाई मशीन (sewing machine) का इस्तेमाल करते देखा होगा. अपने मन मुताबिक़ कपड़े बनाने वाली इस मशीन का आविष्कार (invention) और इसकी डिज़ाइन (design) का पेटेंट (patent) पुरुषों ने किया. फ्रांस, जर्मनी, अमरीका, भारत ने अपने-अपने हिसाब से इसकी बनावट में बदलाव किये. 1936 में बिशनदास बासिल (Bishan Das Basil) ने सिलाई मशीन का पहला भारतीय प्रोटोटाइप (Indian Prototype) बनाया. 1940 के दशक में सिलाई मशीन की लोकप्रियता भारत में बढ़ने लगी. इंडियन मार्केट में सिलाई मशीन ने सिंगर (Singer) और उषा (Usha) कंपनी के साथ अपनी जगह बनाई. मार्केट में सिलाई मशीन को चाहे पुरुष लाये हों, पर इसे लोकप्रिय, महिलाओं ने बनाया.
उषा ने अपने पहले विज्ञापन में लिखा, "उसे एक आदर्श गृहिणी बनने के लिए प्रशिक्षित करें." इसके साथ सिलाई की कला अच्छी गृहिणी होने की पहचान बन गई. सिलाई मशीन तोहफे, दहेज़ में दी जाने लगी. इसके साथ मशीन की मांग बढ़ती चली गई. धीरे-धीरे सिलाई की कला ने न सिर्फ फटे पुराने कपड़े, पर महिलाओं को आपस में जोड़ने का काम भी किया. नई डिज़ाइन बताने, कपड़ा कटिंग सीखने, तो कभी साथ मिलकर कुछ सीने का शौक महिलाओं को साथ लाया. ऋतू कुमार ने 1966 में भारत में बुटीक कल्चर की शुरुआत की, जब उन्होंने दिल्ली में अपना पहला स्टोर खोला. 1980 के दशक में बुटीक और फैशन डिज़ाइनर की संख्या बढ़ने लगी. आज देशभर में कई सिलाई सेंटर हैं और फैशन को कॉलेज में पढ़ाया जा रहा है.
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सिंगर सिलाई मशीन के पुराने विज्ञापन में लिखा गया है, "भारत, साहस, राजसी धन और घोर गरीबी की भूमि ... अब ब्रिटिश शासन में तेजी से सभ्य हो रही है." विज्ञापन में एक महाराष्ट्रीयन महिला को दिखाया गया था, जो एक सिंगर सिलाई मशीन पर काम कर रही थी, उसके बगल में एक युवा लड़का खड़ा था. विज्ञापन में भारतीय महिलाओं को "दर्दनाक रूप से शिक्षा से रहित" भी कहा गया था. शायद, उस समय मार्केटर्स को नहीं पता था कि एक दिन यही महिलाएं ब्रांड की सबसे बड़ी उपभोक्ता बन, अपने आप में चेंजमेकर्स बन जाएंगी.
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महंगाई बढ़ी तो सिलाई पैसे कमाने का आसान तरीका बन गई. द इंडियन एक्सप्रेस की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में कई लड़कियां दूसरी तरह के व्यावसायिक प्रशिक्षणों के बजाय सिलाई ट्रेनिंग को चुनने लगीं. इनमें से ज़्यादातर अपना कोर्स पूरा करते ही कमाई करना शुरू कर देती हैं. वे उद्यमी बन जाती हैं. घर से बाहर जाने की भी ज़रुरत नहीं पड़ती. इसके विपरीत, कई लड़कों को सिलाई की ट्रेनिंग लेने के बाद अच्छी नौकरी पाने में कठिनाई होती है.
एक साधारण सिलाई मशीन आज कई महिलाओं की आर्थिक आज़ादी (financial freddom) की कुंजी बन रही है. कम पढ़ी-लिखी होने के बावजूद, सिलाई कर वह अपने और अपने परिवार के लिए रोज़ी कमा रही हैं. कई महिलाएं सिलाई के ज़रिये अपना नौकरी करने का सपना पूरा कर रही हैं. स्वयं सहायता समूहों से जुड़कर कई ग्रामीण महिलाएं सरकारी स्कूलों की यूनिफॉर्म सिलने का ऑर्डर ले रही हैं. कई समूह की महिलाएं रेडीमेड कपड़े सिल कर अपनी आमदनी बढ़ा रही हैं. सिलाई प्रशिक्षण के साथ यदि इन महिलाओं को फैशन टेक्नोलॉजी, मार्केटिंग, ई- कॉमर्स का भी ज्ञान दिया जाए तो इनकी आमदनी में बढ़ोतरी हो सकेगी.
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