इकोनॉमिक्स की क्लास वैसे तो मुझे बड़ी ही बोरिंग लगती है. पर आज के लेक्चर में तो मज़ा ही आ गया. ये तो पता था कि इकोनॉमिक एक्टिविटी का लक्ष्य कंसम्पशन या खपत है. इस तरह हर व्यक्ति की खपत यानि वह जो कुछ भी खरीदता है या यूं कहें ख़र्च करता है उस से ही मोटे तौर पर इकोनॉमी की उत्पादक सफ़लता नापी जाती है. आज इस 'उत्पादन - खपत' यानि 'प्रोडक्शन - कंसम्पशन' के चक्र को नए नज़रिये से समझा. स्वसहायता समूह या SHG का नाम तो सालों पहले सामाजिक विज्ञान की क्लास में सुना था. क्लास में टीचर ने बताया था की SHG, महिलाओं के रोज़गार अवसर बढ़ाकर उन्हें आर्थिक आज़ादी देने की एक पहल है. इकोनॉमिक्स की मैडम ने समझाया कैसे ये SHG पूरे भारत की इकोनॉमी और GDP को सहारा देते हैं.
जैसे एक 10 महिलाओं का SHG टोकरियां बनाने का काम करता है. ये टोकरियां मार्केट जाकर थोक में बेच आते हैं. अब समझिये - पहले महिलाओं ने बचत की - उन पैसों से कच्चा माल ख़रीदा- टोकरियां बनाकर मार्केट में बेचीं - उस पैसे से वापिस कच्चा माल ख़रीदा - कुछ मुनाफ़े को आपस में बांटा - कमाए हुए पैसों से किसी ने घर बनाया, किसी ने कुछ सामान ख़रीदा - ये पैसे जिन व्यापारियों के पास गए उन्होंने उसे कहीं और ख़र्च किया. इसी तरह इन SHG महिलाओं की टोकरियों ने पूरे मार्केट में पैसे को रोटेट करवा दिया. इन 10 महिलाओं ने जो मुनाफ़ा कमाया उस से इनकी ज़रूरतें पूरी हुई - या यूं कहें कि इनकी खपत का स्तर बढ़ा. ये वही खपत स्तर है जिस से इकोनॉमी की उत्पादक सफ़लता नापी जाती है. इसी तरह पूरे भारत के 81 लाख स्वसहायता समूहों की महिलाओं की खपत शक्ति बढ़ी और उन्होंने पैसे को मार्केट में रोटेट करने में योगदान दिया. और ऐसे महिला श्रम बल भागीदारी दर (FLFPR) में भी बढ़ोतरी हुई. न केवल ग्रामीण महिलाओं को रोज़गार मिला पर रूरल इकोनॉमी भी बेहतर हुई.
एक्सपर्ट्स का मानना है कि यदि सरकार थोक में SHG महिलाओं से सामान खरीदे तो इकोनॉमी तेज़ी से बढ़ सकेगी. कोविड -19 लोकडाउन के समय झारखंड के 7,000 SHG कम्युनिटी किचन ने तीन महीनों में 4 करोड़ फ़ूड पैकेट्स बांटे. उन्होंने स्थानीय किसानों और विक्रेताओं से सब्ज़ियां और किराने का सामान ख़रीदकर ग्रामीण इकोनॉमी में लगभग 38 करोड़ रुपये का निवेश किया. इसी तरह, केरेला में 242 SHG की 2,000 से अधिक महिलाएं पूरे केरेला की 33,000 आंगनवाड़ी को न्यूट्रीमिक्स बनाकर बेच रही हैं, जिनका सामूहिक वार्षिक टर्नओवर 100 करोड़ रुपये से अधिक है.
भारतीय ग्रामीण आबादी 6.3 लाख गांवों में फैली हुई है और कुल भारतीय आबादी का 64 % है. NRLM के 'मिशन 1 लाख, 2024' के तहत महिला किसान उत्पादक कंपनियों और समूहों को फ्लिपकार्ट और अमेज़ॉन जैसे ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म से जोड़ने का वादा किया गया ताकि उनके प्रोडक्शन को बढ़ाया जा सके. मैडम ने बताया दुनिया के गरीबों में 70 % महिलाएं हैं. यदि इस आधी आबादी की आय में सुधार आता है, तो वे GDP में अच्छा ख़ासा योगदान कर पाएंगी.
आज 8.35 करोड़ महिलाएं NRLM से जुड़ी हैं और 5.9 लाख करोड़ बैंक खाते खुले, जबकि NPA (नॉन परफॉर्मिंग एसेट) घटकर 2.5 % रह गया. आज इतना कम NPA किसी दूसरे क्षेत्र में नहीं है. इकोनॉमिक्स की इस क्लास ने बताया कैसे हमारी खरीदने की इच्छा या कुछ बनाकर बेचने की क्षमता 'प्रोडक्शन- कंसम्पशन' के पहिए की स्पीड तय करती है. इकोनॉमिक सर्वे 2022-23 के अनुसार,14.2 करोड़ परिवारों की SHG-BLP में 47,240 करोड़ रुपये की बचत जमा राशि है. भारत के कमर्शियल बैंकों ने लोन माफ़ कर अपनी बैलेंस शीट को साफ़ दिखाया जिसने हमारी इकोनॉमी पर भारी बोझ डाला, जबकि स्वसहायता समूहों का बैंक लोन भुगतान दर 96 % से भी अधिक है. इस से समझ आया कि SHG इकोनॉमी पर बिना बोझ बढ़ाये GDP बढ़ाने में सहायता करता है. आज क्लास में पढ़ा तो जाना महिला के ये समूह सिर्फ़ उन्हें सशक्त नहीं बनाते पर पूरे देश को सशक्तिकरण के मार्ग पर ले जाते हैं. भारत की GDP दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी GDP है और इकोनॉमी के इस मुक़ाबले में SHG भारत का सबसे बड़ा सहारा साबित होंगे.