स्वयं सहायता समूह की महिलाएं पूरी मेहनत करती है अपने उत्पाद बनाने में. उनका विश्वास होता है कि वे उत्पादों को लोगों तक पंहुचा पाएंगी. अपनी जमापुंगी लगाकर, लोन लेकर, और सरकार की योजनाओं से जुड़कर महिलाएं मशीनें और कच्चा माल खरीदकर अपने काम को शुरू करती है. ऐसे में अगर उत्पाद बेचने में परेशानियों का सामना करना पड़े तो किसी का भी आत्मविश्वास डगमगाएगा. हाल ही में कुछ self help group जो कि राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) के साथ बनाए गए उनकी महिलाओं को अपने उत्पादों को लेकर इसी तरह की परेशानी से गुज़ारना पड़ रहा है.
महिला SHGs को अपने उत्पाद बेचने के लिए सही बाजार नहीं मिल रहा. अपने उत्पादों से रोज़ी रोटी चलाने वाले SHGs को शहरों में भटकना पड़ रहा है ताकि मार्केटिंग ढंग से कर पाए. सरकार की तरफ से प्रदान की गयी इतनी मदद और मंचों के बावजूद हैरानी की बात यह है कि इन SHGs की आर्थिक स्तिथि कमज़ोर होती जा रही है. इन्ही में से एक SHG की प्रधान अनीता ठाकुर ने अपना हाल बताते हुए कहा- "आज हमारी स्थिति ऐसी है कि हमें उत्पादों को बेचने के लिए मंच तक नहीं मिल पा रहे, जिसके चलते निजी दुकानों के सामने बैठकर अपने उत्पाद बेचने पड़ रहे हैं. कई बार उपायुक्त हमीरपुर, उपनिदेशक और परियोजना अधिकारी जिला ग्रामीण विकास हमीरपुर राजकुमार को भी बताया जा चुका हैं, लेकिन उत्पाद बेचने के लिए शहर में ठोकरें खानी पड़ रही हैं."
यह SHG कच्चे पपीते और आंवला की बर्फी, आचार, बड़ियां, सिरा जैसे उत्पाद तैयार कर रहा है. महिलाएं इन उत्पादों को सस्ते दामों में बेच रही है फिर भी हर रोज़ कठिंनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. इतनी योजनाएं, प्लान्स, और परियोजनाएं होने के बावजूद भी अगर महिलाएं इस तरह की परेशानी को सहन कर रहीं है तो यह सरकार की कमज़ोर व्यवस्था को दर्शाता है.
हमीरपुर के उपायुक्त हेमराज भैरवा का कहना है- "राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत बनाए गए स्वयं सहायता समूहों को अपने उत्पाद बेचने के लिए मार्केटिंग मंच का प्रोविशन है. प्रशासन स्वयं सहायता समूहों को अपने उत्पाद बेचने के लिए सही बाजार दिया जाएगा ताकि इनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हो सके." सरकार के अधिकारीयों की मदद के साथ ही इन महिलाओं को अपनी आजीविका बढ़ाने का मौका मिल सकेगा.
रविवार विचार भी ऐसी हर उस महिला की आवाज़ बनाना चाहता है, जो इन परेशानियों से आए दिन गुज़रती है. अपने उत्पाद बेचने के लिए मंच ना होना, वो भी एक ऐसे देश में जहां ऑनलाइन मार्केटिंग से सब होता है, अपने आप में दुःख की बात है. ऐमज़ॉन, फ्लिपकार्ट, और बहुत से प्लेटफॉर्म्स जो ऑनलाइन काम करते है, इनपर भी SHG महिलाओं के उत्पाद का एक अलग सेक्शन बनाया जा सकता है. तरीके बहुत है, चाहे तो महिलाओं की यह परेशानी बहुत आसानी से ख़त्म की जा सकती है. बस अब सोचना सरकार और उनके कर्मचारियों को है, कि ऐसी हर महिला को कैसे परेशानी से निजात दिलवाई जाए.