एकदम सच है कि 'इलाज से बेहतर बचाव है'. बचाव करने का सबसे बेहतर तरीका टीका करण है. एक बार टीका लगवा लिया फिर बीमारी होने की कोई चिंता नहीं. बच्चे का जन्म होते ही टीका लगवाकर उसे आने वाली कई बीमारियों से बचाया जा सकता है. आज अगर कोई वैक्सीन का नाम ले तो कोरोना वैक्सीन का ध्यान सबसे पहले आता है. अभी तक इंडिया में 220 करोड़ लोगों को कोविड-19 वैक्सीन लग चुकी है. वैक्सीन को लेकर ज़ोर -शोर से हुए जागरूकता अभियान सबको याद है, पर क्या ये याद है कि कितनी SHG महिलाओं ने वैक्सीन की अहमियत लोगों को बताई और वैक्सीन को लेकर उनके शक दूर कर उन्हें सही फैक्ट्स बताये ?
दीनदयाल अंत्योदय योजना- राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) और ग्रामीण विकास मंत्रालय ने 69 लाख से अधिक स्वसहायता समूहों (SHG) को ट्रेनिंग दी. इन SHG महिलाओं ने COVID-19 से बचाव के बारे में खासकर COVID-19 टीकाकरण के लिए जागरूकता फैलाई, सही फैक्ट्स लोगों तक पहुंचाए और अपने समुदाय के लोगों को वैक्सीन लगवाने के लिए प्रेरित किया. SHG ने कमज़ोर समूहों, जैसे कि बच्चों, गर्भवती महिलाओं और बुजुर्गों की पहचान की और उनके टीकाकरण को प्राथमिकता देते हुए उन्हें टीका लगवाने की समझाइश दी. SHG महिलाओं ने टीकाकरण कवरेज दरों को ट्रैक किया और समुदाय में हर किसी के पास टीकाकरण सेवाओं तक पहुंच को सुनिश्चित किया.
कोविड साल 2019 में आया पर उससे पहले पोलियो ने कई लोगों की ज़िंदगियों को बर्बाद किया. 1972 से पल्स पोलियों अभियान शुरू हुआ और 2014 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने इंडिया को पोलियो फ्री देश घोषित किया. चार दशकों की इस मुहीम में SHG महिलाओं ने बहुत सहयोग दिया और ये वहां तक पहुंची जहां स्वास्थ्य कर्मी भी नहीं जा पा रहे थे. इंडियन जर्नल ऑफ पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित एक सर्वे के अनुसार, जहां सरकारी स्वास्थ्य कर्मियों ने 64% कवरेज किया वहीं SHG 92% आबादी तक पहुंचे. जर्नल ऑफ हेल्थ, पॉपुलेशन एंड न्यूट्रिशन ने बताया कि SHG झुग्गी-झोंपड़ी में रहने वाले और प्रवासी श्रमिकों जैसी 85% कमज़ोर आबादी तक पहुंचे जहां सरकारी स्वास्थ्य कर्मियों की पहुंच बस 58% आबादी तक थी. यूनिसेफ इंडिया ने भी पल्स पोलियों अभियान में मिले SHG के योगदान को सराहा.
एक और सर्वे ने बताया कि बच्चों के टीकाकरण में भी SHG महिलाओं ने बहुत सहयोग किया, ये आदिवासी क्षेत्रों में रहने वाले 75% बच्चों तक पहुंची और उनका टीकारण करवाया. हेपेटाइटिस बी, डिप्थीरिया, काली खांसी (पर्टुसिस), हीमोफिलस इन्फ्लुएंजा, न्यूमोकोकल रोग और
रोटावायरस जैसी कई जानलेवा बीमारियों की रोकथाम के लिए स्वसहायता समूह की महिलाओं ने लोगों को न सिर्फ वैक्सीन की ज़रुरत को समझाया पर उन्हें टीकाकरण सेंटर तक भी पहुंचाया. 'पहला सुख, निरोगी काया' की कहावत को ज़मीन पर लागू कर अपनी सेहत का ख़ुद ध्यान रखना और समय पर बच्चे को टीका लगवाने को समाज की आदत बनाया.
स्वास्थ्य के बिना प्रगति कर पाना नामुमकिन है और सेहतमंद रहने के लिए टीकारण से बेहतर कोई उपाय नहीं. रविवार विचार का मानना है कि SHG महिलाओं को ट्रेनिंग देकर हर तबके के स्वास्थ्य को बेहतर किया जा सकता है. समुदाय में आसान पहुंच और लोगों से जान-पेहचा होने कि वजह से उनकी बात मानी जाती है और उनकी समझाइश का गहरा प्रभाव भी पड़ता है. इन समूहों की मदद से टीकाकरण ही नहीं, परिवार नियोजन, मातृत्व स्वास्थ, और किशोरी स्वास्थ्य को भी बेहतर किया जा सकता है. तभी तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 'वन अर्थ, वन हेल्थ' का सपना साकार हो सकेगा.