भारत की आत्मा उसके गाँव में बसती है. भारत के विकास के लिए ज़रूरी है उसकी आत्मा का विकास. भारत तभी पूरी तरह विकसित होगा जब गाँव एक स्वतंत्र इकाई के रूप में काम करेगा. इस स्वतंत्र इकाई के मूल में जो ग्रामीण महिलाएं है वह वित्तीय रूप से सक्षम होंगी. इन महिलाओं में वित्तीय आत्मनिर्भरता लाने के लिए स्वयं सहायता समूह बनना और फिर उन्हें वित्तीय सहायता मिलना एक कारगार कदम साबित हुआ है.
स्वयं सहायता समूहों की महिला सदस्य, अपने साथियों की सामूहिक शक्ति से लाभान्वित होती हैं, लेकिन अब वह समय आ गया है , जब उन्हें अपनी वित्तीय आवश्यकताओं और बैंक ऋणों तक पहुँचने के बारे में अधिक जागरूक होने की आवश्यकता है.
अभी तक इस जागरूकता को फ़ैलाने में SHG लीडर या फिर सरकारी जिला पंचायत कर्मचारी ही आगे आते है. लेकिन अगर किसी महिला को या समूह को अपने बैंक ऋण को म्युचुअल फंड में निवेश करना हो तो वो क्या करे ? या फिर शेयर बाजार की तरफ कुछ बचत का रुख करना हो तो . यह सब सोच अब ग्रामीण भारत की महिलाओं में भी आ रही है क्योंकि आर्थिक आज़ादी की राह जो SHG ने दिखाई है उस से वह अपने लिए वित्तीय निर्णय खुद ले रही हैं.
70 के दशक से शुरू हुई इस SHG क्रांति को ताक़त मिली 1992 में बैंकिंग प्रणाली के साथ एकीकरण के बाद. वह शुरू हुआ स्लेफ़ हेल्प ग्रुप बैंक लिंकेज प्रोग्राम (एस बी एल पी) के साथ. तब से अधिक से अधिक महिलाओं को शामिल करके समूह बनाये गए और आर्थिक आत्मनिर्भरता की तरफ कदम बढे. "स्व-सहायता" की अवधारणा ग्रामीण महिलाओं के बीच स्वरोजगार और गरीबी उन्मूलन को बढ़ावा देने में सफल रही है. समान सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि वाले लोगों के समूह एक दूसरे की मदद करते हुए मइक्रोक्रेडिट की सुविधा लेते है. साथ ही SHG सिर्फ रुपये पैसे कमाने के ज़रिये नहीं बने बल्कि राजनितिक, सामाजिक और व्यक्तित्व विकास की राह पर भी महिलाओं को लेकर आगे बढे. कोई महिला जब अपने पारिवारिक कर्तव्यों को पूरा करते हुए किसी काम में लगती है और रुपये कमाती है तो वह स्वयं की आत्मनिर्भरता की पूरक बन जाती है.
SHG से आज 8 करोड़ से ज़्यादा महिलाओं के परिवार सशक्त बने है. देश के 737 ज़िलों के 728903 गांव तक यह नेटवर्क पहुंच चुका है जिसमें 17 लाख करोड़ से ज़्यादा का फण्ड बांटा जा चुका है. सरकार ने वर्ष 2024 से पहले समूह की प्रत्येक महिला की वार्षिक आय को बढ़ाकर एक लाख रुपये करने का लक्ष्य रखा है. इस आंकड़े तक पहुंचने के लिए ज़रूरी है की अधिक से अधिक ग्रामीण आबादी इस प्रयास से जुड़े.
स्वयं सहायता समूह में औसतन 10-15 सदस्य होते हैं. इन समूहों को कुछ साधारण से नियमों का पालन करना होता है. सभी सदस्य समरूपी आर्थिक और सामाजिक पृष्ठभूमि के हों. समूह कम से कम 6 माह से सक्रीय रूप से संचालित हों सदस्यों द्वारा नियमित मासिक बचत और दिए गए ऋण की भरपाई हों. लेन देन के लेखा जोखा की व्यवस्थित रजिस्टर में हों मासिक बैठक का विवरण लिखा जाए और लोकतान्त्रिक रूप से सभी सदस्य इसमें भाग लें. समूह को संचालित करने के लिए, समूह सदस्यों में से तीन पदाधिकारियों का चयन किया जाता है, जिसमे अध्यक्ष, कोषाध्यक्ष और सचिव होते हैं. समूह के संचालन के लिए पांच सूत्र है - नियमित बैठकें, नियमित बचत, नियमित आंतरिक ऋण, नियमित वसूली और खातों का सही लेखा जोखा. स्वयं सहायत समूहों का बैंक पुनर्भुगतान 98 प्रतिशत से अधिक है, जो उनके विश्वास और अनुशासन को बताता है .
आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 की सिफारिश है कि स्वयं सहायता समूहों (SHG) को ग्रामीण विकास के प्रयासों के केंद्र में होना चाहिए क्योंकि वह सबसे प्रभावी लोकल सामुदायिक संस्थान हैं. 75% से अधिक ग्रामीण महिला श्रमिक कृषि क्षेत्र में काम कर रहीं है. इसलिए महिलाओं के कौशल को बढ़ाना और कृषि से संबंधित क्षेत्रों जैसे कि खाद्य प्रसंस्करण में रोजगार पैदा करने का जरिया SHG हो सकते है. स्वयं सहायता समूह आर्थिक आज़ादी, आजीविका में अलग अलग क्षेत्र और कौशल विकास में ग्रामीण महिलाओं की क्षमता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं.
SHG: सामूहिक शक्ति विकसित भारत के लिए…
भारत तभी पूरी तरह विकसित होगा जब गाँव एक स्वतंत्र इकाई के रूप में काम करेगा. इस स्वतंत्र इकाई के मूल में जो ग्रामीण महिलाएं है वह वित्तीय रूप से सक्षम होंगी. इन महिलाओं में वित्तीय आत्मनिर्भरता लाने के लिए स्वयं सहायता समूह बनाना कारगार कदम साबित हुआ.
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