मजदूर दिवस : SHG जैसे संगठन से बदलेगी तस्वीर

महिलाओं के हित में स्वयं सहायता समूह गठित किए. बाकायदा इनमें महिलाओं को जोड़ा. सरकार ने पूरे प्रदेशों में जिला पंचायत अंतर्गत आजीविका मिशन का स्ट्रक्चर तैयार किया. पिछले डेढ़ दशकों में महिला SHG ने काफी हद तक महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूत बनाया.

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बड़े शहरों में घरों के निर्माण में बराबरी से काम कर रहे महिला-पुरुष मजदूर (इमेज क्रेडिट-रविवार विचार )

हमारे देश में चाहे हरे-भरे लहलहाते खेत हों या बड़े बड़े भवन या मल्टीज़ हों या कोई और बड़े इंफ्रास्ट्रक्स्चर.... गांव की सड़कों से महानगरों पर गर्म सड़कों पर डामर बिछा रहे हों, या और जो भी आप आधुनिकता के पैमाने पर सोच सकें. सभी की नींव में यदि कोई है तो वह एक ही शक्ल हमारे मन और मस्तिष्क पर अंकित होती है.... वह है फटे से चीथड़ों और सिर पर गमछा बांधे लोग...चाहे कोई भी मौसम हो बरसात ,भीषण लू से तपती गर्मी या कड़ाके ठंड सब मौसम में ये दिख जाएंगे. इनकी हाड़तोड़ मेहनत और पसीना बहाते लोगों की बदौलत इंडिया एक नई तस्वीर के रूप में उभर रहा है. इन श्रमिकों लेकर चाहे हमारी सरकारों ने पूरा एक दिन समर्पित कर दिया लेकिन कई इलाकों में लोग अब भी इस खास दिन श्रमिक या "मजदूर दिवस " से बेखबर हैं. हर साल की तरह 1 मई को मजूदर दिवस मनाया जाता है. पर मजदूरों का अब तक असंघठित श्रेणी में रखा गया. अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग तरह के मजदूर जी-जान से जुटे हैं.

सरकारों ने समय -समय पर चाहे कई योजनाएं बनाई बावजूद उसका लाभ पूरी तरह नहीं मिल सका. आज भी कई मजदूर गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं. इन मजदूरों में महिला श्रमिकों की हालत और अधिक दयनीय है. आज भी असंगठित श्रेणी में मजदूरी कर रहे लोगों में बराबरी की मेहनत के बाद भी पैसों के बंटवारे में बहुत अंतर है. किसी खेत में फसल कटाई हो या मकान बनाने पर मिलने वाली मजदूरी किसी पुरुष को तीन सौ रुपए मिलेगी तो किसी महिला को आज भी डेढ़ सौ रुपए दिए जा रहे. इस भुगतान और कमाई को महिला मजदूरों ने अपनी नियति मान लिया. इसका फायदा ठेकेदार और दूसरे मालिक जम कर उठा रहे हैं.यही वजह कई परिवार रात-दिन पसीना बहाने के बावजूद कर्ज में डूबे हैं. 

Dewas SHG women left labour

देवास जिले के SHG से जुड़ी महिला जो मजदूरी छोड़ अब खुद मालकिन बन गई  (इमेज क्रेडिट-रविवार विचार) 

मजदूरों के भविष्य सुरक्षित करने के लिए सरकारों ने कई योजनाएं बनाई. उनका फायदा पहुंचाने का प्रयास भी किया.अलग श्रम विभाग खोले. बावजूद अलग-अलग श्रेणी और असंगठित मजदूरों की संख्या अधिक होने से मजदूरों तक  इन योजनाओं का लाभ नहीं मिल सका. आइए हम कुछ योजनाओं की बात करते हैं. केंद्र सरकार ने नरेगा जो बाद में मनरेगा योजना के नाम से हो गई ,को लागू किया. इस योजना में फैलाव अधिक होने से जॉब कार्ड में विसंगतियां सामने आ गई. मजदूरों की सूची में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री अरुण यादव और उनके परिवार के नाम शामिल हो गए. जॉब कार्ड बन गए. यह सिर्फ एक उदाहरण है. उधर इससे से भी अधिक दुर्भाग्यपूर्ण  इस जॉब कार्ड और जॉब ग्यारंटी योजना में मृतकों के नाम तक नाम ही शामिल  ही नहीं किए बल्कि उनके खातों से पैसा तक निकाल लिया गया. विसंगति यहीं खत्म नहीं हुई. मजदूरों के हक़ की जगह कई पंचायतों में मशीनों से नियम के विरुद्ध काम करवा कर ख़ास लोगों को लाभ पहुंचाया. यहां तक कि महिला मजदूरों को सौ-पचास रुपए का लालच देकर जॉब कार्ड भी ठेकेदारों ने हजारों  की संख्या में अपने कब्जे में कर लिए. 

इन सब विसंगतियों के बाद भी सरकार के प्रयासों में कहीं-कहीं उम्मीद नज़र आती है. हाल के वर्षों में महिलाओं के हित में स्वयं सहायता समूह गठित किए. बाकायदा इनमें महिलाओं को जोड़ा. सरकार ने पूरे प्रदेशों में जिला पंचायत अंतर्गत आजीविका मिशन का स्ट्रक्चर तैयार किया. पिछले डेढ़ दशकों में महिला स्वयं सहायता समूह ने काफी हद तक महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूत बनाया. उन्हें स्वाभिमान से जीना सिखाया. वे परिवार में सहयोगी के तौर पहचाने जाने लगीं हैं. यदि हम महिला स्वयं सहायता समूह के स्ट्रक्चर और कामकाज पर निगाह डालें तो समझ सकते हैं कि इस योजना के पीछे महिला मजदूरों को संगठित कर लाभ देना है. 

केवल मप्र में ही लगभग चार लाख महिला समूहों में 60 लाख से ज्यादा श्रमिक महिलाओं को एकजुट कर नए रोजगार से जोड़ दिया गया.वोकल फॉर लोकल आधार पर स्थानीय थीम पर इन महिलाओं को जोड़ा. चाहे डिंडोरी कि महिलाएं गौंडी आर्ट से जुड़ीं हों या महुआ और मोटे अनाज के उत्पादन से जुड़ीं हो या देवास में मजूदर महिलाओं को जमीन मुहैया कर मालिक बनाया हो या नीमच में टेक्स सखियों ने नल-जल योजना से प्रबंधन सीखा हो या बुरहानपुर में मशरूम की खेती तो कभी नल जल योजना में देश में नंबर एक बनाया हो या उज्जैन का मछली पालन तो रतलाम में अचार-पापड़ निर्माण उद्योग हो या उमरिया में टाइगर नेशनल पार्क की लेडी गाइड...ये सब कुछ बानगी है जहां महिलाओं ने देश में खुद की पहचान बनाई. राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू हों या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ही क्यों न हों इन आत्मनिर्भर महिलाओं से मिले और हौसला बढ़ाया.

labour day

 निमाड़ के इलाके में तेज़ दोपहरी में गड्ढे खोदती महिला ,पास में बेखबर बैठा मासूम बच्चा (इमेज क्रेडिट-रविवार विचार ) 

इससे साबित होता है कि यदि महिलाओं की तर्ज पर श्रमिकों को और अधिक संगठित किया जाए और SHG की तरह योजनाओं की मॉनिटरिंग की जाए तो मजदूर दिवस की सार्थता बढ़ जाएगी. आदिवासी इलाकों में आज भी हजारों की संख्या में मजदूर गुजरात और महाराष्ट्र राज्यों में मजदूरी के लिए पलायन कर जाते हैं. इनको अपने ही गांव में काम दिलाने और आत्मनिर्भर बनाने के लिए स्वयं सहायता समूह जैसी योजना को लागू करना चाहिए. रविवार विचार ऐसी सफल होती योजनाओं को समाज के सामने लाता रहेगा, जिसमें मजदूरों को आर्थिक आत्मनिर्भर और स्वाभिमान की कहानी छुपी हो. 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान स्वयं सहायता समूह राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू श्रमिक