कई लोगों के लिए स्पोर्ट्स (sports) अपनेआप को फिट रखने का ज़रिया है. पर कुछ लोग, स्पोर्ट्स के जुनून को अपनी पहचान बना, समाज में बदलाव लाने का ज़रिया समझते हैं. भारत में केवल 5.56 % जनसंख्या खेलों से जुड़ी है, नंबरों में समझे तो 125 करोड़ लोगों में से केवल 57 लाख लोग. महिलाओं की बात करें तो केवल 30 % लड़कियां या महिलायें स्पोर्ट्स खेलती हैं, जो कि 40 % के ग्लोबल एवरेज (global average) से कम है. स्पोर्ट्स की दुनिया में महिला रोल मॉडल (women role model) की कमी, असमान वेतन (unequal pay), लैंगिक असमानता (gender discrimination) कुछ ऐसी वजहें हैं जो महिलाओं को स्पोर्ट्स में जाने से रोकती हैं. इन सभी चुनौतियों के बाद भी, कई महिलायें और लड़कियां स्पोर्ट्स की दुनिया में अपनी अलग पहचान बना रही हैं.
महिलाओं को स्पोर्ट्स में भाग लेने के लिए प्रेरित किया जा रहा है, क्योंकि स्पोर्ट्स समाज में बदलाव लाने का ज़रिया बन सकते है. जब कोई लड़की स्पोर्ट्स में अपना करियर बनाने के लिए कदम उठाती है तो वो इस भ्रांति को तोड़ रही होती है कि लड़कियां स्पोर्ट्स खेलने के सक्षम नहीं. और उसकी हर जीत इस भ्रांति को फीका करती जाती है. लीडरशिप स्किल (leadership skills) और आत्मविश्वास (self-confidence) बेहतर होता जाता है. करियर में पहचान बनाने के बाद उसकी हर बात का वज़न मानों बढ़ जाता है. फिर वो महिला सशक्तिकरण (women empowerment) की मिसाल बन महिलाओं के सामाजिक बदलाव (social change) की अगुवाई करने लगती है. समाज में विकसित उसकी पहचान से कई लड़कियों को होंसला मिलता है.
खेल के ज़रिये महिलाएं सामाजिक बदलाव लाने वाली शक्ति बन जाती हैं. ओलिंपिक (olympic), कॉमन वेल्थ (commonwealth) , एशियाई खेल (Asian games) जैसे मैदानों में भारत का नाम रोशन कर रही हैं. मैरी कॉम, मीराबाई चानू, PV सिंधु, साइना नेहवाल जैसे कई नाम है जो सिर्फ भारतियों को नहीं, बल्कि दुनियाभर की लड़कियों के लिए होंसला बने हैं. हालांकि, जब सुविधाओं, अधिकारों और अवसरों की बात आती है, तो खेल में महिलाओं को कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. यदि खेल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ानी है तो उन्हें समान अवसर, अधिकार, समान वेतन, और सुरक्षा देनी होगी.