SHG के नाम के साथ काम में दम

भले ही नाम की अहमियत हो न हो, लेकिन बात जब हमारी भाषा की आती है, तो अपने घर की बात और स्वाद दोनों याद आ जाते है. इसिलए अपनी भाषा में बात करनी की बात ही कुछ और है.  

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रिसिका जोशी
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naam me kya rakha hai?

Image Credits: Ravivar Vichar

"नाम में क्या रखा है", ये कहा है एक बहुत ही जाने-माने नाटककार, शेक्सपियर ने, उन लोगो या समूहों के लिए, जिनको नामों से नहीं बल्कि उनके कामो से जाना जाता है. बड़े कामों की जब भी बात आती है तो स्वसहायता समूह के बारे में बोले बिना ख़त्म नहीं हो सकती. ये समूह कौनसे  राज्य या देश में है, इस बात को सोचे बिना हम सब सिर्फ ये देखते है की इन समूहों की महिलाओं ने कितने शानदार काम किये है.

भले ही नाम की अहमियत हो न हो, लेकिन बात जब हमारी भाषा की आती है, तो अपने घर की बात और स्वाद दोनों याद आ जाते है. इसिलए अपनी भाषा में बात करनी की बात ही कुछ और है.  

भारत के हर राज्य में न जाने कितने स्वसहायता समूह है जो लाखों लोगो की ज़िन्दगियों को सुधार रहे है. अब बात करे महाराष्ट्र की तो वहाँ स्वयसहायता समूह या 'गट' का बहुत समय से काम कर रहे है.  सबसे पहला गट महाराष्ट्र में अमरावती की महिलाओं ने 1947 में बनाया था और 1988 में पुणे डिस्ट्रिक्ट के चैतन्य ग्रामीण महिला बाल युवक संस्था ने महाराष्ट्र में SHGs बढ़ावा देना शुरू कर दिया था. 

ऐसे ही तमिलनाडु में 1989 में 'महलीर थीत्तम' नाम से एक कार्यक्रम धरमपुरी जिले में 1979 में शुरू किया गया. 1995 में 'इंद्रा महिला योजना' आई जिसने महिला सशक्तिकरण पर पुरे भारत में बहुत काम किया. 1999 में राष्ट्रीय महिला कोष को लाया गया जिसने 2 लाख से भी ज़्यादा महिलाओं को आर्थिक मदद की. ये सारे कदम तमिलनाडु में महिलाओं के भविष्य को ध्यान में रखते हुए लिए गए. 

अगर बात आंध्र प्रदेश की जाए तो वहां पर भी नाम कुछ अलग ही है लेकिन काम में कोई अंतर नहीं है. तेलगु में SHGs को स्वयंसहायता संघालु कहा जाता  है. 1999, अप्रैल 1 को भारत सरकार ने 'डेवलपमेंट ऑफ़ वीमेन एंड चिल्ड्रन इन रूरल एरियाज'(डवक्रे) शुरू किया जो सबसे ज़्यादा आंध्र में ही सफल हुआ. इस मिशन का सिर्फ एक सोच थी की गांव की महिलाओ को इतना पगार मिले जीसे वो अपनी और अपने परिवार की ज़िन्दगी का गुज़ारा कर सकें.

ओडिशा में SHGs को गोष्टी कहा जाता है. आप लोगो को तो पता ही होगा की गोष्टी बातचीत करने को भी कहते है, लेकिन जैसा अपने ऊपर पढ़ ही लिया है, "नाम में क्या रखा है." यहाँ की सरकार ने 2001 के अंतराष्ट्रीय महिला दिवस पर "मिशन शक्ति" की शुरुवात की थी . जिसका मकसद भी महिला सशक्तिकरण था और इस मकसद को कामियाब बनाने के लिए 70 लाख महिलाए इस मिशन में जुड़ गयी. गुजरात, जहाँ इन समूहों को 'जुट' कहा जाता है, एक और राज्य है जहा महिलाओं के भविष्य को ध्यान में रखते हुए 'सखी महिला मंडल' को बनाया और हाल ही में 'प्रधानमंत्री महिला कल्याण योजना' की भी स्तापना की गयी.असम में 'दल' कहे जाने वाले स्वयं सहायता समूहों को भी वहां की सरकार ने बहुत मदद की हमारें अगर हमारे देश के बाहर की बात करे तो, जर्मनी में इन्ही समूहों को 'selpst hil fe grupen' कहते है. श्रीलंका में इन्हे 'महिला मंडल' कहा जाता है.

देखा जाए तो हर राज्य और देश में स्वसहायता समूहों के नाम एकदम अलग है लेकिन इनके कामों में कोई अंतर नहीं है. इसीलिए शेक्सपियर ने बहुत सालो पहले ही बोल दिया था, "What is in the name?"

 

शेक्सपियर what is in the name ? मिशन शक्ति स्वसहायता समूह