रुपये पैसे संभालने में महिलाएं खराब नहीं होती

SHG भारतीय आर्थिक क्रांति और आत्मनिर्भरता का बड़ा कारगर अस्त्र है जिसे पूरी तरह महिलाएं और वह भी ग्रामीण महिलाएं संभाल रही हैं. बुक कीपिंग, अकाउंट मैनेजमेंट, ब्याज सब कुछ समूह में महिलाएं बखूबी संभालती हैं.

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रोहन शर्मा
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women can manage finances

Image Credits: Ravivar Vichar

कुछ लोग गणित में अच्छे होते है कुछ लोग इंग्लिश में, ऐसे ही कुछ लोग वित्तीय मामलों से निपटने में अच्छे या बुरे हो सकते हैं. इसमें जेंडर का कोई रोल नहीं है. लेकिन दुनियाभर की सामाजिक व्यवस्था में ऐसा माना गया है कि महिलाएं आर्थिक विषयों को समझने में कमज़ोर होती हैं. पितृसत्तात्मकता को मज़बूत करने के लिए ही यह धारणा बना दी गई कि पैसे संभालने में महिलाएं खराब होती हैं. यह मिथक इसलिए भी मौजूद है क्योंकि महिलाओं को गणित में कमज़ोर माना जाता है और संख्याओं से निपटने के लिए उन्हें पैसे के मामलों को संभालना मुश्किल लगता है. वैसे भी वित्तीय और आर्थिक मामले ; फैक्ट और फिगर से संबंधित हैं जबकि ऐसा माना गया है कि महिलाएं इमोशन से ज़्यादा काम लेती हैं. 

लोग अक्सर इस तथ्य की ओर इशारा करते हैं कि कम महिलाएं वित्त सेक्टर में काम कर रही हैं. यह भी एक तथ्य है कि कॉर्पोरेट क्षेत्र में काम करने वाली कई महिलाएं भी स्वीकार करती हैं कि उनके व्यक्तिगत आर्थिक मसलों और मामलों को उनके जीवन में पुरुषों द्वारा नियंत्रित किया जाता है. हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि महिलाएं पैसों के मामलों को हैंडल नहीं कर सकतीं. कई मामलों में, महिलाएं अपने पति के लिए वित्तीय मुद्दों को सिर्फ इसलिए छोड़ देती हैं क्योंकि उनकी ज़िन्दगी में वैसे ही इतने काम होते हैं, जैसे घर, बच्चों, और पारिवारिक ज़िम्मेदारियां. कई मामलों में, महिलाएं अपने परिवार में केवल पुरुषों को ही वित्त संभालते हुए देखकर बड़ी हुई हैं और इसलिए इसमें शामिल न होना उन्हें कुछ अजीब नहीं लगता. 

सच तो यह है कि महिलाएं पैसे को बहुत अच्छे से हैंडल कर सकती हैं. एक अच्छा उदाहरण जिसे कई लोग अक्सर अनदेखा कर देते हैं, वह यह कि आम तौर पर महिलाएं ही परिवार का मासिक बजट संभालती हैं. इसका अर्थ यह सुनिश्चित करना है कि पूरे दिन के खर्चों को संभालने के लिए पर्याप्त रुपये पैसे हैं, आपात स्थिति के लिए रुपये अलग रखना, और यहां तक कि बच्चे की शिक्षा या विवाह जैसे भविष्य के खर्चों के लिए बचत करना. अगर महिलाएं पैसे के मामलों में इतनी ख़राब होतीं तो क्या वे यह सब कर पातीं? सच्चाई यह है कि परिवार के बजट को मैनेज करना इसलिए महत्वपूर्ण नहीं माना जाता है क्योंकि यह घर के काम में शामिल होता है जिसे कभी कोई महत्व नहीं मिला क्योंकि इसे एक महिला विषय माना जाता है.

एक अन्य उदाहरण माइक्रोलेंडिंग में शामिल महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों का है. SHG भारतीय आर्थिक क्रांति और आत्मनिर्भरता का बड़ा कारगर अस्त्र है जिसे पूरी तरह महिलाएं और वह भी ग्रामीण महिलाएं संभाल रही हैं.  बुक कीपिंग, अकाउंट मैनेजमेंट, ब्याज, सब कुछ समूह में महिलाएं बखूबी संभालती हैं. इन महिलाओं की आर्थिक समझ का प्रमाण है 14 लाख करोड़ का वित्तीय फ्लो जो भारत में इन महिलाओं ने किया. साथ ही SHG महिलाएं अपना ऋण समय पर चुकाती हैं. स्वयं सहायता समूह का कुल एन पी ए लगभग 1.9 % है.  यह भी देखा गया है कि महिलाएं लाभ कमाने के अवसरों की पहचान करने में बहुत अच्छी होती हैं जिसके लिए उन्हें इन सूक्ष्म ऋणों की आवश्यकता होती है.

समाज को लिंग के लेंस से देखने के बजाय क्षमताओं के लेंस से देखना ज़रूरी है. इस आर्थिक आज़ादी और सशक्तिकरण के चश्में के लेंस को साफ़ किया SHG ने. वित्तीय समझ और आर्थिक क्षमताओं को समाज में आइना भी स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने दिखाया है.  

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