के पैसा बोलता है....

महिला संसार की कई परेशानियों का एक इलाज फाइनेंशियल इंडिपेंडेंस यानि आर्थिक आज़ादी है. बस इसी ओर एक कदम है रविवार, क्योंकि साथ हो तो सफ़र आसान हो जाता है. हम होंगे आपके साथ कदम से कदम मिलाकर चलने के लिये, आपकी आवाज़ बनने के लिए. हम हैं रविवार विचार.

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भावना पाठक
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आज़ादी का मतलब कई ज़ंजीरों को तोड़ना है, नए रास्ते बनाना है, नए ख्वाब बुनना है, हिम्मत और हौसले को नए तरीके से डिफाइन करना है. आज़ादी तो हर मन की चाहत होती है और अगर वो “आर्थिक आज़ादी” हो तो यकीन मानिए वो कई नई राहें खोल जाती है. ये नई राहें होती हैं खुद पर भरोसे की, अपने फैसले खुद लेने की, घर के सारे मुद्दों में अपनी राय को दमदारी से रख पाने की, बेटियों के ख्वाबों को पंख दे पाने की और अपनी ज़िन्दगी की डोर अपने हाथ में रख पाने की. 

मेरी एक करीबी दोस्त है रीना. रीना एक ज़िंदादिल हाउस वाइफ है. बहुत ही सोशल, हंसमुख, और बड़ी बातूनी. तरह तरह का खाना बनाने में इतनी एक्सपर्ट मानो कोई जादू कर रही हो. एक बार उसके हाथ की बनी कोई भी डिश खायेंगे तो यकीन मानें उस टेस्ट को कभी भूल नहीं पाएंगे. एक दिन किसी काम से रीना के यहाँ मेरा जाना हुआ. बड़े ही अनमने मन से उसने दरवाज़ा खोला, उसके चेहरे पर किसी बात की उदासी साफ़ नज़र आ रही थी. पूछने पर बड़ी देर तक तो टाल मटोल करती रही फिर बहुत ही भारी मन से उसने कहा - "यार , मुझे भी कहीं कोई काम दिला दो, घर में चार पैसे कमाकर लाऊंगी तो मेरी भी कुछ पूछ परख होगी. मैंने सच में बहुत बड़ी गलती की शादी के बाद नौकरी छोड़कर. मैं घर पर चाहे दिन रात खटती रहूँ, सबकी फरमाईशों का कितना ही ख्याल क्यों न रखूँ पर आखिर में सुनने को यही मिलता है कि ‘आखिर तुम घर में पड़ी पड़ी करती क्या रहती हो दिनभर, तुम्हारे पास काम ही क्या है? घर के काम भी कोई काम होते हैं ? हम तो दिन भर बाहर मेहनत करते हैं, अपना खून पसीना बहाते हैं तब जाकर चार पैसे घर आते हैं और तुम हो की बस पैसे उड़ाना जानती हो ? पैसे क्या पेड़ पर लगते हैं? क्यों चाहिए इतने पैसे? क्या खरीदना है? खर्चा कम करो, बहुत खुला हाथ है तुम्हारा.” 

रीना ही नहीं ये ताने किसी के भी मन को छलनी कर सकते हैं. ये ऐसी चोट है जो किसी को दिखाई भी नहीं देती और न ही दिखा सकते हैं. रीना आगे बोली - "अच्छा किया जो तूने नौकरी नहीं छोड़ी. आज तुझे पाई पाई के लिए किसी के आगे हाथ तो नहीं फैलाना पड़ता " . रीना की ये बातें पूरी रात दिमाग में घूमती रहीं. सोचा कितना ज़रूरी है खुद के पैरों पर खड़ा होना, पैसे कमाना.  

वैसे देखा जाए तो आर्थिक आज़ादी का मतलब सिर्फ पैसा कमाना और उस पैसे को अपनी मन मर्ज़ी से खर्च कर पाना ही नहीं है बल्कि आर्थिक आज़ादी के बहुत गहरे मायने हैं; इस से न केवल सम्मान हासिल होता है बल्कि आत्मविश्वास भी बढ़ता है. आर्थिक आज़ादी न केवल बराबरी का दर्ज़ा दिलाती है बल्कि इसी के साथ यह गलत के खिलाफ आवाज उठाने की ताकत भी देती है. हक़ से और हक़ के लिए बोलने की हिम्मत देती है. हम भी कुछ हैं इस अहसास को जगाने की आग आर्थिक आजादी से ही मिलती है. घर परिवार ही क्यों; समाज, राजनीति, देश के सभी मुद्दों में दखलंदाजी का जरिया है आर्थिक आज़ादी. 

पैसा कमाने के लिए बाहर निकलने के कई पहलू हैं, घर से बाहर निकलते ही नई दुनिया,  नए लोग, नया एक्सपीरियंस खुल जाता है. हां कभी ठगे छले भी जाते हैं.  हारते जीतते भी हैं. इन्ही सब से दुनिया के दांव-पेंच समझ में आते हैं. आर्थिक आजादी न केवल पैसा कमाना भर है बल्कि बेहतर ज़िन्दगी की ट्रेनिंग का हिस्सा है. 

आर्थिक आज़ादी इन सबके अलावा ब्याज के जाल से छुटकारा दिलाती है. फिजिकल और मेंटल वायलेंस से बचने का तरीका है आर्थिक आज़ादी. सर उठाकर चलना है तो अपने पैरों पर खड़ा होना ही होगा. महिला संसार की कई परेशानियों का एक इलाज फाइनेंशियल इंडिपेंडेंस है. बस इसी ओर एक कदम है रविवार क्योंकि साथ हो तो सफ़र आसान हो जाता है. हम होंगे आपके साथ कदम से कदम मिलाकर चलने के लिये, आपकी आवाज़ बनने के लिए. हम हैं रविवार विचार.

 

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रविवार विचार ख्वाब आर्थिक आज़ादी