"म्हारी छोरियां, छोरों से कम है के...... "

शुरुआत में जनरेशन गैप ने साथ काम करने में थोड़ी बाधा डाली,  पर फिर धीरे-धीरे यह समूह भी यंग बच्चियों से 'कूल' बनना सीख ही गया. इनसे फेसबुक, यूट्यूब सीख रहे हैं...   चलिए देखते हैं पोस्ट ग्रेजुएट टीना अपने गाँव में चल रहे SHG में क्या बदलाव ला रही है.. 

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youth helping SHG women

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नए गाने हो, वेब सीरीज़ हो, या देश दुनिया की ख़बर - आज के यूथ में इनके बारे में सबकुछ बिजली की गति से फैलता है. इस जेनरेशन में लड़कियां कहीं न कहीं लड़कों से आगे हैं, और यह अच्छा भी है. दुनिया बदल रही है तो लड़कियां क्यों न बदलें?  बड़ा अच्छा लगता है जब कोई बेटी… वो क्या कहते हैं? हां… इंटरप्रेन्योर बनती है.  भाभी बता रहीं थी अपनी टीना की पढ़ाई पूरी हो गई, और वह अपने गाँव में ही SHG चला रही है. अरे...  म्हारी छोरी, छोरों से कम है के.  

बचपन से ही कुछ कर दिखाना था मुझे, पर उस समय गांव में कहां इतनी आज़ादी थी. ममता के कहने पर SHG से जुड़ी. 36 की उम्र में पहुंचकर बचपन का सपना पूरा हुआ और वो भी गांव में ही रहकर. पहले तो बचत का मतलब तो बस दाल या चावल के डब्बे में पैसे छुपाना लगता था. अब पता चला बचत कैसे करनी है. कागज़ी काम, हिसाब किताब, सरकारी कामों को समझना मुश्किल था. कभी-कभी टीना मदद कर देती थी. फिर उसने भी समूह के कामों में रूचि ली, काम बढ़ाने के आइडिये दिए. कॉलेज ख़त्म होते ही टीना और उसकी सहेलियों समूह से जुड़ गई. ये नई उम्र की लडकियां सब जानती हैं. मोबाइल पर देखकर खटाखट बता देती हैं मंडी का भाव क्या है, थोक में सामान कौन लेगा, नई सरकारी स्कीम कौन सी है और तो और लोन कैसे मिलेगा. हमारी टीना 17 क्लास पढ़ी हुई है. अच्छा है, अब अपनी बच्चियों को कमाने शहर नहीं जाना पड़ेगा.  

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SHG से जुड़ती इन नई उम्र की लड़कियों में कुछ करने का जज़्बा है. वे नए ट्रेंड को जानती समझती हैं और जागरूक है. सामाजिक-आर्थिक गतिविधियों को अच्छी तरह समझ रही हैं. हमारे समूह ने जो मोमबत्तियां बनाई उसकी तस्वीरें मोबाइल लैपटॉप पे डाली और दूर-दूर से ऑर्डर मिलने शुरू हो गए. इन लड़कियों ने पैसों का हिसाब किताब भी बड़ी समझ से किया और बराबरी से सब सदस्यों में पैसे बांटे. इन बेटियों की ऊर्जा और उत्साह ने हमारे लिए नए अवसर खोले, हमारी इच्छाशक्ति को और मज़बूत किया जिससे आज हमारा बचत समूह बहुत अच्छा काम कर रहा है.

हमें तो रिस्क लेने से बड़ा ही डर लगता है, पर लड़कियों ने समझाया 'जितना ज़्यादा रिस्क, उतना ज़्यादा प्रॉफिट'. फिर क्या था, रिस्क लेते गए और मुनाफ़ा बढ़ता गया. हां, 3 -4 बार थोड़ा घाटा भी हुआ, पर हम पुराने सदस्यों के अनुभव और इन नई लड़कियों की सूझ-बूझ से गलतियां सुधार ली.  मुर्गी पालन हो, किचन गार्डनिंग हो, सिलाई हो, या मोमबत्तियों का बिज़नेस बढ़ाना हो, ग्राम संगठन के सभी समूहों ने साथ मिल तरक्की की और अपनी किस्मत आप लिखी.   

संयुक्त राष्ट्र के पूर्व अध्यक्ष और नोबल पुरस्कार विजेता कोफी अन्नान ने एक बार कहा था, "कोई भी समाज जो अपने युवाओं की ऊर्जा और रचनात्मकता का उपयोग नहीं करेगा वो पीछे छूट जाएगा." शायद यही सोच गाँव की महिलाओं को प्रेरित कर रही है अपने साथ युवा लड़कियों को अपने समूह में शामिल करने के लिए. शुरुआत में जनरेशन गैप ने साथ काम करने में थोड़ी बाधा डाली, फिर धीरे-धीरे यह समूह भी यंग बच्चियों से 'कूल' बनना सीख ही गए. इनसे फेसबुक, यूट्यूब सीख रहें हैं...  अब वह दिन दूर नहीं  जब वो अपनी मोमबत्तियों की मार्केटिंग नए डिजिटल तौर तरीके से किया करेंगे. 

कल ही टीना बता रही थी कि ग्रामीण भारत में 27% से भी ज़्यादा महिलाएं 15 से 29 साल की हैं. गांवों में SHG युवा लड़कियों को अपनी ऊर्जा और स्किल्स को बढाने का बड़ा अवसर देते हैं. मेरी तो देश के सभी SHG को सलाह है कि युवतियों की तादाद इन समूहों में बढ़नी चाहिए. उन्हें कमाई का ज़रिया मिलेगा और हमें उनके नए ज्ञान से फ़ायदा. चलिए मैं अब मैं चलती हूं, मोमबत्तियों के पैकेट की डिज़ाइन बनाई हैं टीना से उसे फ़ाइनल करवाना हैं आज.


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