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संगीत सुनने वाले को मोह लेता है और गाने वाला मन से ख़ुशी महसूस करता है. कुछ ऐसी ताकत है उन सात सुरों में, जो बिना किसी दवा के दिलों का इलाज करने के काबिल है. वैसे तो हर संगीत कि अपनी कुछ ना कुछ खासियत होती ही है, लेकिन भारतीय क्लासिकल म्यूज़िक की पूरी दुनिया कायल है. भले ही क्या गाया जा रहा है वो समझ ना आये लोगों को, लेकिन सुर और संगीत इतना मधुर होता है कि दीवाना बनाए बिना नहीं छोड़ता.
ख़्याल गायकी, भारत से दुनिया को दी हुई एक ऐसी विरासत, जो गायकी की स्टाइल के रूप में किसी चमत्कार से काम नहीं. ख्याल गायकी की शुरुआत 13वी शताब्दी में आमिर खुसरो ने की. उन्होंने दिल्ली घराना या कव्वाल बच्चन का घराना भी स्थापित किया. देश में भले ही आज लोग ख्याल गायकी को मनोरंजन का ज़रिया मान लिया हो, लेकिन यह इससे कई ज़्यादा है.
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पूरी दुनिया में फेमस पाकिस्तानी गायिका-गीतकार, ज़ेबुन्निसा बंगश, ने इस बात को समझ लिया है और 'हीलिंग ख़्याल' नाम का प्रोजेक्ट लांच किया. ज़ेब ने उस्ताद नसीरुद्दीन सामी से दीक्षा प्राप्त की, जो दिल्ली घराने के आखरी बचें दिज्जगों में से एक है. हाईवे (2014), फितूर (2016) और मद्रास कैफे (2013) जैसी फिल्मों में हिट गानों में अपनी आवाज देने वाली बंगश 10 साल से लाहौर में गुरु उस्ताद नसीरुद्दीन सामी से ख्याल की ट्रेनिंग ले रही हैं.
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ज़ेब ने जब उनसे सीखना शुरू किया तब से ही वे समझ गयी थी, की ख्याल गायकी सिर्फ संगीत नहीं, एक हीलिंग प्रोसेस है. अपनी इस एक डेकेड लम्बी जर्नी में उन्होंने सेल्फ डिस्कवरी और हीलिंग का जो बेजोड़ ज्ञान लिया, वो उसे दुनिया के साथ शेयर करना चाहती थी.
ज़ेब कहती है- "उस्ताद सामी ने मुझे जो सिखाया वह सिर्फ संगीत नहीं, ख्याल के माध्यम से हीलिंग की एक बड़ी प्रक्रिया थी. मुझे एहसास हुआ कि मुझे जो सिखाया जा रहा था वह सैकड़ों वर्षों की वंशावली थी, और इस संगीत में आध्यात्मिक स्वर थे."
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बस इसीलिए ज़ेब ने ठान ली की वे इस चमत्कार को दुनिया के सामने लाकर ही रहेंगी. ज़ेब की कड़ी मेहनत के बाद आज वे अपने प्रोजेक्ट, 'हीलिंग ख्याल' को लॉन्च करने के लिए बेहद एक्साइटेड हैं- एक चार महीने की रेजीडेंसी जहां छह लोग, जिन्होंने संगीत के इस रूप को कभी नहीं सीखा है, उस्ताद सामी से प्रशिक्षण लेंगे. साथ ही, जॉन्स हॉपकिन्स से होमायरा ज़ियाद समूह के पर्सनल और कल्चरल वेलबींग पर ख्याल सीखने के असर की जांच करेंगी. इसके रिजल्ट्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी की एक क्लास (एंशिएंट म्यूज़िक एंड रिलिजन) में बताए जाएंगे.
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ज़ियाद और बंगश की मुलाकात 2018 में न्यूयॉर्क में डोरिस ड्यूक फाउंडेशन द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में हुई थी. ज़ेब चुनिंदा कलाकारों में से एक थीं, और दोनों महिलाओं के बीच बातचीत लगभग तुरंत ही शुरू हो गयी. ज़ेब ने कहा, "हमने ख्याल और इसकी माइक्रोटोनल कम्प्लेक्सिटीज़ के बारे में विस्तार से बात की." और तभी इन लोगों ने तय किया की वे इस कला से ज़्यादा उपचार को सबके सामने लाएंगे.
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अपने प्रोजेक्ट को विस्तार से समझते हुए ज़ेब बताती है- “ख्याल एक माइक्रोटोनल प्रणाली पर आधारित है जहां वे 12-नोट प्रणाली को लागू नहीं करते हैं बल्कि एक सप्तक के में 49-नोट प्रणाली को एम्प्लॉय करते हैं. ये सभी माइक्रोटोन हीलिंग प्रोसेसेज के लिए अलग अलग राग और टोन में बंधी हुई है." जब ज़ेब सामी से सीख रहीं थी, तो हर साल उन्हें यही एक बात समझ आती कि शास्त्रीय संगीत मानव जाति की भलाई के लिए बनाया गया था.
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ज़ेबुन्निसा बंगश का यह प्रोजेक्ट एक अलग प्रकार की पहल है, जो जिसे आज तक कभी भी इतने बड़े स्तर पर नहीं शुरू किया गया. जानते सब थे, की संगीत में कुछ तो ऐसे है जो अलग है, लेकिन इसे पहचाना ज़ेबुन्निसा ने और अब पूरी दुनिया की पता चलेगी संगीत की ताकत.
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