जिन महिलाओं ने कभी गांव की सीमा नहीं लांघी उन्हें स्वसहायता समूह ने यह ताकत दी कि वो मंडी जाकर अपना सोयाबीन बेच सकें. अब धुलेट की इन महिलाओं में कोई झिझक नहीं. यह शक्ति है संगठन की और उससे बने SHG की जिसने महिला सशक्तिकरण की नई कहानी लिखी.
जो छोटे किसान हैं उनके लिये मंडी अपनी छोटी उपज ले जाना घाटे का सौदा था. बाज़ार में सब अपना अनाज साथ ले जा नहीं सकते थे क्योंकि सब का वक्त और ज़रूरत अलग अलग थी. तभी दीदियों ने शुरु किया महिला शक्ति उत्पादक समूह. गांव की 15 दीदियाँ 2019 में साथ आईं. शुरुआत में किसी ने 100 ग्राम तो किसी ने आधा किलो सोयाबीन बेचा. दीदियों ने सब खरीद लिया. आज ये महिलाएं मिलकर सीज़न में 60 -70 क्विंटल फ़सल का उत्पादन ख़ुद मंडी में जाकर बेचती हैं.
मुखयमंत्री जीवन शक्ति योजना के तहत स्वसहायता समूह की महिलाएं घर बैठे गणवेश तैयार करने लगी हैं. जिससे छात्र/छात्राओं को निशुल्क और गुणवत्तापूर्ण यूनिफ़ॉर्म उपलब्ध होंगे तथा महिलाओं को 600 रुपये प्रति छात्र/छात्रा के हिसाब से आमदनी हो सकेगी. ग्राम संगठन से उपजा द्वारकाधीश और श्री कृष्णा स्वसहायता समूहों की महिलाओं ने सिलाई में भी रूचि ली और फ़िलहाल वो सिलाई सीख रहीं है. हाल ही में समूह को एक टेंडर मिला है जिसमें वह मध्य प्रदेश के 25 सरकारी स्कूलों के लिए यूनिफ़ॉर्म सिलेंगी. 3700 यूनिफ़ॉर्म सिलने का लक्ष्य इन महिलाओं का पहला इतने बड़े पैमाने का काम है. इस टेंडर ने न केवल उनके मनोबल को बढ़ाया है बल्कि उन्हें यह भी समझाया है कि सफ़लता उनके कम्फ़र्ट ज़ोन के बाहर से आएगी. इसलिये नया सीखना होगा.
जो महिलाएं कभी उस गांव से शहर की तरफ़ आई तक नही थीं, कभी मंडी नहीं गई, कभी बैंक के सामने से नहीं गुज़रीं, वे आज मिलकर अपने समूह का संचालन कर रहीं है. मंडी, बैंक या सरकारी कार्यालय जाना हो, अब इनमें कोई झिझक नही. हाज़िरी का रजिस्टर हो या पैसों का हिसाब, सारे काम इन्होनें अपनी-अपनी समझ के हिसाब से आपस में बांट लिए.