खालवा का गर्ल्स गैराज

प्रदेश का सबसे अलग ये गैराज सिर्फ लड़कियां संभाल रही हैं. ये गैराज गर्ल्स सुर्ख़ियों में है. युवकों के काम समझे जाने वाले इस मैकेनिक काम को लेकर शुरू में बहुत ताने सुने. इन तानों और विरोध ने गांव की बेटियों के आत्मविश्वास को और मजबूत कर दिया.

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सबसे पिछड़े समझे जाने वाले खालवा की गायत्री जैसी पच्चीस से ज्यादा इन लड़कियों ने साबित कर दिया कि वो किसी छोरे से कम ना है. प्रदेश का सबसे अलग ये गैराज सिर्फ लड़कियां संभाल रही हैं.ये गैराज गर्ल्स सुर्ख़ियों में है. युवकों के काम समझे जाने वाले इस मैकेनिक काम को लेकर शुरू में बहुत ताने सुने. इन तानों और विरोध ने गांव की  बेटियों के आत्मविश्वास को और मजबूत कर दिया.

कोरकू आदिवासी समाज के ये लोग रोजगार की तलाश में पलायन और शोषण को मजबूर थे. गैराज संभाल रही सनौली खेड़ा की गायत्री कास्डे कहती हैं -"हमारे परिवार में मान और पिता को मेहनत करते देख हमने भी कुछ करने का सोचा. इसी बीच मैकेनिक की ट्रेनिंग करने गए. बाहर के लोग तो ठीक ,शुरू में घर वालों ने ही विरोध किया. ज़िद की और काम सीखा. मैं चार सौ रुपए कमा ही लेती हूं. " खंडवा में यह ट्रेनिंग की व्यवस्था सपंदन सेवा समिति ने करवाई. धीरे-धीरे ट्रेनिंग लेने वाली लड़कियां एक से दो और देखते ही देखते पचास लड़कियों ने ट्रेनिंग ले ली.

खालवा गांव के ये लोग हर साल पलायन करते रहे. ठेठ आदिवासी इलाके में इन लड़कियों ने अपने पैरों पर खड़े हो कर साबित कर दिया कि परिवार के लिए वो भी खड़ी हैं. सड़कों पर बसों का आवागमन नहीं होने से लोग बाइक जैसे विकल्प पर निर्भर है. ये भी इन मैकेनिक लड़कियों के लिए कमाई का अधिक अवसर दे रहा है. प्रशासन चाहे तो स्पंदन समिति के साथ आजीविका मिशन भी ऐसी लड़कियों को स्वयं सहायता समूह से जोड़ कर दोहरी मदद कर सकती है.

गैराज गर्ल्स खंडवा कोरकू आदिवासी खालवा स्वयं सहायता समूह