'ग्रीन आर्मी' संभाल रही घरेलू हिंसा के ख़िलाफ़ मोर्चा
कुशियारी महिलाएं जो ज़्यादातर दलित, आदिवासी और पिछड़ी जातियों से आती हैं, उन्होंने ग्रीन आर्मी बनाई. मिशन था समाज के पिछड़े वर्गों की महिलाओं को हिंसा से भरी चार दीवारी से बाहर आने और उत्पीड़न, यौन और घरेलू हिंसा के खिलाफ खड़े होने के लिए सशक्त बनाना.
वह कौनसी जगह है जहां सुरक्षा, प्यार, और सम्मान मिलने की उम्मीद हो? ज़्यादातर का जवाब शायद घर हो, लेकिन, सबका नहीं. कई महिलाएं अपने ही घर में हिंसा का शिकार हो रही हैं. घरेलू हिंसा न केवल शारीरिक रूप से चोट पहुंचाती, बल्कि मानसिक, आत्मिक और सामाजिक तौर पर भी गहरा असर डालती है. यह एक गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन और महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान पर वार है. अक्सर, रिश्ता बचाने के दबाव और समाज के सवालों से बचने के लिए पीड़ित महिलाएं आवाज़ नहीं उठाती. पर जब ये सभी एकजुट होती हैं, तो उनकी शक्ति के आगे सारी रूढ़ियों और सवालों को घुटने टेकने पड़ते हैं. कुछ ऐसा ही उत्तर प्रदेश के जंगल महल गांव में देखने को मिला.
पिछड़े वर्गों की करीब 1,800 महिलाएं बनी हिस्सा
कुशियारी महिलाएं जो ज़्यादातर दलित, आदिवासी और पिछड़ी जातियों से आती हैं, उन्होंने ग्रीन आर्मी बनाई. ग्रीन आर्मी का गठन 2014 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के पूर्व छात्र रवि मिश्रा द्वारा गांव में किया गया था. मिशन था समाज के पिछड़े वर्गों की महिलाओं को हिंसा से भरी चार दीवारी से बाहर आने और उत्पीड़न, यौन और घरेलू हिंसा के खिलाफ खड़े होने के लिए सशक्त बनाना. ग्रीन आर्मी में लगभग 1,800 सदस्य हैं. मिश्रा गैर-लाभकारी होप वेलफेयर ट्रस्ट के सह-संस्थापक भी हैं.