पॉलीथिन के उपयोग और बढ़ते खतरे से निपटने के लिए कुछ महिलाओं ने आगे कदम बढ़ाए. गांव में फेंकी गई पॉलीथिन की थैलियां, पन्नियां को मवेशियों द्वारा खा लेने के बाद तड़प -तड़प कर मरते देख महिलाओं का दिल पसीज गया. हर हाल में पॉलीथिन का बढ़ता उपयोग और उसके नुकसान से बचने के लिए महिलाओं ने ठान ली.कपड़े की थैलियों के घटते प्रचलन से गांव की महिलाओं सहित दूसरे लोग भी परेशान थे. जहां चाह,वहां राह की सोच रखने वाली इन महिलाओं के लिए आजीविका मिशन प्रोजेक्ट राह बन कर आ गई. महिलाओं ने अलग-अलग गांव में स्वसहायता समूह बनाए. रास्ता भी मिला और विकल्प भी.
आजीविका मिशन ने इस प्रोजेक्ट पर खास फोकस किया. मिशन की परियोजना प्रबंधक सीमा निगवाल ने बताया कि आरसेटी द्वारा यह ट्रेनिंग दिलवाई गई.यह ट्रेनिंग लगातार जारी रहेगी.महिलाओं को लगातार प्रोत्साहन दिया जा रहा है. नरेश शेंद्रे का कहना है - यह ट्रेनिंग खास विशेषज्ञों ने महिलाओं को दी. महिलाएं केवल पांच सौ रुपए में अपना कामकाज शुरू कर सकती है. ट्रेनर हितेश पंवार ने बताया कि रद्दी पेपर से किराना सामान में उपयोग कर सकते हैं. आजकल शॉपिंग मॉल में जी पेपर बेग का उपयोग करते हैं, उनको बनाने कि भी ट्रेनिंग दी गई. ये पेपर थोक में सस्ते मिल जाता है. अब तक वे खरगोन के अलावा धार, हरदा, बैतूल, छिंदवाड़ा शहरों में भी महिलाएं ट्रेनिंग ले कर काम शुरू कर चुकी हैं.
जिला पंचायत की सीईओ ज्योति शर्मा कहती हैं -" यह प्रोजेक्ट बहुत सफल रहेगा. समूह की महिलाओं ने मन लगा कर ट्रेनिंग ली. ऑफिस फाइल्स बनाना भी सीखी जिसका उपयोग हर ऑफिस में किया जाता है. और भी समूह की महिलाओं को इसकी ट्रेनिंग दिलवाई जाएगी.मुझे ख़ुशी है कि जिले में महिलाएं कई तरह के रोजगार से जुड़ कर परिवार में कंधे से कंधा मिला कर साथ चल रहीं है. "कलेक्टर शिवराज सिंह वर्मा कहते हैं -" जिले की महिलाएं बहुत मेहनती हैं. समूह को अलग-अलग क्षेत्रों में रोजगार के अवसर दिलवाए जाएंगे. जिले में बहुत संभावनाएं हैं.महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए स्थानीय विकल्पों पर जोर दिया जा रहा है. "