गुंडाराज ख़त्म कर SHG महिलाओं ने बनाया पार्क को कमाई का ज़रिया

यह अद्भुत पार्क पिछले दो साल से 27 एकड़ जमीन पर चल रहा है, जो किसी ज़माने में अतिक्रमण वाली संपत्ति थी. पहले शासकीय 27 एकड़ भूमि पर गांव के ही दबंग व्यक्तियों ने कब्जा कर लिया था. प्रशासन ने अतिक्रमण हटाकर बेजोड़ सदुपयोग किया.

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हरियाली से भरे इलाके में एक बोर्ड दिखाई देता है जिसमें पर कुछ पार्क जैसा लिखा हुआ है. जैसे ही अंदर पहुंचे तो सीन ही बदल गया. यह कोई आम पार्क नहीं बल्कि भारतीय संस्कार का एक बगीचा था. मध्य प्रदेश के सीहोर ज़िले में मनरेगा और आजीविका पार्क की बात ही कुछ और है. यह एक गौशाला (गाय आश्रय) तो है ही साथ में चरागाह, सामुदायिक वृक्षारोपण, सामुदायिक पोषण वाटिका (पोषण उद्यान) और मछली पालन केंद्र सब एक साथ. इन सबसे भी ख़ास यह की इसकी देखभाल और प्रबंधन कर रही है 20 SHG की महिलाएं.   

यह अद्भुत पार्क पिछले दो साल से 27 एकड़ जमीन पर चल रहा है, जो किसी ज़माने में अतिक्रमण वाली संपत्ति थी. पहले शासकीय 27 एकड़ भूमि पर गांव के ही दबंग व्यक्तियों ने कब्जा कर लिया था. प्रशासन ने अतिक्रमण हटाकर बेजोड़ सदुपयोग किया. आज यह सीहोर जिला मुख्यालय से लगभग 160 किलोमीटर दूर, भाऊखेड़ी गाँव की 284 महिलाओं के लिए आजीविका का स्रोत है. इस साल अकेले होली के दौरान, यहां से महिलाओं ने 2,200 गाय के गोबर के उपले और 3,600 गौकष्ट (गाय के गोबर की लकड़ी) बेचकर 40,000 रुपये कमाए. उत्पादन और कैसे बिक्री होगी, इस पर सामूहिक निर्णय स्वयं सहायता समूह की महिलाएं ही लेती हैं. इस प्रयास ने उन्हें आत्मनिर्भर बना दिया है, साथ ही आत्मविश्वास भी भर दिया है.  

कन्हैया गौशाला मध्य प्रदेश सरकार की परियोजना गौशाला के तहत अस्तित्व में आई. सीहोर जिला पंचायत के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हर्ष सिंह ने बताया- " हम गौशाला बनाने के लिए जमीन की तलाश कर रहे थे, लेकिन भाऊखेड़ी ग्राम पंचायत में उपयुक्त भूखंड नहीं मिला. लगभग उसी समय, हमें राजस्व विभाग की 28 एकड़ भूमि पर अतिक्रमण की सूचना मिली. हमने अतिक्रमणकारियों को बेदखल कर दिया और गौशाला के लिए इसे अंतिम रूप दिया. गौशाला-चरागाह (गौशाला और चरागाह) के लिए 28 एकड़ भूमि में से आठ आवंटित की गई थी."

पार्क का प्रबंधन करने के लिए SHG महिलाओं का चयन किया गया, जो परियोजना में महिलाओं की भागीदारी पर आपत्ति जताने वाले गांव के नेताओं और अन्य पुरुष सदस्यों के साथ अच्छी तरह से नहीं बैठती थी. सिंह, आजीविका मिशन के जिला परियोजना प्रबंधक दिनेश बरफा और नोडल अधिकारी धर्मेंद्र उपाध्याय के साथ घर-घर जाकर महिलाओं और उनके परिवारों की काउंसलिंग की, जिसके बाद वे इस प्रयास में शामिल हो गए.

फिर कदम बढ़ाया मछली पालन की और छह महीने के बाद ही 7,000 किलोग्राम मछली का उत्पादन किया और इसे भोपाल के बाजारों में 90-110 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बेचा. इस से 3 लाख रुपये का लाभ कमाया. पार्क के किनारे नींबू के 120 पौधे लगाए. तीन साल में 120 पौधों से प्रति पौधा 50 किलो फल निकला, जिसे उन्होंने भोपाल में बेचा. इसी तरह, 400 थाई गुलाबी अमरूद के पौधे भी लगाए , जिससे पिछले तीन वर्षों में अधिक मुनाफा हुआ. यह सिर्फ़ पार्क नहीं, ना जाने कितने स्वयं सहायता समूह की महिलाओं के लिए रोजगार और कमाई का साधान बनी है ये भूमि और इस पर अभी भी और काम होने की पूरी संभावना है. सिर्फ़ मध्य परदेशी ही क्यों, ऐसे पार्क हर राज्य के हर जिले में होने चाहिए, जिससे वहां के ज़्यादातर स्वयं सहायता समूह इन पार्क्स से जुड़कर अपनी जीविका बना पाए.

फिर कदम बढ़ाया मछली पालन की और छह महीने के बाद ही 7,000 किलोग्राम मछली का उत्पादन किया और इसे भोपाल के बाजारों में 90-110 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बेचा. इस से 3 लाख रुपये का लाभ कमाया. पार्क के किनारे नींबू के 120 पौधे लगाए. तीन साल में 120 पौधों से प्रति पौधा 50 किलो फल निकला, जिसे उन्होंने भोपाल में बेचा. इसी तरह, 400 थाई गुलाबी अमरूद के पौधे भी लगाए , जिससे पिछले तीन वर्षों में अधिक मुनाफा हुआ. यह सिर्फ़ पार्क नहीं, ना जाने कितने स्वयं सहायता समूह की महिलाओं के लिए रोजगार और कमाई का साधान बनी है ये भूमि और इस पर अभी भी और काम होने की पूरी संभावना है. सिर्फ़ मध्य परदेशी ही क्यों, ऐसे पार्क हर राज्य के हर जिले में होने चाहिए, जिससे वहां के ज़्यादातर स्वयं सहायता समूह इन पार्क्स से जुड़कर अपनी जीविका बना पाए.

आजीविका पार्क सीहोर ज़िले में मनरेगा