जिस BPL कार्ड को बनवाने के लिए परिवार ताकत झोंक देते हैं. पंचायतों के चक्कर काटते रहते हैं. लोग इस कार्ड से सरकार मिलने वाली मुफ्त की सुविधाओं को लेने से नहीं चूकते ,वही BPL कार्ड धार जिले के छोटे से गांव खंडवा की रहने वाली गंगा दीदी ने पंचायत को वापस लौटा दिया. खुद के पैरों पर खड़े होकर वह आत्मनिर्भर बनी. अपनी मेहनत और प्रयासों को आजीविका मिशन ने पंख लगा दिए. गंगा दीदी आज जिले की मैनेजमेंट गुरु बन चुकी है."लगातार पांच साल मेहनत की. जब कमाई बढ़ी तो हिसाब लगाने बैठ गई. पति को भी साथ बिठा लिया. मेरी तो ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं रहा, जब लगातार कमाई एक जैसी बढ़िया होने लगी. हमने सोचा मेहनत का फल मिला. ज़िंदगी सुधर गई. एक दिन पंचायत ऑफिस गए और बीपीएल कार्ड जमा करा आए. " लगातार मेहनत करने वाली धार जिले के पिछड़े गांव छोटा खंडवा की गंगा बाई ने कही. गंगा बाई कहती है - " यदि सोच लो तो हम अपनी ज़िंदगी को अच्छे से जी सकते हैं. मुझे गर्व है कि प्रशासन और आजीविका मिशन के सहयोग से मैं लखपति समूह में शामिल हो गई."
किसी समय पहले मजदूरी और फिर सब्जी बेचने वाली गंगा बाई आज धार जिले में हर काम को रोजगार के नए अवसर में बदलने की सोच रखती है.
कई समूह और इससे जुड़ी महिलाएं गंगा बाई से धंधे का हुनर सीखने और सलाह लेने पहुंच रही हैं.वह अपना कारोबार तो कर ही रही लेकिन दो सौ लोगों के लिए भी रोजगार के रास्ते खोल दिए. गंगा दीदी को इलाके में चिप्स वाली दीदी के नाम से भी पहचान मिल गई. यह क्षेत्र का सबसे बड़ा कारोबार बन सकता है.
कुछ साल पहले तक मजदूरी करने वाली गंगा दीदी ने नवदुर्गा स्वसहायता समूह का गठन किया. गंगा दीदी अपने संघर्ष की कहानी कहते हुए बताती हैं -" शुरू में समूह की सभी महिलाओं ने पच्चीस रुपए हर सप्ताह बचत शुरू किए. यह रकम भी बहुत ज्यादा थी. समूह से लोन लेकर सब्जी बेचना शुरू की.हमें बैंक से पचास हजार का लोन मिल गया. किराने का सामान भी रखने लगे. पति भी मजदूरी के बाद विक्रम चौधरी ने भी साथ दिया. फिर हमने मुड़ कर पीछे नहीं देखा."
जिला प्रशासन और जिला पंचायत अधिकारियों के लिए गंगा दीदी आत्मनिर्भरता की मिसाल बन गई है. फेडरेशन और एक संगठन ने आलू चिप्स का कारखाना खंडवा गांव में खोलने की योजना बनाई. जिला पंचायत के अधिकारियों के साथ फेडरशन के अधिकारी आए. समूह की महिलाओं को योजना और कमाई का ये जरिया समझाया ,लेकिन नतीजा ज़ीरो. अधिकारी पहली बार में निराश लौट गए. गांव की ममता ने बताया- " मेरे शिव शक्ति समूह के सदस्य भी बैठक में शामिल हुए थे. सभी को लगा कि बाहर वालों का कारखाना है. पैसा न डूब जाए. इस बैठक के बाद गंगा दीदी ने समझाया कि पंचायत की परियोजना प्रबंधक अपर्णा पांडेय पर भरोसा करो. और गंगा दीदी की बात पर सब जुड़ते चले गए.
मिसाल बन चुकी गंगा दीदी कहती हैं - " वह समाज में बदलाव चाहती थी. इसलिए हिम्मत नहीं हारी. किराने की दुकान जब पति ने संभाली तो लगा कुछ और करना चाहिए. बस इसी सोच को लेकर मैं सैनेटरी नैपकिन बना कर बेच लगी.गांव में पिछड़ी सोच को ख़त्म कर युवतियों और महिलाओं को कपड़े की जगह नैपकिन का महत्व बताती हूं."