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Image Credits : Textile Value Chain
स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) कारीगरों और बुनकरों को एक साथ आने, संसाधनों को बांटने, नए कौशल सीखने, ऋण तक पहुंचने और अपने उत्पादों को ग्राहकों तक पहुंचाने के लिए मंच दे रहे हैं. तकनीक के बढ़ते इस्तेमाल की वजह से पारम्परिक हैंडलूम और हेंडीक्राफ्ट में कमी आती जा रही है. इस कमी को दूर करने के लिए SHG काफी योगदान दे रहे हैं. 'वोकल फॉर लोकल', 'आत्मनिर्भर भारत', 'वीवर मुद्रा स्कीम', और 'GI टैग' जैसी कई पहलों के ज़रिये सरकार इन समूहों को प्रोत्साहन दे रही है.
ईको-फ्रेंडली उत्पादों की बढ़ रही मांग
SHG कारीगर और बुनकर नई डिज़ाइनों, आधुनिक तकनीकों और ईको-फ्रेंडली सामग्रियों का इस्तेमाल कर ऐसे उत्पाद बना रहे हैं जिसकी मांग घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों बाज़ारों में बढ़ रही है. समूह का हिस्सा होने से कारीगरों और बुनकरों को एक-दूसरे का समर्थन मिल पाता है। यह उन्हें साथ प्लानिंग करने, चुनौतियों का समाधान करने और सरकारी योजनाओं तक पहुंचने में मदद करता है।