सुधा मूर्ति, एक ऐसा नाम है जो साहित्य, परोपकार और सशक्तिकरण का प्रतीक है. एक कुशल लेखिका, सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षा की प्रबल समर्थक, सुधा मूर्ति की जीवन यात्रा साहित्य को बदलाव का ज़रिया बनाने और समाज के लिए कुछ कर गुज़रने की भावना का एक प्रमाण है.
सुधा मूर्ति, एक ऐसा नाम है जो साहित्य, परोपकार और सशक्तिकरण का प्रतीक है. एक कुशल लेखिका, सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षा की प्रबल समर्थक, सुधा मूर्ति की जीवन यात्रा साहित्य को बदलाव का ज़रिया बनाने और समाज के लिए कुछ कर गुज़रने की भावना का एक प्रमाण है.
सुधा मूर्ति ने सामाजिक मुद्दों और मानवीय भावनाओं को शब्दों में ढाला
19 अगस्त, 1950 को कर्नाटक के शिगगांव में जन्मी सुधा मूर्ति के मन में बचपन से ही किताबों के प्रति जिज्ञासा और गहरा लगाव था. उन्होंने उस समय इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की, जब महिलाओं के लिए पढ़ना भी मुश्किल था. सुधा मूर्ति की साहित्यिक यात्रा उनकी लघु कहानियों के संग्रह "हाउ आई टीच माई ग्रैंडमदर टू रीड एंड अदर स्टोरीज़" से शुरू हुई. "द डॉलर बहू" और "महाश्वेता" जैसे उनके उपन्यासों ने सामाजिक मुद्दों, महिला सशक्तिकरण और मानवीय भावना के रंगीन नज़रिये को शब्दों में ढाला. काल्पनिक कथाओं को सामाजिक संदेशों के साथ जोड़ा.