अभी इंदौर में एक महिला प्राचार्य की हत्या को दो महीने भी ठीक से न हुए. लोग इस घटना को भूल पाते इसके पहले धार में एक निर्दोष बेटी को सिरफिरे आशिक़ ने गोली से भून दिया. हौसले इतने बुलंद की जो पुलिस उसे गिरफ्तारी करने गई ,उस पर फायरिंग कर दी. धार के बसंत विहार कॉलोनी इलाके में बुधवार की सुबह 22 साल के दीपक राठौर ने संजय नगर की पूजा की गोली मार कर हत्या कर दी. सड़क पर बेसुध गिरी पूजा मालवीय ने वहीं दम तोड़ दिया. यह विडंबना है कि इस निर्दोष बेटी का खून उस इलाके की सड़क पर बिखरा जहां से कोर्ट की दूरी चंद क़दमों पर है और घटना के दिन ही वह न्याय की उम्मीद लिए फिर पहुंचने वाली थी.रात तक पुलिस ने घेराबंदी कर उसे धरदबोचा. इस बीच आरोपी दीपक ने पुलिस पर फायरिंग की. यह घटना भी कुछ समय बाद भूला दी जाएगी, लेकिन काम के तलाश में अपनी तीन बेटियों के साथ रह रही उसकी मां और परिवार को ज़िंदगीभर यह ज़ख्म सालता रहेगा.
पूजा
इस पूरी घटना ने समाज को जहां शर्मसार कर दिया वहीं पुलिसिया ढीली कार्रवाई और शिकायतों की अनदेखी पर एक बार फिर सवाल खड़े हो गए. इस घटना और इसके पीछे की कहानी को यदि हम गहराई से समझें तो परत दर परत लापरवाही के दस्तावेज खुल जाएंगे.इस घटना में और पिछले दिनों इंदौर में प्राचार्य विमुक्ता की आग लगाकर हत्या वाली घटना में कुछ समानता नज़र आती है.इन दोनों घटनाओं में पुलिस की कार्रवाई को हल्के में लेना फरियादी की जान पर किस तरह बन आती है वह साफतौर साबित होता है.बच्चियों की सुरक्षा और सूचना पर पुलिस की तत्काल कार्रवाई जैसे वादे और आदेश की इन घटनाओं ने धज्जियां उड़ा कर रख दी।
इस घटना में दो साल पहले 2020 में मासूम पूजा ने आरोपी दीपक के खिलाफ थाने में रिपोर्ट दर्ज की. यह रिपोर्ट उसके लिए दुश्मनी और मौत का कारण बन गई. गरीब परिवार की पूजा लोगों के घरों में काम कर परिवार के भरण पोषण में साथ दे रही थी. दो छोटी बहनें पायल और नीतू पेट्रोल पंप पर काम करती थी. इस रिपोर्ट के बाद से ही दीपक ने पूजा से दूरी बनाने की बजाय और ज्यादा परेशान करने लगा. यहां तक कि कोर्ट में ही पूजा को धमकाते हुए यह केस वापस लेने का दबाव बनता रहा. बावजूद पूजा और उसका परिवार इस भ्रम में भरोसा पाले बैठा था की पुलिस आरोपी दीपक को तगड़ा सबक सिखाएगी. एक परिचित से वकील की फ़ीस एक हजार रुपए उधार लेकर आ रही पूजा का दीपक ने पीछा किया और मार डाला. बहन पायल भी डर कर निढाल होकर गिर पड़ी. दबे कुचले समाज के ऐसे छेड़छाड़ के प्रकरणों में पुलिस की कार्रवाई और सजा में देरी का दुष्परिणाम पूजा की मौत है. आखिर पूजा ने जो हिम्मत एक सिरफिरे आशिक़ के खिलाफ दिखाई. समाज में गुमनाम होकर भी उसे सबक सिखाने के लिए आवाज़ उठाई उसे न्याय मिलने की जगह मौत दी गई. इसका जवाब अब न पुलिस के पास है और न समाज के पास न मानव अधिकार के लोगों के पास.
अब आइए इंदौर के कॉलेज ऑफ़ फॉर्मेसी की प्राचार्य विमुक्ता के केस की आपको याद दिलाते हैं. इस केस में भी सिरफिरे आरोपी आशुतोष की हरकतों को लेकर प्राचार्य और कॉलेज स्टाफ ने थाना सिमरोल में कई बार सूचना दी. रिपोर्ट लिखवाई. समय पर कोई न सख्ती न कार्रवाई. नतीजा बैखोफ आरोपी आशुतोष ने रैकी की. प्लान बनाया. और एक सॉफ्ट टार्गेटेड लेडी ऑफिसर को पेट्रोल छिड़कर जिंदा जला दिया. एक होनहार प्रशासनिक अधिकारी और चित्रकार महिला की योग्यताएं भी साथ दफन हो गई. परिवार की रीढ़ टूट गई. मोमबत्तियां और श्रद्धांजलि आयोजनों के बाद बस अब आरोपी की पेशियां चल रहीं हैं.
इधर पूजा मालवीय के मामले में भी पुलिस कड़ी धाराओं का उपयोग कर समय पर आरोपी को सजा दिलवा देती तो पूजा आज हमारे बीच होती. दोनों प्रकरणों में पुलिस का महिलाओं की शिकायतों को हल्के में लेना परिवार को भरी पड़ गया.प्रशासन ने ताबड़तोड़ आरोपी के घर पर बुलडरोज़र चलवाए. उन्हें ढहा दिया. प्रशासन और पुलिस इसे त्वरित कार्रवाई मानकर खुद की पीठ चाहे थपथपा ले,लेकिन पूजा के सपने बिखरे खून के साथ बिखर गए. परिवार और मां, बहनों की उम्मीदें पूजा की बंधी हुई अर्थी के साथ विदा हो गई. पूजा हम आपको न सुरक्षा दे सके न ही आरोपी को वक़्त पर सजा दिला सके.आखिर ये घटनाओं का सिलसिला कब रुकेगा !मनचलों और ऐसे आरोपियों में पुलिस का खौफ हम कब देख सकेंगे। पूजा हम शर्मिंदा हैं.