Periods के stress के वजह से की आत्महत्या...

खबर है मुंबई के मालवानी इलाके में, एक 14 वर्षीय लड़की ने पहली बार मासिक धर्म यानि periods आने के बाद तनाव का अनुभव करते हुए आत्महत्या कर ली. ये लड़की, जिसे इस समाज ने periods को लेकर इतना डरा दिया कि उसने मरना बेहतर समझा.

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रिसिका जोशी
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period stress relief

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आज सर एक बार फिर शर्म से झुक गया है मेरा. जब भी सोचती हूं कि इससे बुरा कुछ नहीं हो सकता, ये समाज मेरे सामने कुछ ऐसा लाकर रख देता है जो असहनीय हो जाए. मैं कुछ बहुत अच्छा होने या अच्छा बनने की उम्मीद तो कर ही नहीं रही हूं इस समाज से, लेकिन आज कि इस खबर को मैंने पढ़ा तो मेरे आखों में आसूं आ गए.

मुंबई में 14 साल की लड़की ने की आत्महत्या

खबर है मुंबई के मालवानी इलाके में, एक 14 वर्षीय लड़की ने पहली बार मासिक धर्म यानि periods आने के बाद तनाव का अनुभव करते हुए आत्महत्या कर ली. ये लड़की, जिसे इस समाज ने periods को लेकर इतना डरा दिया कि उसने मरना बेहतर समझा. उस लड़की ने periods के तनाव को सहने से बेहतर अपनी ज़िन्दगी को खत्म करना समझा. वह जिस society में रह रही है, उनके सामने periods की बात करने से बेहतर उसे हमेशा के लिए शांत हो जाना लगा.

अब मैं बोलूंगी की गलती हमारी है तो कुछ लोग आएंगे कहने के लिए कि हमनें क्या किया, हम तो अपने घर पर लड़कियों को कुछ भी करने से नहीं रोकते और ना ही उन्हें कही आने जाने से मना करते है... ये ही तो सवाल है, अपने periods में लड़की को जो करना है वो उसकी मर्ज़ी होनी चाहिए की नहीं? हम होते कौन है उनको बताने वाले या उनको permission देने वाले? उनको किसी भी काम को करने के लिए permission देने की position में रखना ही ये साबित करता है कि ये आधी आबादी किसी ना किसी मामले में कम है या पुरुषों से दबी हुई है.

मैं ऐसा बिलकुल नहीं कह रही कि इस लड़की ने जो कदम उठाया वो सही है... आत्महत्या कभी भी किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकती... लेकिन एक बार ज़रा उस बच्ची की मनोस्तिथि के बारे में सोचिए... क्या हो रहा होगा उसके साथ... क्या कहा गया होगा उसे ऐसा, क्या उसके परिवार वालों का कसूर है इस आत्महत्या में, क्या उसे समाज में पीरियड्स के बाद इतनी शर्म का सामना करना पड़ा होगा, क्या इस हादसे को टाला जा सकता था, क्या हम और आप इस तरह के हादसों को रोकने के लिए कुछ कर सकते है... सवाल इतने है लेकिन फिर भी मैं पूछते हुए नहीं थकुंगी...

मैं भी एक लड़की हूं, जब मेरे पीरियड्स शुरू हुए थे तब मेरी मां ने मुझे समझाया था, जब मेडिकल स्टोर पर पैड खरीदने जाती थी तो देखती थी कि आसपास कोई आदमी तो नहीं है जो मेरी बात सुन रहा होगा... फिर वो मेडिकल स्टोर वाला भी मुझे काली पन्नी में रखकर पैड देता था...उस मेडिकल स्टोर से घर तक का सफर इतना डरावना लगता था... कि कही किसी ने पूछ लिया कि कहा गयी थी तो क्या कहूंगी, किसी ने देख लिया तो, कुछ बोल दिया तो, और ना जाने क्या क्या...

लेकिन आपको क्या लगता है, एक लड़की कब तक इस डर में रह सकती है? एक ना एक दिन तो उसे खुल कर यह accept करना ही पड़ेगा ना कि उसके periods चल रहे है. लेकिन अगर इसी तरह से लड़कियां डरती रहीं, खुद को छुपाती रहीं, चुप रहीं, तो ये परेशानी कभी ख़त्म नहीं होगी. हम एक समाज में रहकर आगे बढ़ने की बातें करते है, और फिर इस तरह की ख़बर  सामने आए तो कुछ वक़्त सोच कर चुप हो जाते है. लेकिन असलियत तो ये है  कि सरकार किसी की भी बने जब तक एक लड़की खुद को लेकर confident महसूस नहीं करेगी, देश का आगे बढना नामुमकिन है!