ये कहते हुए बहुत बुरा लगता है लेकिन भारत देश में घरेलु हिंसा एक बहुत बड़ा और आए दिन खबरों में आने वाला मुद्दा है. ये एक ऐसी अनहोनी है जो हमारे देश की ज़्यादातर लड़कियों और औरतो को अपने ही घरो में सहन की है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के हिसाब से लगभग एक-तिहाई विवाहित महिलाओं ने अपने जीवन में कभी ना कभी अपने पति से शारीरिक, यौन या भावनात्मक हिंसा को सहा है.
शायद हमे थोड़ी ख़ुशी तब होती जब ये संख्या साल दर साल कम हो रही होती. लेकिन शर्म की बात ये है, कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के हिसाब से, पिछले कुछ सालों में घरेलू हिंसा के मामले लगातार बढ़े है. 2016 में जो मामले 107,016 थे वो बढ़कर 2019 में 147,379 हो गए. गौर करने वाली बात ये भी है कि ये सारे मामले तो सिर्फ वो है जो दर्ज किया गए. लेकिन ना जाने कितनी महिलाएं ऐसी भी होंगी जो सब कुछ सहन कर भी चुप बैठने पर मजबूर है, क्युकि उन्हें समाज का, बदले का, और साधनो तक ना पहुंच पाने का डर सता रहा होगा. भारत में घरेलु हिंसा का दीमक इतनी बुरी तरीके से फ़ैल चूका है कि कुछ औरतों ने इस परेशानी के साथ जीने को अपना नसीब ही समझ लिया है.
हां ये बात सही है कि भारत सरकार घरेलु हिंसा को ख़त्म करने कि सोच रख के बहुत सी नयी नयी योजनाएं लाइ जैसे , घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005, वन स्टॉप सेंटर्स (ओएससी), वन स्टॉप सेंटर्स (ओएससी), निर्भया फंड, आदि. ये तो वो कुछ प्रयास है जिनके बारे में ज़्यादातर लोगो ने सुना होगा. और ऐसे प्रयासों कि कोई कमी नहीं है भारत में. लेकिन फिर भी अगर हम भारत में घरेलु हिंसा से जुड़े आकड़ो पे नज़र डालेंगे तो , शायद एक आर सोचने पे मजबूर हो जाएंगे.
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-4 (2015-16) के हिसाब से, 15-49 साल की 30% महिलाओं ने 15 साल जैसी नाज़ुक उम्र से शारीरिक हिंसा को सहा है. इसी सर्वे में पाया गया कि 31% शादीशुदा महिलाओं के पतियों ने ही उनके साथ शारीरिक शोषण जैसा घिनौना काम किया.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो बने कहा कि भारत में महिलाओं के साथ अपराधों के 4.05 लाख से ज़्यादा मामले दर्ज किए गए, जिनमें घरेलू हिंसा के 1.5 लाख से ज़्यादा मामले थे.फिर जब 2020 में कोरोना काल आया तो महिलाओं के साथ अपराधों में 2.5 गुना तेजीं आ गयी. और इन सभी आकड़ो में से ज़्यादातर आकड़े आपको ग्रामीण क्षेत्र कि मिलेंगी. और हम इस बात को बिल्कुल नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते कि ये सिर्फ वो संख्या है, जिन्हें आवाज़ उठा के सामने लाया गया.
दुःख तो होता है , लेकिन ये जान के सुकून भी मिलता है कि आज कि महिलाएं अपनी आवाज़ उठाने से डर्टी नहीं है, और बेख़ौफ़ होकर आपबीती बताती है. ऐसी ही महिलाएं जब एक साथ जुड़ जाए तो, इन्हे तोड़ पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जाए. हमारे देश में ऐसे बहुत सारे स्वयंसहायता समूह है, जो घरेलु हिंसा से परेशान महिलाओं कि आवाज बन रहे है. ऐसी महिलाएं जो शायद अपने ऊपर बीती परेशानी किसी को नहीं बता पा रही , वो स्वयंसहायता समूह से मदद भी ले रही है , और अपनी परेशानी को ख़त्म कर भी रही है. इन समूहों में घरेलु हिंसा से जूझ रही महिलाओं को हर वो बात सिखाई जाती है जिससे उन्हें आर्थिक, सामाजिक और, पारिवारिक रूप से आजाद होने का मौका मिले.
परेशानी बहुत बड़ी है और इसीलिए इसे जड़ से ख़त्म करने की ज़िम्मेदारी सिर्फ सरकार या SHG की महिलाओं पर नहीं बल्कि हर उस घर में होनी चाहिए जहां माँ बेटियां रहती है. कानून की मदद लेना तो सिर्फ इलाज है, अगर इस दीमक को जड़ से हटाना है तो शुरुवात खुद के अंदर से ही करनी होगी. महिला सुरक्षा के बारे में पढ़ना, अपने बेटो को महिलाओं की इज़्ज़त करना सीखना, अगर कुछ गलत होता हुआ दिखे तो उसके खिलाफ आवाज उठाना, ये सारे वो कदम है जो देश का हर इंसान अगर उठाएगा तो, अपराध होना तो दूर, महिलाओं के अंदर जो ताकत आएगी उसे रोक पाना किसी के बस में नहीं होगा.