'नो एंट्री' से शुरू हुआ #BoycottRohiniCinemas

चेन्नई के रोहिणी मूवी थिएटर ने एक जनजातीय परिवार को एंट्री देने से इंकार कर दिया जबकि उनके पास टिकट थे. वे तमिल फिल्म पाथु थला देखने आये थे. ट्विटर पर #BoycottRohiniCinemas ट्रेंड होना शुरू हो गया और सोशल मीडिया पर उनकी अच्छी क्लास लगी.  

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मिस्बाह
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आर्टिकल 15 भारत के हर नागरिक को पब्लिक प्लेसेस में बिना भेद-भाव के आने-जाने का अधिकार देता है. भारत के संविधान की यह सबसे महत्वपूर्ण धारा है जो समानता और नागरिक अधिकार को आखिरी इंसान तक पहुंचाती है. पर शायद इस अनुच्छेद के बारे में चेन्नई के एक थिएटर ने कभी सुना नहीं, तभी इतनी आसानी से इसका उलंघन किया. चेन्नई के रोहिणी मूवी थिएटर ने एक जनजातीय परिवार को एंट्री देने से इंकार कर दिया जबकि उनके पास टिकट थे. ये परिवार नारिकुरवा समुदाय से ताल्लुक रखता है. वे तमिल फिल्म पाथु थला देखने आये थे.  थियेटर में मौजूद लोग परिवार का साथ देने लगे और देखते-दखते थिएटर स्टाफ के साथ विवाद बढ़ गया.  ट्विटर पर #BoycottRohiniCinemas ट्रेंड होना शुरू हो गया और सोशल मीडिया पर उनकी अच्छी क्लास लगी.  

काफ़ी बहस के बाद स्टाफ़ ने उन्हें सिनेमाघर में फिल्म देखने दी. हालांकि तब तक ये ख़बर सोशल मीडिया पर आग की तरह फैल चुकी थी. रोहिणी थिएटर ने सफाई पेश करते हुए ट्वीट कर एक नोट शेयर किया, "इस फिल्म को सेंसर बोर्ड ने U/A सर्टिफिकेट दिया है और जिस भी फिल्म को ये सर्टिफिकेट मिलता है, कानून के मुताबिक 12 साल से कम उम्र के बच्चे वो फिल्म नहीं देख सकते. टिकट चेक करने वाले स्टाफ़ ने उसी आधार पर उस फैमिली को रोका था. क्योंकि जो लोग आए थे, उनकी उम्र 26, 8 और 10 साल थी. इसके बाद वहां तुरंत ढेर सारे लोग जमा हो गए. उन्होंने मामले को पूरी तरह समझे बिना उसे अलग रंग दे दिया. मैटर को ठंडा करने और लॉ एंड ऑर्डर बनाए रखने के लिए उस फैमिली को समय पर फिल्म देखने के लिए एंट्री दे दी गई थी." जबकि ये नियम 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को वयस्कों यानि बड़ों की देखरेख में फिल्में देखने की अनुमति देता है.

इससे पहले भी कई बार ऐसी न्यूज़ सामने आई हैं जब 'हाई क्लास' माने जाने वाली जगहों पर 'मिडिल क्लास' या 'लोवर मिडल क्लास' लोगों को एंट्री न दी गई हो. कई परिसरों में 'ड्राइवर,' 'नौकरानी' या 'आया' की एंट्री बैन होती है. समाज में सिर्फ धर्म और जाति पर ही नहीं, क्लास (वर्ग) के बेसिस पर भी भेदभाव हो रहा है. चेन्नई की इस घटना ने 'पढ़े-लिखे' कहे जाने वाले लोगों की मानसिकता पर एक प्रश्न चिन्ह लगाया. पर इस बात पर भी गौर करें कि अगर वहां मौजूद लोगों ने आवाज़ न उठाई होती तो शायद ये ख़बर आप और हम तक नहीं पहुंचती. इस घटना ने साफ़-साफ़ बता दिया कि एक जुट होकर जो ताक़त मिलती है वो अकेले रहकर नहीं. अगली बार अपने आस-पास कुछ ग़लत होता देखें तो आवाज़ ज़रूर उठायें.     

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