ये आग कब बुझेगी ?

बी एम कॉलेज ऑफ फार्मसी की प्रिंसिपल प्रोफेसर विमुक्ता ने छह दिन पहले दम तोड़ दिया.शिकायतों की पुलिस द्वारा अनदेखी और महिला प्राचार्य की  सॉफ्टनेस को आरोपी आशुतोष ने टारगेट कर लिया.आखिर ये नफरत और महिलाओं को प्रताड़ित करने की आग कब बुझेगी.

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Vimukta Sharma Indore Principal Murder CASE

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प्रोफेसर विमुक्ता के हाथों में बेल-पत्र की पत्तियां.जी हां, वही बिल्व-पत्र जो शिवलिंग पर चढ़ाई जाती हैं.इन्हें विमुक्ता ने अभी अपनी कार में रखे थे कि उन्हें अहसास हुआ कि पीछे कोई है.कार मां सरस्वती के मंदिर कहे जाने वाले कॉलेज कैंपस में खड़ी थी. इसी बी एम कॉलेज ऑफ फार्मसी की प्रिंसिपल थी विमुक्ता. इससे ज्यादा सुरक्षित जगह कोई हो ही नहीं सकती. लेकिन जिस तरह को जिंदगी और हालात से एक महिला गुजरती है उस वजह से विमुक्ता ने एकदम पलट कर देखा कि कौन है. पीछे आशुतोष खड़ा था. इसी कॉलेज का स्टूडेंट,आशुतोष ने अपनी महिला प्रिंसिपल से बड़ी बदतमीजी से किसी दूसरे टीचर के बारे में पूछ जो उसे मिल नही रहा था.विमुक्ता ने अपनी और अपने पद की गरिमा का ध्यान रखते हुए उसे ठीक तरह से बात करने को कहा. स्टूडेंट आशुतोष ने उन्हें आग की लपटों के हवाले कर दिया. कुछ ही पलों में सादगी से पहनी साड़ी और सौम्य सा मुस्कुराता चेहरा लपटों में घिर गया.चीखती हुई वह बदहवास दौड़ी. मदद की पुकार और असहाय हो चली वह पूरी ताकत से लगभग डेढ़ सौ मीटर दौड़ी. झुलसे शरीर और आग की तपिश ने उन्हें बेबस कर दिया. अचेत सी हुई और शरीर धुंए काला पड़ गया. वह जमीन पर पड़ी थी. 



आधी आबादी, आर्थिक आत्मनिर्भर बनाने की बात करने वाला लोकतंत्र औंधे मुंह पड़ा था। सुरक्षा के सारे दंभ सिसक रहे थे. मदद बेदम हो रही थी. वादे मुंह चिढ़ा रहे थे.छह  दिन पहले आधी आबादी का हिस्सा कहे जाने वाली सरस्वती पुत्री प्रोफेसर विमुक्ता ने दम तोड़ दिया.अगरबत्ती के गुल के जरा सा टच भी हो जाने पर हमारी चीख निकल जाती है और ऐसे में जीते-जागते शरीर को आग के हवाले करने के बाद भी विमुक्ता की झुलसी चमड़ी और आंतरिक तड़प की कल्पना मात्र ही हमारी और चीख निकल गई. झकझोर देने वाली यह घटना सारे अखबारों की सुर्खियां बनी.टीवी के हेड लाइन भी बनी.दो दिन बाद शायद खबरों की बाढ़ में यह घटना किसी अनजाने किनारे पर जा टिक जाएगी.लोग भी वक़्त के साथ इस घटना को शायद भूल जाएं।  परंतु हम उस कल्पना से ही सिहर उठते हैं जब उनकी बेटी दिव्यांशी कभी सोसायटी, फंक्शन या किसी पब्लिक प्लेस पर जाएगी. उसकी मनःस्थिति क्या होगी! हम अंदाजा लगा सकते हैं.लेखिका बेटी दिव्यांशी की भावुकता और लोगों की सहानुभूति वाले सवालों से कहीं उसके मन को भी न झुलसा दे. पति का एकाकी जीवन और बूढ़ी हो चली उनकी मां और सास के सामने अर्थी उठी.यह मंज़र कड़वी यादों और टीस के साथ उनकी आखरी सांस के साथ जाएगी. इस घटना ने महिलाओं का प्रतिनिधित्व करने वाली प्रोफेसर विमुक्ता आर्थिक आजादी और स्वतंत्रता पर सवाल खड़े कर गई.

Vimukta Sharma family



विमुक्ता जैसी कई महिलाएं हैं जो अपने घर की जवाबदारियों को निभा कर खुद के दम पर आत्मनिर्भर बनी. घर की खुशहाली के लिए शरीर और अतिरिक्त मेहनत से समझौते किए. और कर्म के मैदान में निकल गई. शिकायतों की पुलिस द्वारा अनदेखी और महिला प्राचार्य की  सॉफ्टनेस को आरोपी आशुतोष ने टारगेट कर लिया.अमेरिका में कई बड़े शहरों में शिक्षकों को उन्हीं के स्टूडेंट्स ने गोली मार हत्या कर दी.वहां कई बड़ी घटनाएं आज रिकॉर्ड में दर्ज है. परंतु यह न तो अमेरिका है और न ही वहां की संस्कृति. यहां तो प्राचीन गुरुकुल परंपरा शिक्षकों के आधार पर गुरु- शिष्य की अनेक कहानियों के बीच प्रोफेसर विमुक्ता की हत्या व्यवस्थाओं पर कालिख पोत गई. लड़कियां हों या महिलाएं खासकर नौकरीपेशा महिलाओं को सॉफ्ट टारगेट मानकर उनके साथ दुष्कर्म, छेड़छाड़ के साथ चेहरे पर तेजाब फेंकने वाली घटनाएं भी कम नहीं है. लेकिन उनके पकड़े गए आरोपियों को सलाखों के पीछे तक ले जाने और पीड़ितों को न्याय मिलने के आंकड़ों में जमीन आसमान का अंतर है. यह एक विडंबना है. क्योंकि भगवान भोलेनाथ की भक्त प्रोफेसर विमुक्ता की हत्या करने वाले आरोपी का नाम दुर्भाग्य से आशुतोष है.भगवान भोलेनाथ का एक नाम और आशुतोष ही है. अपराधिक प्रवृत्ति और आरोपी चरित्र से तो आशुतोष हो ही नहीं सकता. मालवा की शांति और न्यायप्रिय देवी अहिल्याबाई होलकर के इस शहर में इस घिनौनी  घटना के अपराधी को भी वहीं सजा मिले जिससे खुद मरने के पहले वह उसी तरह तड़पे. 

स्त्री को प्रकृति का सबसे अनमोल उपहार माना गया. सबसे अलग रंग. सबसे अलग उसकी महक.. प्रोफेसर विमुक्ता भी उसके चरित्र, विद्वता के अनूठे रंगों से समाज में महकती थी.फागुन का उत्साह सुस्त है. पलाश के फूलों में जैसे चटक रंगों पर उदासी छाई हुई है. इंद्रधनुष के सातों रंग दुख के सफेद  रंग चादर से प्रोफेसर विमुक्ता पर उड़ा दिए गए. उसे देर से मुक्त कर दिया. कहा जाता है आत्मा कभी मरती नहीं परंतु हमारे सभ्य समाज की आत्मा इस घटना से झुलस जरूर गई.रंगो का उत्सव और रंगों में डूबी खुशियां भी धरती के उस टुकड़े पर जाकर लहूलुहान हो गई बिखर गई जहां हमारी प्यारी प्रोफेसर विमुक्ता के अचेत शरीर से बिखरे खून के धब्बे जम गए. आखिर यह सरकारें समाज और प्रशासन कब इन महिलाओं के सुरक्षा के प्रति आश्वस्त करेगा.जब वह निर्भीक होकर बाजार की सड़कों अपनी संस्थाओं में काम कर सकेंगी.

दिल्ली में निर्भया कांड से प्रो.विमुक्ता तक सॉफ्ट टारगेट बनती रहेंगी और हम मोमबत्ती जला कर मौन खड़े रह जाएंगे।आखिर ये नफरत और महिलाओं को प्रताड़ित करने की आग कब बुझेगी ? 

उम्मीद की जाना चाहिए यह दुखद घटना समाज में आखरी हो...अब और नहीं।

Vimukta Sharma funeral

अहिल्याबाई होलकर प्रोफेसर शिक्षक विमुक्ता