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अमृता पहली पंजाबी महिला लेखिका बनीं, जिन्होंने अपने समय के पुरुष लेखकों की छाया से बाहर निकलकर पंजाबी साहित्य में अपनी अलग जगह बनाई. क्रांतिकारी विचारों और अभिव्यक्ति की ताकत ने उन्हें नारीवाद से बहुत पहले, नारीवादी के रूप में देखने पर मजबूर किया.
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