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Photograph: (google)
तमिलनाडु की वरिष्ठ IAS अधिकारी सुप्रिया साहू को प्रेरणा और कर्म के लिए प्रतिष्ठित 2025 संयुक्त UN Champions of the Earth Award प्रदान किया गया है, जो पर्यावरण क्षेत्र में UN का सर्वोच्च सम्मान है. नैरोबी में आयोजित समारोह में यूनाइटेड नेशंस एनवायरनमेंट प्रोग्राम (UNEP) ने यह पुरस्कार उन्हें भारत में प्लास्टिक, वन्यजीव संरक्षण और पर्यावरणीय चुनौतियों पर लंबे समय से किए जा रहे उनके प्रभावी कार्यों के लिए दिया. प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, साहू को भारत में पर्यावरण संरक्षण के प्रति उनके अग्रणी और दृढ़ नेतृत्व के लिए सम्मानित किया गया है. पुरस्कार प्राप्त करने के बाद उन्होंने कहा,
“ मेरी प्रेरणा उन आम लोगों से आती है जिन्होंने मेरे साथ खड़े होकर मैंग्रोव वनों को बचाने में योगदान दिया. बच्चों की चमकती आंखें और उनका विश्वास मुझे आगे बढ़ने की ताकत देता है. ”
IAS सुप्रिया साहू कौन हैं?
सुप्रिया साहू पिछले साढ़े चार वर्षों से तमिलनाडु के पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और वन विभाग में अतिरिक्त मुख्य सचिव के रूप में कार्यरत हैं. संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रकाशित उनकी प्रोफाइल बताती है कि साहू का प्रकृति प्रेम बचपन से ही शुरू हुआ था, जब उनके पिता की नौकरी के कारण उन्हें देश के अलग-अलग हिस्सों में घूमने का मौका मिला. उन्हें हाथियों से गहरा लगाव है, और उनका इंस्टाग्राम हाथियों से जुड़ी पोस्टों से भरा रहता है. उनका मानना है कि हाथी हमें धैर्य, परिवारिक जुड़ाव और नेतृत्व जैसी महत्वपूर्ण बातें सिखाते हैं.
तीन दशक की अपनी सेवा अवधि में उन्होंने भारत की जैव विविधता को समझने और संरक्षित करने में गहरी रुचि विकसित की है. लेकिन इसी दौरान उन्होंने यह भी महसूस किया कि मानव लापरवाही हमारी धरती को कितना नुकसान पहुंचा सकती है. नीलगिरि जिले की कलेक्टर रहते हुए उन्होंने जानवरों को प्लास्टिक खाते देखा, जो उनके लिए एक झकझोर देने वाला अनुभव था. वह कहती हैं,
“मैंने महसूस किया कि हमारे गृह का दम घुट रहा है , और वही क्षण मेरे लिए बदलाव का मोड़ बन गया.”
सुप्रिया साहू को संयुक्त राष्ट्र का सर्वोच्च पर्यावरण सम्मान क्यों मिला?
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, सुप्रिया साहू को तमिलनाडु में बड़े पैमाने पर उप-राष्ट्रीय जलवायु कार्रवाई, पारिस्थितिकी तंत्र पुनर्स्थापन, सतत शीतलन मॉडल और समुदाय आधारित संरक्षण पहलों के लिए यह पुरस्कार दिया गया है. उनकी पहल ने साबित किया है कि प्रकृति-आधारित समाधान, स्थानीय समुदायों की भागीदारी और विज्ञान आधारित नीतियां मिलकर जलवायु जोखिमों को कम कर सकती हैं. यूएन ने कहा कि उनके काम ने लाखों हरित नौकरियां पैदा की हैं और तमिलनाडु को जलवायु लचीलेपन का वैश्विक मॉडल बनाया है. उनकी शीतलन और पर्यावरण पुनर्स्थापन परियोजनाओं ने राज्य के वन क्षेत्र को भी बढ़ाया है और लगभग 12 मिलियन लोगों के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव डाला है.
सुप्रिया साहू के प्रमुख कार्य और पहलें
2000 में उन्होंने नीलगिरि में एकल-उपयोग प्लास्टिक को समाप्त करने के उद्देश्य से "ऑपरेशन ब्लू माउंटेन" नामक एक अभियान शुरू किया. उस समय प्लास्टिक प्रदूषण का मुद्दा अभी भी चर्चा में नहीं था. हाल के वर्षों में साहू ने तटीय लचीलेपन पर केंद्रित एक गैर-लाभकारी संस्था तमिलनाडु ग्रीन क्लाइमेट कंपनी की शुरुआत की। साथ ही शहरी गर्मी और बढ़ती शीतलन मांग से निपटने के लिए कई परियोजनाएं भी शुरू कीं. साहू ने निष्क्रिय शीतलन पहलों में से एक कूल रूफ प्रोजेक्ट का भी नेतृत्व किया। इसे 200 सरकारी "ग्रीन स्कूलों" में लागू किया जा रहा है. उन्होंने तमिलनाडु में 10 करोड़ से अधिक वृक्षारोपण और 65 नए आरक्षित वन स्थापित करने के प्रयासों का भी नेतृत्व किया। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार उनके नेतृत्व में राज्य ने अपने मैंग्रोव क्षेत्र को दोगुना कर दिया है. आर्द्रभूमि को 1 से बढ़ाकर 20 कर दिया गया है। 6 करोड़ अमेरिकी डॉलर का लुप्तप्राय प्रजाति संरक्षण कोष भी शुरू किया गया है. चेन्नई में साहू शहरी नियोजन में प्रकृति-प्रथम दृष्टिकोण को अपना रही हैं.
निष्कर्ष
सुप्रिया साहू न सिर्फ एक प्रशासनिक अधिकारी हैं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण की एक प्रेरणादायक आवाज भी हैं. उनकी पहलें यह दिखाती हैं कि दूरदर्शी नेतृत्व, समुदाय की भागीदारी और प्रकृति के प्रति सम्मान मिलकर बड़े बदलाव ला सकते हैं. संयुक्त राष्ट्र द्वारा दिया गया यह सर्वोच्च सम्मान उनके वर्षों के समर्पण और योगदान की वैश्विक पहचान है.
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