भारत की पहली दृष्टिहीन महिला वकील आँचल भाटेजा का ऐतिहासिक सुप्रीम कोर्ट प्रदर्शन

आँचल भाटेजा का ऐतिहासिक सुप्रीम कोर्ट में पेश होना, भारत की पहली दृष्टिहीन महिला वकील के रूप में, विकलांगता बहिष्कार नीतियों को चुनौती देता है

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रिसिका जोशी
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first blind lawyer in india

Photograph: (better india)

6 जून 2025 को भारत के सुप्रीम कोर्ट में एक ऐतिहासिक पल आया. आँचल भाटेजा पहली दृष्टिहीन महिला वकील के रूप में मामले की पैरवी करने पहुंचीं. उन्होंने 100 प्रतिशत दृष्टिहीन याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करते हुए उत्तराखंड न्यायिक सेवा (सिविल जज – जूनियर डिवीजन) की भर्ती अधिसूचना को चुनौती दी, जिसमें दृष्टिहीन और कई अन्य विकलांगताएं आरक्षित श्रेणियों से बाहर रखी गई थीं.

इस मामले की सुनवाई जस्टिस संजय करोल और एससी शर्मा ने की। इस घटना ने भारत में विकलांग अधिकार, समावेशन और समान अवसर पर नई बहस शुरू कर दी.

आँचल भाटेजा: बाधाओं को पार करने वाली प्रेरक वकील

आँचल भाटेजा की कहानी प्रेरणादायक है. जन्म के समय हुई जटिलताओं के कारण उनकी दृष्टि कमजोर थी. और बोर्ड परीक्षा से ठीक पहले रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमैच्योरिटी (आरओपी) के कारण उनकी पूरी दृष्टि चली गई. इस जीवन-बदल देने वाली चुनौती के बावजूद, भाटेजा ने अपनी दृष्टिहीनता को अपने सपनों को परिभाषित या सीमित नहीं करने दिया. उन्होंने ऑडियोबुक और सहायक तकनीकों का उपयोग करके अपनी शिक्षा जारी रखी.

असाधारण दृढ़ संकल्प का प्रदर्शन करते हुए, उन्होंने अत्यधिक प्रतिस्पर्धी कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट (सीएलएटी) को सफलतापूर्वक उत्तीर्ण किया और प्रतिष्ठित नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी (एनएलएसआईयू), बेंगलुरु में प्रवेश पाने वाली पहली दृष्टिबाधित छात्रा बनीं, जहाँ से उन्होंने 2023 में स्नातक की उपाधि प्राप्त की.

6 जून को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष भाटेजा की पहली उपस्थिति न केवल उनकी व्यक्तिगत उपलब्धि के लिए ऐतिहासिक थी, बल्कि एक ऐसे पेशे में समावेशिता का सशक्त प्रतीक भी थी जिसे अक्सर विकलांग व्यक्तियों के लिए कठिन माना जाता है. अपने अनुभव पर विचार करते हुए उन्होंने कहा 

" मुझे यहां आकर गर्व हो रहा है - उस स्थान पर आकर गर्व हो रहा है जिसे मेरे जैसे किसी व्यक्ति को ध्यान में रखकर कभी नहीं बनाया गया था.

लेकिन मेरी यह भी इच्छा है कि मैं पहली न होती. काश, इस रास्ते पर पहले ही कई लोग चल चुके होते. दृश्यता मायने रखती है. पहुंच मायने रखती है. और व्यवस्थागत बदलाव में समय लगता है - लेकिन ऐसे क्षण हमें याद दिलाते हैं कि हम सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, चाहे कितनी भी धीमी गति से ही सही."

मामला: न्यायिक भर्ती में बहिष्कार को चुनौती

भाटेजा द्वारा दायर मामले में उत्तराखंड न्यायिक सेवा की 16 मई, 2025 की भर्ती अधिसूचना को चुनौती दी गई है. इसमें बेंचमार्क विकलांग व्यक्तियों (पीडब्ल्यूबीडी) के लिए पद आरक्षित किए गए हैं, लेकिन पात्रता केवल चार उपश्रेणियों तक सीमित कर दी गई है - कुष्ठ रोग से ठीक हुए, एसिड हमले के शिकार, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी और सेरेब्रल पाल्सी. अंधापन और अन्य विकलांगताओं को इसमें शामिल नहीं किया गया है.

याचिकाकर्ता का तर्क है कि यह संकीर्ण वर्गीकरण विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 की धारा 34 का उल्लंघन करता है. यह धारा सभी विकलांग व्यक्तियों के लिए समान अवसर और उचित सुविधा प्रदान करने का प्रावधान करती है.

याचिका में उचित सुविधाओं से वंचित किए जाने पर भी प्रकाश डाला गया है. जैसे कि परीक्षा के दौरान दृष्टिबाधित उम्मीदवारों के लिए लेखकउपलब्ध कराने से इनकार करना. साथ ही निवास संबंधी प्रतिबंधों को भी चुनौती दी गई है, जो दिव्यांग आवेदकों को असमान रूप से प्रभावित करते हैं.

अधिवक्ता विक्रम हेगड़े की सहायता से दायर याचिका में उत्तराखंड लोक सेवा आयोग, उत्तराखंड उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल और राज्य के समाज कल्याण विभाग को प्रतिवादी बनाया गया है. न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति एससी शर्मा की पीठ ने इस मामले पर विचार-विमर्श के लिए 9 जून, 2025 को आगे की सुनवाई निर्धारित की है.

निष्कर्ष

आँचल भाटेजा की सुप्रीम कोर्ट में ऐतिहासिक उपस्थिति दृढ़ संकल्प और व्यवस्थागत सुधार के परिवर्तनकारी प्रभाव का एक सशक्त उदाहरण है. उनकी यात्रा न केवल सामाजिक रूढ़ियों को चुनौती देती है, बल्कि संस्थानों के लिए सुलभता और समान अवसर को वास्तविक रूप से अपनाने की तत्काल आवश्यकता को भी उजागर करती है.

सही मायने में समावेश के लिए सक्रिय उपायों की आवश्यकता है. भर्ती नीतियों में संशोधन से लेकर यह सुनिश्चित करना कि उचित सुविधाएं मानक प्रक्रिया का हिस्सा हों. इस उपलब्धि का जश्न मनाते हुए, हमें स्वयं से यह प्रश्न पूछना चाहिए. हम सामूहिक रूप से कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं कि इस तरह की ऐतिहासिक 'पहली' उपलब्धियां रोजमर्रा की वास्तविकता बन जाएं, जो सभी भारतीयों की समृद्ध विविधता और शक्ति को प्रतिबिंबित करें.

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