वेदांता एल्यूमिनियम का ‘Project Sakhi’: ग्रामीण महिलाओं की आर्थिक स्वायत्तता की दिशा में एक ठोस कदम

वेदांता एल्यूमिनियम का Project Sakhi ओडिशा के कालाहांडी में 4,600+ महिलाओं को आर्थिक-सामाजिक रूप से सशक्त बना रहा है। जानिए यह CSR पहल कैसे बदलाव ला रही है.

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Rohan
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वेदांता का ‘प्रोजेक्ट सखी’ — कलाहांडी की महिलाओं के जीवन में बदलाव

Photograph: (The Indian News Express)

भारत के ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में महिलाओं की आर्थिक भागीदारी लंबे समय से सीमित रही है. शिक्षा, संसाधनों और निर्णय लेने के अवसरों की कमी के कारण महिलाएँ अक्सर श्रम का हिस्सा तो होती हैं, पर आर्थिक स्वायत्तता से वंचित रहती हैं. ऐसे समय में वेदांता एल्यूमिनियम का ‘Project Sakhi’ एक ऐसा मॉडल बनकर उभरा है, जिसने ओडिशा के कालाहांडी ज़िले में महिलाओं के जीवन और सोच दोनों को गहराई से बदल दिया है.

प्रोजेक्ट सखी की शुरुआत और उद्देश्य

वेदांता एल्यूमिनियम ने साल 2015 में Project Sakhi की शुरुआत की थी. इस पहल का मूल उद्देश्य था – ग्रामीण और अर्ध-शहरी इलाकों की महिलाओं को संगठित कर आर्थिक सशक्तिकरण, नेतृत्व क्षमता और वित्तीय साक्षरता के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाना. 
प्रोजेक्ट के तहत महिलाओं को Self Help Groups (SHGs) के रूप में संगठित किया गया ताकि वे सामूहिक बचत, ऋण सुविधा, और छोटे स्तर पर उद्यमिता के अवसरों तक पहुँच बना सकें.

प्रभाव का पैमाना: 4,600 से अधिक महिलाएँ और 5 करोड़ का वित्तीय प्रवाह

अब तक 4,600 से अधिक महिलाएँ इस प्रोजेक्ट से जुड़ चुकी हैं. इनके माध्यम से 444 स्वयं सहायता समूह (SHGs) सक्रिय हैं.
इन समूहों ने मिलकर 5 करोड़ रुपये से अधिक की बचत और वित्तीय लेनदेन का चक्र तैयार किया है.

सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि 1,880 से अधिक महिलाएँ अब तक 1,300 से ज़्यादा छोटे उद्यम (micro-enterprises) शुरू कर चुकी हैं — जिनमें कृषि आधारित गतिविधियाँ, डेयरी, पोल्ट्री, बागवानी, किराना, सिलाई-कढ़ाई, और खाद्य प्रसंस्करण जैसे कार्य शामिल हैं.

पिछले एक वर्ष में ही इन समूहों ने 3.84 करोड़ रुपये का बैंक ऋण और वित्तीय सहायता प्राप्त की, जिससे लगभग 1,000 महिलाओं को प्रत्यक्ष लाभ हुआ.

प्रशिक्षण, वित्तीय साक्षरता और नेतृत्व विकास

Project Sakhi केवल वित्तीय सहायता देने की पहल नहीं है, बल्कि यह एक संपूर्ण विकास मॉडल है. वेदांता ने इन महिलाओं को तीन स्तरों पर प्रशिक्षित किया है —

  • कौशल विकास (Skill Development): पोल्ट्री पालन, मशरूम उत्पादन, खाद्य प्रसंस्करण, सिलाई आदि में प्रशिक्षण.
  • वित्तीय साक्षरता (Financial Literacy): बैंक खाता संचालन, ऋण प्रक्रिया, और बचत योजनाओं की समझ विकसित की गई.
  • नेतृत्व प्रशिक्षण (Leadership Training):SHG प्रतिनिधियों को निर्णय लेने, समूह प्रबंधन और वार्तालाप कौशल में सशक्त किया गया ताकि वे सामाजिक रूप से भी आत्मविश्वास पा सकें.

इसके अतिरिक्त, प्रोजेक्ट के अंतर्गत 3,000 से अधिक महिलाओं को विभिन्न सरकारी योजनाओं से जोड़ा गया है — जैसे जीवन बीमा, दुर्घटना बीमा, बाल बचत योजनाएँ और श्रम कल्याण लाभ.

एक उदाहरण: बालभद्रपुर गाँव की सफलता कहानी

कालाहांडी जिले के बालभद्रपुर गाँव में “मां शिवानी स्वयं सहायता समूह” को पोल्ट्री प्रबंधन का प्रशिक्षण दिया गया. इस समूह ने मिलकर एक पोल्ट्री यूनिट स्थापित की, जिसने ₹1.27 लाख से अधिक का राजस्व उत्पन्न किया.

इस पहल ने केवल आय का स्रोत नहीं बनाया, बल्कि समूह की महिलाओं को गाँव में एक नई पहचान दी. अब वे अपने घर के साथ-साथ समुदाय में भी निर्णय प्रक्रिया का हिस्सा बन रही हैं.

सामाजिक बदलाव और चुनौतियाँ

‘Project Sakhi’ ने आर्थिक रूप से तो महिलाओं को सशक्त किया ही है, साथ ही उनके भीतर सामाजिक आत्मविश्वास भी जगाया है. कई महिलाएँ अब अपने बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और घरेलू वित्तीय निर्णयों में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं. हालाँकि, कुछ चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं —

  • ग्रामीण बाज़ारों तक उत्पादों की पहुँच सीमित है.
  • प्रशिक्षण के बाद उद्यमों की दीर्घकालिक स्थिरता एक बड़ा सवाल है.
  • सामाजिक मान्यताओं और पितृसत्तात्मक सोच से निपटना अभी भी एक निरंतर प्रक्रिया है.
  • इन चुनौतियों के बावजूद, प्रोजेक्ट ने एक ऐसा आधार तैयार किया है, जिससे ग्रामीण महिलाएँ अब आत्मनिर्भरता के रास्ते पर अग्रसर हैं.

एक व्यापक दृष्टिकोण: CSR से सशक्तिकरण की दिशा में

भारत में कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (CSR) को अक्सर दान या परोपकार के रूप में देखा जाता है. लेकिन Project Sakhi यह दिखाता है कि जब CSR को विकास और आत्मनिर्भरता से जोड़ा जाए, तो उसका असर कहीं अधिक स्थायी और गहरा हो सकता है.

वेदांता एल्यूमिनियम का यह मॉडल इस बात का प्रमाण है कि कंपनियाँ केवल आर्थिक वृद्धि में ही नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन में भी भागीदार बन सकती हैं.

Project Sakhi यह दर्शाता है कि सशक्तिकरण का अर्थ केवल आर्थिक स्वतंत्रता नहीं, बल्कि आत्मसम्मान, निर्णय क्षमता और सामुदायिक नेतृत्व भी है. कालाहांडी जैसे पिछड़े जिले में यह पहल महिलाओं के लिए न केवल आय का साधन, बल्कि परिवर्तन का प्रतीक बन चुकी है. यदि भारत को वास्तविक रूप से ‘महिला-प्रधान अर्थव्यवस्था’ की दिशा में बढ़ना है, तो ऐसे प्रोजेक्ट्स को नीति समर्थन और सामाजिक सहयोग दोनों की आवश्यकता है — ताकि हर “सखी” अपने गाँव की कहानी बदल सके.

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