मेहनत वही, मेहनताना नहीं...

पूरी दुनिया में एक काम को उतने ही समय में, उतने ही अच्छे से करने पर भी महिलाओं को पुरुषों से कम मेहनताना दिया जाता है. इस 'Gender Pay Gap' यानि कि मेहनताने में होने वाला भेदभाव कहा जाता है.

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मैत्री
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Gender pay gap report

Image- Ravivar Vichar

चलिए आज आपको एक काल्पनिक दुनिया में ले जाया जाए. आप एक दफ़्तर में काम करते हैं. आपकी टीम में एक और शख्स भी है. आप दोनों की जिम्मेदारियां, दफ़्तर से आने जाने का वक्त, आप दोनों का पद, आप दोनों की मेहनत और आप दोनों के काम के नतीजे, सब एकदम समान है. लेकिन फिर भी आपको उससे कम पैसे मिलते हैं. आपको पता नहीं क्यों, बस कम मिलते हैं. कैसा लगेगा आपको? गुस्सा आएगा, बुरा लगेगा, कमतर महसूस होगा, काम करने की प्रेरणा कम होती जाएगी. ऐसा ही कुछ होगा ना!

दुनिया में Gender Pay Gap है बड़ी समस्या!

अब यह तो थी काल्पनिक दुनिया. चलिए आते हैं असल जिंदगी पर क्योंकि असल जिंदगी में ऐसा हो रहा है. पूरी दुनिया में एक काम को उतने ही समय में, उतने ही अच्छे से करने पर भी महिलाओं को पुरुषों से कम मेहनताना दिया जाता है. इस 'Gender Pay Gap' यानि कि मेहनताने में होने वाला भेदभाव कहा जाता है और लगभग पूरी दुनिया में यह बीमारी फैली हुई है. एक बार फिर से समझते हैं क्या होता है यह जेंडर पे गैप. एक ही काम को करने के लिए महिलाओं को पुरुषों से कम पैसे देना, इसे Gender Pay Gap कहा जाता है. और हर तरह के काम में मेहनताने का यह भेदभाव देखा जा सकता है.
gender pay gap
Image Credits: Forbes
2018 में इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन के एक अध्ययन में यह बात सामने आई थी कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं को वही काम करने के लिए, उसी तरीके से करने के लिए, और उसी नतीजे के साथ करने के लिए जो कि पुरुष करते हैं, पुरुषों के मुकाबले 20% कम पैसे मिलते हैं. यानी कि अगर एक पुरुष को एक काम करने के ₹100 मिल रहे हैं तो उसी काम को, उतने ही वक्त में, उतने ही अच्छे तरीके से करने के बावजूद भी एक महिला को सिर्फ ₹80 ही मिलेंगे.

मजदूरी में भी शारीरिक बनावट पर किये जाते है भेदभाव

यह फ़र्क सिर्फ एक दफ़्तर में नहीं होता है. अगर भारत की बात करें तो खेती से लेकर बाकी मज़दूरी के कामों में एक पुरुष मज़दूर और एक महिला मज़दूर की कमाई अलग-अलग होती है. अब इसमें कई लोग यह तर्क देते हैं कि क्योंकि पुरुष और महिला के शरीर की बनावट अलग-अलग होती है, शारीरिक मेहनत का काम पुरुष महिलाओं के मुकाबले ज़्यादा कर पाते हैं. लेकिन यह तथ्य पूरी तरह सही नहीं है क्योंकि मज़दूरी से 8 जुड़े उन कामों में भी एक लक्ष्य तय कर दिया जाता है और दिन भर में वह काम चाहे वह महिला कारीगर हो चाहे पुरुष कारीगर हो, उन्हें करना पड़ता है. तो ऐसे में कहीं से कहीं तक यह बात सामने नहीं आती कि पुरुष अपने शरीर की बनावट की वजह से मज़दूरी का यानी कि शारीरिक मेहनत का काम महिलाओं से ज़्यादा बेहतर करते हैं.
अब बात करते हैं कि दफ़्तरों में क्या हो रहा है. भारत की ही बात करते हैं. 2022 में IIM अहमदाबाद की एक स्टडी में यह बात सामने आई थी कि दफ़्तरों में हर एक स्तर पर, हर एक पद में, महिलाएं पुरुषों के मुकाबले कम पैसे कमा रहीं हैं. यानी कि उन्हें पुरुषों के बराबर और पुरुषों के जैसा और कई बार पुरुषों से बेहतर काम करने के बावजूद भी पुरुषों के मुकाबले कम पैसा दिया जा रहा है.
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Image Credits: Vantage circle blog
यही है Gender Pay Gap, मेहनताने में होने वाला भेदभाव. यहां तक की बड़ी-बड़ी कंपनियों के बोर्ड पर बैठने वाली महिलाओं को भी अपने पुरुष काउंटरपार्ट के मुकाबले बहुत कम पैसे दिए जाते हैं. और दफ़्तरों में क्यों यह भेदभाव होता है जहां पर तो शारीरिक मेहनत की भी कोई भूमिका नहीं है, उसका जवाब किसी के पास नहीं है. उसकी वजह है, लेकिन जवाब नहीं.
जिस तरह का समाज का ढांचा है, और जिस तरह से धीरे-धीरे वर्कफोर्स में से महिलाएं कभी शादी की वजह से, कभी बच्चों की वजह से, कभी अपने पति की पोस्टिंग दूसरे शहरों में हो जाने की वजह से, धीरे-धीरे कम होती जाती हैं. तो ऊपर के स्तर तक आते-आते केवल मुट्ठी भर महिलाएं रह जाती हैं. ऐसे में महिलाओं को कितने पैसे दिए जाएंगे यह फैसला पुरुष ही करते हैं. और दिखाई दे भी रहा है कि यह फैसला जहां पर महिलाओं को कम पैसे दिए जा रहें हैं, यह पुरुष ही कर रहे हैं.

Bollywood में Pay Disparity है सबसे बड़ी समस्या

भारत की बात हो और बॉलीवुड की बात ना हो यह कैसे हो सकता है. यह pay gap bollywood में भी उतनी ही बुरी तरीके से फैला हुआ है, शायद उससे भी ज़्यादा ख़राब तरीके से. हाल ही में एक राउंड टेबल बातचीत में बॉलीवुड अदाकार भूमि पेडणेकर, हुमा कुरैशी, रकुल प्रीत और बाकी कलाकारों ने एक बातचीत में यह बताया कि उन्हें अक्सर एक फिल्म में एक हीरो को जो पैसे मिलते हैं उसके सिर्फ एक प्रतिशत पैसे मिलते हैं. सोचिए महज़ एक प्रतिशत!
इसके अलावा चाहे प्रियंका चोपड़ा हो चाहे कंगना रणावत हो सोनम कपूर हो अनुष्का शर्मा यहां तक की दीपिका पादुकोण ने भी बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री, हिंदी सिनेमा में किस तरह से महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले बहुत कम पैसे दिए जाते हैं इस पर अपनी बात रखी है.
अब सवाल यह है कि कैसे इस भेदभाव को खत्म किया जाए. देखिए सबसे पहले तो इस बात को स्वीकार किया जाए, इस बात को माना जाए कि मेहनताने को लेकर महिलाओं के साथ बहुत भेदभाव होता है. सबसे पहले इस बात को स्वीकार किया जाए कि समस्या है. समाधान उसके बाद ही ढूंढे जा पाएंगे. और जब एक बार इस बात को स्वीकार कर लिया जाए कि यह समस्या है, तब मेहनताने यानी कि सैलरी स्ट्रक्चर्स में पारदर्शिता लाई जाए, ट्रांसपेरेंसी लाई जाए.
कंपनियों को कहा जाए कि वह अपने सैलरी स्ट्रक्चर को पारदर्शी रखें और हर कर्मचारी को यह जानने का हक़ होना चाहिए, यह जानने कि सुविधा होनी चाहिए कि बाकी लोग एक काम के कितने पैसे बाकी लोग कमा रहे हैं. इसके अलावा ज़रूरत है कि ज़्यादा से ज़्यादा महिलाएं लैडर में ऊपर तक पहुंचे, ऊंचे पदों पर पहुंचें, उसे स्थिति में आएं कि फैसला ले सकें कि एक ही काम को, एक ही तरीके से करने के और समान नतीजे देने के लिए सबको बराबर पैसे मिले. यह सब करने के बाद इस बात की उम्मीद है कि दुनिया भर में महिलाओं के खिलाफ़ हो रहे इस आर्थिक अत्याचार पर कुछ तो लगाम कसी जा सकेगी.
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