आज का जो विषय है उसमें आपको लग सकता है कि अब तक जितनी बातें हमने की हैं उसे कहीं ना कहीं काटा जा रहा है. लेकिन पढ़ते रहिएगा, क्योंकि ऐसा है नहीं. आज हम बात करेंगे 'Period leave' यानी कि माहवारी की छुट्टी की. पिछले कुछ वक्त से इस मुद्दे पर बातचीत शुरू है कि दफ़्तर और बाकी काम करने की जगहों पर महिलाओं को Period leave मिलनी चाहिए या नहीं. और इसका जवाब हां होना चाहिए.
अब आप यह कहेंगे कि जी अब तक आप नारीवाद की बातें कर रही थीं, महिला पुरुष की बराबरी की बात कर रही थीं, तो अब महिलाओं को यह स्पेशल ट्रीटमेंट देने की दलील क्यों? यह बात कई लोगों के मन में होती है, कई लोग कहते-पूछते भी हैं. देखिए इसके लिए सबसे पहले यह समझना ज़रूरी है कि बराबरी और समानता यानि कि 'इक्वॉलिटी' और 'सिमीलेरिटी' में फ़र्क होता है.
Period leave शारीरिक आराम की ज़रूरत है!
महिलाएं पुरुष के बराबर हैं, यह एक तथ्य है, यह एक सच है. और इसी बराबरी के होने, बराबरी बनी रहने और जिन क्षेत्रों में बराबरी नहीं मिलती, वहां इस बराबरी के पीछे संघर्ष करने को ही नारीवाद कहा जाता है. लेकिन जब समानता की बात करें तो, क्योंकि एक महिला और एक पुरुष के शरीर की बनावट अलग-अलग होती है, तो एक महिला और एक पुरुष एक जैसे नहीं होते. अब इसमें कई जगहों पर कुछ आसानियां पुरुषों के लिए बनाई जाती हैं, जो कि दरअसल सदियों से बनाई जाती आ रही हैं.
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दुनियाभर में पूरा का पूरा सिस्टम पुरुषों को आरामदायक रखने के लिए ही है. हमेशा से था. तो ऐसे में अगर महिलाओं को थोड़ा सा शारीरिक आराम देने के लिए अगर एक या दो दिन की छुट्टी मिल जाए तो वह किसी पर कोई अत्याचार नहीं होगा. अब चलते हैं बाकी तर्कों की तरफ़. आपने कई महिलाओं से भी सुना होगा, ख़ासकर उन महिलाओं से जो उम्र में थोड़ी सी ज़्यादा हैं. वह कहती हैं कि जी हमारे वक्त पर तो हमें कोई माहवारी की छुट्टी, Period leave नहीं मिली, हमने तो सही तरीके से अपना काम कर लिया, आज की महिलाओं को क्यों इसकी ज़रूरत है.
अब इसमें भी एक बात ध्यान रखिए. आप किसी भी गाइनेकोलॉजिस्ट से बात करेंगे तो वह आपको समझाएंगे कि आज के वक्त में ज़्यादातर महिलाओं के menstrual cycle की जो स्थिति है, या जो समस्याएं उन्हें झेलनी पड़ती हैं, वह आज से कुछ साल पहले महिलाओं को उस स्तर पर नहीं झेलनी पड़ती थी. अब उसकी वजह कुछ भी हो सकती है, दिनचर्या में आए हुए परिवर्तन समझ लीजिए या रोज़मर्रा का बढ़ता हुआ स्ट्रेस समझ लीजिए.
अभी तक विशेषज्ञ इसकी वजह साफ़ नहीं बता पाए हैं. लेकिन सच यह है कि महिलाओं के menstrual cycle से जुड़ी हुई बीमारियां या फिर समस्याएं पहले के मुकाबले बहुत ज़्यादा बढ़ गई हैं. पीसीओएस और पीसीओडी जैसी समस्याएं तो 50% से ज्यादा महिलाओं को हैं. और जो इन समस्याओं से ग्रसित हैं, वह जानते हैं कि इनकी वजह से माहवारी के दिन बेहद तकलीफ से भरे हुए होते हैं. तो ऐसे में एक दिन की छुट्टी या जहां जरूरत हो 2 दिन की छुट्टी देने से किसी का नुकसान नहीं हो जाएगा.
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Period leave देने से नहीं होगा आर्थिक नुक्सान!
दुनिया भर में कई सारी रिसर्च, कई सारे अध्ययन इस बात को साबित कर चुके हैं कि महिलाएं अपने काम के प्रति पूरी तरह से समर्पित होती हैं और ईमानदारी से अपना काम करती हैं. तो जो लोग इस बात से डरे हुए हैं कि इस तरह की छुट्टियां देने से दफ़्तरों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ जाएगा, तो ऐसा भी नहीं है. और इसके अलावा आप इस बात को ऐसे भी समझ सकते हैं, आप यह देखिए की कोई एक शख्स है जो दफ़्तर जाता है और कभी चाय पीने के नाम पर, कभी सिगरेट पीने के नाम पर, कभी फोन कॉल करने के नाम पर, एक दिन में कितने ऐसे घंटे दफ़्तर में बिताता है जब वह प्रोडक्टिव नहीं होता.
तो ऐसे में अगर एक महिला उन दिनों में, जब वह तकलीफ से गुज़र रही हो, अगर एक छुट्टी ले ले तो वह कोई बुरी बात नहीं है. अब इसमें हो सकता है कि कुछ महिलाएं आपसे कहें कि जी हमें तो एकदम ठीक लगता है, हमें तो ज़रूरत नहीं है. तो उस बात को भी सुनिए, क्योंकि जैसा कि हमने शुरुआत में कहा, हर किसी के शरीर की बनावट अलग-अलग है, तो हर किसी का तजुर्बा माहवारी के दिनों में अलग-अलग होता है. किसी को दर्द होता है, किसी को नहीं होता.
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तो जिन्हें नहीं होता और जिन्हें छुट्टी की ज़रूरत नहीं है, तो उन्हें यह विकल्प दिया जाए कि वह चाहें तो छुट्टी के लिए मना कर सकती हैं. और अपने काम को सुचारू रूप से जारी रख सकती हैं. लेकिन जो तकलीफ में है, उन्हें छुट्टी देना कहीं से कहीं तक ना तो नुकसानदायक है और ना ही गलत. और अगर कोई ऐसा सोच रहा हो कि इससे हम यह संदेश देंगें कि महिलाएं उन दिनों में कमज़ोर हैं, तो सच मानिए कि यह एक कुतर्क से ज़्यादा और कुछ नहीं. क्योंकि जब एक पुरुष बीमार होता है, बुखार हो, पेट खराब हो, शरीर में दर्द हो या कोई भी और बीमारी हो, तो हम उसे यह नहीं कहेंगे कि चाहे जो हो जाए तुम्हें हर हालत में दफ़्तर जाकर काम करना ही होगा.
एक दर्द झेल रहे इंसान को यह कहना सही नहीं. तो हम महिलाओं से क्यों यह अपेक्षा रखते हैं कि चाहे वह कितने भी दर्द में हों, उन्हें अपना काम बस करते रहना चाहिए. इस बारे में सोचिएगा. अपनी आधी आबादी को महीने में एक दिन का आराम देना इतनी बड़ी बात भी नहीं होनी चाहिए. मैं नारीवादी लोगों को भी आश्वस्त करना चाहूंगी कि इससे समाज में महिलाओं की स्थिति कमज़ोर नहीं होगी. एक स्वस्थ समाज वही है जो सहानुभूति के आधार पर खड़ा हो. तो लेने दीजिए महिलाओं को वह एक दिन की छुट्टी और यकीन मानिए कि उस एक दिन की छुट्टी का बदला वह बाकी के दिनों में काम करके पूरी तरह से चुका देंगी.