घूंघट संस्कार नहीं सजा !

हमारे देवी की मूर्तियों को कहीं भी घूंघट में चित्रित नहीं किया गया. ये हमारी संस्कृति नहीं है. महिलाओं को कुछ-कुछ बात को समझने लगीं और घूंघट कहीं थोड़ा कम हुआ तो कहीं सिर पर पल्ला बनकर रह गया.यह सुखद संकेत है.

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डॉ मालती गुप्ता मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ (फोटो क्रेडिट्स - उमा)

वह दिन मेरे लिए यादगार था जब पहली बार पंचायत परिसर में सरपंच के रूप में मैंने घूंघट हटाया. यह घटना उस दिन की है जब राजस्थान की बुआजी हमारे गांव आई. मैं कुछ महिला साथियों के साथ उनसे मिलने पहुंची. बुआजी ने घूंघट हटाने को बार-बार बोला. हम बुआजी को पुरुषों की भीड़ से एक तरफ ले गए.उन्हें बहुत समझाया. हमारे साथ बैठे पुरुषों ने कहा भी कि ये हमारी परंपरा है. पर बुआजी नहीं मानी.पहले दिन हमें बहुत लाज आ रही थी.पर हमें हिम्मत आई और पुरुषों के सामने बैठ कर बात की.यह घटना है नीमराणा के घीलोठ गांव की. इस घटना ने गांव का माहौल बदल दिया. इस गांव की पूर्व सरपंच सीमा देवी चौहान यह बात कहते हुए गर्व महसूस कर रही थी. इस घटना के बाद से ही यहां लगभग सभी महिलाएं घूंघट हटा कर स्वाभिमान से जिंदगी जी रहीं हैं. पूरे प्रदेश में बुआजी के रूप में चर्चित यह समाजसेवी डॉ. मालती गुप्ता हैं. पेशे से प्लास्टिक सर्जन डॉ. मालती गुप्ता पिछले कई वर्षों से घूंघट प्रथा मुक्त समाज को लेकर मिशन चला रहीं हैं.
                   
जयपुर के सबसे प्रतिष्ठित सरकारी अस्पताल सवाई मानसिंह हॉस्पिटल की हेड और प्लास्टिक सर्जन रहीं डॉ मालती जॉब से चाहे रिटायर हो गई लेकिन समाज सेवा का यह जूनून बरक़रार है. डॉ मालती गर्व से कहती हैं-" महिलाओं की सोच और परंपरागत रूढ़ियों से बाहर निकलने लगीं हैं. मैं हर आयोजनों और दूसरी यात्राओं में घूंघट प्रथा मुक्त समाज की कल्पना को साकार करने के लिए महिलाओं को प्रेरित करती हूं.लेकिन मुझे लगता है कि पुरुष समाज को अभी भी काउंसलिंग करने कि जरूरत है."

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घूंघट प्रथा मुक्त समाज अभियान के बाद आयोजनों में कई महिलाओं ने घूंघट नहीं किया  (फोटो क्रेडिट्स - उमा)

उत्तर भारत में मुग़ल कालीन और फिर अंग्रेज़ों के राजपाट होने से महिलाओं को बुरी नज़र से बचने के लिए घूंघट प्रथा की शुरुआत हुई. जबकि हमारे पुराणों,ग्रंथों में कहीं भी पर्दा या घूंघट प्रथा का ज़िक्र नहीं है. यही कारण किसी भी युग में पर्दा प्रथा नहीं रही. हमारे देवी की मूर्तियों को कहीं भी घूंघट में चित्रित नहीं किया गया.ये हमारी संस्कृति नहीं है. महिलाओं को कुछ-कुछ बात को समझने लगीं और घूंघट कहीं थोड़ा कम हुआ तो कहीं सिर पर पल्ला बनकर रह गया.यह सुखद संकेत है.               

अपने पेशे डॉक्टरी में जहां वे कई सम्मान से नवाजी जा चुकी हैं, महिलाओं की सोच और घूंघट प्रथा मुक्त समाज के लिए काम कर रही डॉ. मालती को कई सामाजिक संगठन भी सम्मानित कर चुके हैं.पहली बार उन्होंने इस अभियान की शुरुआत साल 2016 से नीमराणा के घीलोठ गांव से की थी,जो लगातार जारी है. इसके बाद से अब तक बड़ी संख्या में महिलाओं ने घूंघट करना बंद कर दिया. डॉ. मालती आगे बताती हैं -" घूंघट प्रथा को लेकर ग्रामीण इलाकों में ज्यादा रूढ़ियां बनी हुई हैं. इस प्रथा को लेकर पुरुषों की दलील रहती है कि यह संस्कार हैं और इसके हटाने से मर्यादा टूट जाएगी. इसी मानसिकता को लेकर ही पुरुषों को काउंसलिंग कि जरूरत है. जो मैं लगातार कर रहीं हूं."

जयपुर यूनिवर्सिटी की छात्रा और प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रही पूजा चौहान कहती है-" बुआजी ने कई गांव को सिर्फ घूंघट प्रथा से मुक्त नहीं किया बल्कि औरतों को खुला आसमान देखने का अवसर दिया. अब राजस्थान के कई गांव में पर्दा प्रथा को लेकर सोच बदल रखी है. "

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 घूंघट प्रथा छोड़ चुकी महिलाएं (फोटो क्रेडिट्स - उमा)

घूंघट प्रथा मुक्त समाज के अलावा वे कई दूसरे कामों में भी जुटी हैं.अपने पिता और स्वतंत्रता संग्राम सैनानी कशीराम गुप्ता कि स्मृति में कई आयोजन करवातीं हैं. मुख्य मंत्री अशोक गहलोत के हाथों सम्मानित डॉ मालती को अलवर में भी भामाशाह पुरस्कार से नवाजा जा चुका है.अपने पिता और स्वतंत्रता संग्राम सैनानी कशीराम गुप्ता कि स्मृति में कई आयोजन करवातीं हैं. उन्हें लाइव टाइम अचीवमेन्ट अवार्ड सहित कई अन्य पुरस्कार मिल चुके हैं.

रिपोर्टर - उमा 

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