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हमारे देवी की मूर्तियों को कहीं भी घूंघट में चित्रित नहीं किया गया. ये हमारी संस्कृति नहीं है. महिलाओं को कुछ-कुछ बात को समझने लगीं और घूंघट कहीं थोड़ा कम हुआ तो कहीं सिर पर पल्ला बनकर रह गया.यह सुखद संकेत है.
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