तक़दीर सिर्फ़ हाथों की लकीरों में ही नही लिखी होती. हिम्मत और हौसला किसी भी मुश्किल से बड़ा होता है और मुश्किलों को हरा ही देता है. यही हौसला और हिम्मत ताकत है ममता की . यही ममता अब दसवीं की परीक्षा दे रही है. खरगोन जिले के करही के पास गांव वणी की ममता टटवारे उन बच्चों के लिए मिसाल हैं जो थोड़ी बहुत परेशानियों से घबरा कर हताश हो जाते हैं. ममता बचपन से एक ऐसी लाइलाज बीमारी से पीड़ित है जिसमें कुछ सालों में ही दोनों हाथ गल गए. पैरों ने चलना भी बंद कर दिया.
लेकिन जिस हिम्मत और हौसले की बात शुरू में हुई थी, उसी के दम पर कोनी से पेन पकड़ कर पेपर हल कर कॉपी में लिख रही है. वह घुटनों के बल चलती है और कोनी से लिखती है. खेत मजदूर पिता कैलाश टटवारे और कुसुम बाई ने बताया- " ममता दूसरे बच्चों की तरह ही जन्मी.हमारी इकलौती के जन्म के समय बहुत खुशियां मनाई. छह महीने में ही उसके दोनों हाथ गलने लगे. चलना भी बंद हो गया. 15 साल से इलाज कराया लेकिन ,कोई फर्क नहीं पड़ा. " वे आगे बताते हैं -" परिवार ने बेटी को हौसला दिया. करही के एक निजी स्कूल में एडमिशन दिलवा दिया. स्कूल ने ममता की पढाई में इच्छा और हिम्मत देख निःशुल्क पढाई की व्यवस्था कर दी. "
दसवीं की परीक्षा देती हुई ममता (फोटो क्रेडिट : खुशबू डाकोलिया,करही)
एमवाय हॉस्पिटल की प्रोफेसर और न्यूरोलॉजिस्ट डॉ अर्चना वर्मा ने बताया "यह रेयर डिसीज़ में आती है. लाखों लोगों किसी एक को हो जाती है. इसे टैट्रा एमिलिया नाम की इस बीमारी में ब्लड सर्क्युलेशन कई हिस्सों में नहीं हो पता है. जिससे शरीर का वह हिस्सा बेकार होकर गल जाता है. हालांकि एक उम्र के बाद यह नहीं गलत.ममता की हिम्मत सराहनीय है."
ममता बताती है - "मैं शुरू में उदास थी. दूसरे बच्चों को दौड़ते-भागते देख उसे भी कुछ करने की इच्छा हुई. मन में अच्छी पढाई करने की ठानी. मैं टीचर या डॉक्टर बनना चाहती हूं.मई सहानुभूति नहीं बल्कि प्रोत्साहन चाहती हूं "हर मुश्किल को पार करती हुई ममता आज दसवीं में आ गई. स्कूल की प्रिंसिपल मेरी जोजू बताती है -"गांव वणी में ममता के परिवार से मिले तो उनकी लगन देख निःशुल्क पढ़ाने का निर्णय स्कूल प्रबंधन ने तत्काल ले लिया. मैं खुद ममता पर ध्यान देकर प्रोत्साहित करतीं हूं."
घर पर पढ़ती हुई ममता (फोटो क्रेडिट : खुशबू डाकोलिया, करही)