विश्व थैलेसीमिया डे: 'थैलेसीमिया मुक्त भारत 25'

अनुवांशिक बीमारी के लिए भारत में भी 4 प्रतिशत लोग अभी भी केरियर बने हुए हैं. केवल भारत में ही एक लाख लोग इस थैलेसीमिया बीमारी से रोज जूझ रहें हैं. 'लेट्स मेक इंदौर एंड इंडिया थैलेसीमिया फ्री 25' के मिशन इसी उम्मीद का नाम है.

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Chacha nehru hospital

चाचा नेहरू अस्पताल में स्पेशल वार्ड

"लगभग 28 साल पहले एक रद्दी वाले ने मेरी ज़िंदगी की सोच और जीवनशैली बदल कर रख दी. उसने मुझसे अपने बेटे के दिल में छेद होने और ऑपरेशन के लिए मदद मांगी. राशि इतनी बड़ी थी कि मुझ अकेली के लिए के लिए संभव नहीं था. मेरी एक मित्र के साथ मिलकर उनका सहयोग किया. ऑपरेशन सफल हो गया. लेकिन मुझे उस रात नींद नहीं आई. सोचती रही हमारे शहर में और देश में ही कितने लोग होंगे जो ऐसी बिमारियों से परेशान होंगे. उनके पास इलाज का पैसा तक नहीं होगा.यह मेरी ज़िंदगी और सोच का टर्निंग पॉइंट था. इसके बाद मैंने इन 28 सालों में सैकड़ों लोगों ख़ासकर बच्चों का इलाज करवा अपना जीवन समर्पित कर दिया." पिछले लगभग तीन दशक से थैलेसीमिया जैसी घातक बीमारी के खिलाफ अलख जगाने वाली इंदौर शहर की डॉ. रजनी भंडारी ने कहते हुए भावुक हो गईं. 

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डॉ. रजनी भंडारी

देश के साथ विश्व में थैलेसीमिया जैसी बीमारी के प्रति जागरूक करने के लिए विश्व थैलेसीमिया दिवस मनाया जाता है. इस अनुवांशिक बीमारी के लिए भारत में भी 4 प्रतिशत लोग अभी भी केरियर बने हुए हैं. केवल भारत में ही एक लाख लोग इस थैलेसीमिया बीमारी से रोज जूझ रहें हैं. लोग दम तोड़ रहे हैं.लगभग दस हजार नए बच्चे इस बीमारी के साथ रोज जन्म भी ले रहें हैं.ऐसे हालातों में समाजसेवियों का थैलेसीमिया बीमारी के खिलाफ मिशन नई उम्मीद जगा रहा. 

केवल बीमार के शरीर में खून चढ़ाना और रोज मेडिसिन खाना ही विकल्प है.डॉ रजनी आगे बताती हैं -" शुरुआत में थैलेसीमिया को लेकर कोई खास योजनाएं न सरकार के पास थी और न इलाज के लिए कोई सुविधा. उस समय छह बच्चों को एजेरिक्स बी के इंजेक्शन लगवाना भी कठिन था. संस्था ने मदद की. इसके बाद इस मिशन को सफल बनाने के लिए थैलेसीमिया एंड चाइल्ड वेलफेयर ग्रुप बनाया.इसके साथ पहले मूवमेंट अगेंस्ट थैलेसीमिया भी चलाया. इस ग्रुप द्वारा अब कई सुविधा और सेवाएं जरूरतमंदों तक पहुंचाने में जुटे हैं. "

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सरकारी अस्पताल में बीमार बच्चे को गिफ्ट बांटती समाजसेवी डॉ रजनी व साथी 

इंदौर के सरकारी चाचा नेहरू अस्पताल में 2002 में एक स्पेशल वार्ड शुरू किया. लेकिन सरकारी उलझनों की वजह से दस साल ये फिर बंद पड़ा रहा. ग्रुप ने फिर प्रयास किया और इसे शुरू करवाया. इस स्पेशल वार्ड में थैलेसीमिया के बच्चों का इलाज सरकारी स्तर किया जा रहा है. यहां फ़िलहाल 250 बच्चे रजिस्टर्ड हैं.इनका मुफ्त इलाज होता है. ग्रुप की संस्थापक डॉ.रजनी बताती हैं -" यहां कई बार बच्चों को एक महीने से ज्यादा टाइम तक एडमिट रहना पड़ता है. बच्चे अपना टाइम मोबाइल देखने में लगाते हैं. यह बीमार बच्चे की आंखों के लिए खतरा है. मैंने यहां एक लाइब्रेरी खुलवाई. बच्चों के स्तर की पुस्तकें रखवाईं. इसके बाद सुपर स्पेशलिटी वार्ड में भी एक लाइब्रेरी खोली. 500 किताबों की यह लाइब्रेरी को नर्स स्टाफ दिलीप,अरविन्द और कल्पना संभाल रहें हैं.इससे बच्चों का मन लगने लगा."

पीएम और सीएम को भेजे सुझाव

अनुवांशिक बीमारी होने के कारण इसकी रोकथाम और थैलेसीमिया मुक्त भारत बनाने के लिए ग्रुप ने खास सुझाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजे हैं. डॉ. रजनी कहती हैं -" जिस बीमारी का नतीजा मौत हो उसके लिए कदम उठाना जरुरी है. मैंने पीएम मोदी को विवाह पंजीयन के साथ थैलेसीमिया स्टेटस रिपोर्ट को अनिवार्य करने के लिए सुझाव दिया. यदि कपल में एक की बॉडी में जींस केरियर मिले तो प्रिग्नेंसी में भी लेडी का टेस्ट करवाना चाहिए. यदि गर्भ में जींस मिले तो सुरक्षित अबॉर्शन करवाना चाहिए. इस बीमारी का कोई स्थाई इलाज नहीं है. मैंने सीएम शिवराज सिंह चौहान को भी सुझाव भेजा जिसमें प्रिग्नेंट महिला की दूसरी जांचों के साथ थैलेसीमिया की जांच को भी अनिवार्य करने को कहा है. इसमें भी वही प्रक्रिया अपनाने की बात कही." 

इन दिनों डॉ. रजनी 55 कॉलेज और दूसरी शैक्षणिक संस्थाओं में युवाओं को  थैलेसीमिया की जांच करवा कर ही शादी करने की शपथ दिलवा रहीं हैं.इसका असर भी दिखने लगा है. चालीस से ज्यादा प्रतिष्ठित अवार्ड्स प्राप्त वे जागरूकता के लिए मैगज़ीन भी प्रकाशित करती हैं. साल में 8 मई और 14 नवंबर को मुफ्त में कैंप भी लगवाती हैं. जिला प्रशासन की ओर से इंदौर शहर में रणजीत हनुमान मंदिर और खजराना गणेश मंदिर परिसर में भी सेंटर बनाए गए. यहां रेड क्रॉस की सहायता से जरूरतमंदों को मुफ्त दवाइयां दी जा रही.

इंदौर डॉ. रजनी भंडारी विश्व थैलेसीमिया दिवस चाइल्ड वेलफेयर ग्रुप