प्यास लगी हो, कपड़े-बर्तन धोना हो, या सफाई करनी हो, पलक झपकते ही नल चालू, और पानी आने लगता है. पर इस बुनियादी सहूलियत से आज भी कई गांव मीलों दूर हैं. कुछ ऐसा ही हाल बुंदेलखंड के कोइलीहाई गांव का है. सूखाग्रस्त होने की वजह से पानी लेने कई मीलों दूर जाना पड़ता है. जिसकी वजह से रोज़गार पर ध्यान देना मुश्किल था, हाथों में भारी मटकों से निशान पड़ गए. सरकार से मदद न मिली, और न ही खुद कुछ समाधान ढूंढ पा रहे थे. पानी की किल्लत से तंग आकर, कोली दलित महिला चमेला ने हालात बदलने का सोचा. चमेला हर दिन दूर के कुएं तक पैदल चलते-चलते थक चुकी थी. एक दिन उनका ध्यान पास के एक जंग खा चुके हैंडपंप पर गया जो तीन साल से खराब था. चमेला ने हैंडपंप को ठीक करने का फैसला लिया.
आसपास के गांवों में हर कोई उन्हें एकमात्र महिला हैंड-पंप मैकेनिक के रूप में जानता है. यह उन शुरुआती दिनों से बहुत अलग है जब लोग कहते थे, "छोटी जाति की औरत कैसे हैंड-पंप सुधारना जानेगी, ये तो बस गोबर उठा सकती है." शुरुआत में, चमेला के पति ने भी सोचा की ये इतना भारी हैंड-पंप कैसे उठाएगी, सुधारना तो दूर की बात. सभी ने उनकी क्षमता पर संदेह किया, लेकिन उन्होंने जल्द ही सबका शक दूर कर दिया. चमेला ने सोचा अगर वे रोज़ कटी हुई लकड़ी के 75 किलो के एक दर्जन बंडल उठा सकती है, तो हैंडपंप क्यों नहीं?
एक बार चमेला को ग्राम प्रधान के घर के पास हैंडपंप ठीक करने के लिए भवारी गांव बुलाया गया. चमेला ने बड़ी सावधानी से कदम आगे बढ़ाया, ताकि हैंड-पंप के चारों ओर बना अदृश्य घेरा पार न हो जाए. कोली दलित होने की वजह से, चमेला गाँव के किसी 'बामन' (ब्राह्मण) का जाने-अनजाने अपमान नहीं करना चाहती थी. प्रधान को जल्द ही एहसास हो गया कि वह दलित है. चिल्लाते हुए प्रधान ने आदेश दिया, "सुनो, सुनो, हमारे हैंडपंप को मत छुओ. तुम एक कोली चमार (दलित) हो, फ़ौरन चली जाओ . ' चमेला ने प्रधान के जाते ही हैंडपम ठीक किया. पंप पिछले पांच साल से खराब था और इसके चारों ओर मल जमा हो गया था. बामन देखने आया तो चमेला ने कहा, "'मेरे घर का आंगन आपके घर से कहीं ज्यादा साफ है, मिस्टर.
ऐसी ही मिलती-जुलती कहानी चित्रकूट की राजकुमारी की है. वे भी हैंडपंप मैकेनिक है. गांव के ऊंची जाति के पुरुषों ने उनका विरोध किया और उनके काम करने पर पाबंदी लगाने की कोशिश की. फिर, गांव की महिलाओं ने उनका साथ दिया, वे समूह बनाकर एकजुट हुई, हाथ में पाना लिए साड़ी का पल्लू फहराती हुई गई और पुरुषों के सामने गांव में दो बोरवेल खोद दिए.
बुंदेलखंड इलाके में लम्बे समय से चली आ रही पानी की समस्या हर चनाव का मुद्दा बनी, पर वादों से आगे कुछ समाधान नहीं निकला. हस्ते हुए एक कम उम्र की दुल्हन कहती है, "मुझे पता होता तो, बुंदेलखंड में कभी शादी न करती. " पानी इस्तेमाल तो सभी करते हैं, पर पानी भरने की ड्यूटी केवल महिलाओं की रहती है. इसी वजह से इस समस्या को महिलाओं की समस्या समझकर अनदेखा कर दिया जाता है. महिलाओं की समझी जाने वाली इस समस्या का समाधान खुद महिलाओं ने निकाला. उठती उंगलियों और जाति के सवालों से लड़ते हुए, वे कर दिखाया जो ऊंची जाति के पुरुष और नेता भी पूरा करने में असमर्थ थे.