गीता प्रेस के 100 साल: कोविड के बाद रिकॉर्ड बिक्री

कोरोना काल के बाद धार्मिक पुस्तकें ख़ास कर गीता, रामचरित मानस, शिव पुराण और भागवत जैसी पुस्तकों की बिक्री में दोगुना इजाफा हुआ. कोरोना में लाखों रुपए खर्च करने के बाद भी अपने प्रियजनों को खोने के दुःख ने लोगों को अध्यात्म की ओर सोचने पर विवश कर दिया.

New Update
sales of religious books increased after covid19

शॉप पर कामकाज संभालते प्रबंधक गुलशन शर्मा (फोटो क्रेडिट : रविवार विचार)

लगातार हर क्षेत्र में बढ़ती महंगाई और चीज़ों के बढ़ते दाम के बाद भी आपको अभी भी केवल 2 रुपए में सबसे चर्चित हनुमान चालीसा और केवल एक रुपए में गीता का सार पढ़ने के लिए साहित्य उपलब्ध हो जाएगा. यह आज नहीं बल्कि पिछले सौ सालों से चली आ रही एक धार्मिक सेवा है ,जिसका सदुपयोग धार्मिक आस्थाओं में रखने और पुस्तकें पढ़ने वाले कर रहे हैं. यह साहित्य इतना सस्ता उपलब्ध करवा पाना बड़ी चुनौती है.लेकिन पूरे देश में केवल यह काम गीता प्रेस,गोरखपुर कर रही जो जिसका नाम सबकी ज़ुबान पर है. सौ साल पूरे होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ट्वीट कर प्रेस को बधाई दी.इस समय पूरे देश में 21 अधिकृत प्रतिष्ठान और 50 रेलवे स्टॉल लगे हुए हैं.यहां तक कि नेपाल में भी गीता प्रेस की शॉप उपलब्ध है.      

sales of religious books increased after covid19 

गीता प्रेस गोरखपुर की इंदौर की शॉप पर रखीं धार्मिक पुस्तकें (फोटो क्रेडिट : रविवार विचार) 

समय के साथ इस काम का जिम्मा ट्रस्ट ने संभाला. लगभग आठ साल पहले कुछ षड्यंत्र के तहत इस प्रेस और कर्मचारियों के मेहनताना विवाद को बढ़ा-चढ़ा कर मिडिया में लाया गया. इस प्रेस के बंद होने की आशंका जताई गई.जो गलत साबित हुई. कई लोगों ने इस प्रेस को बचाने के लिए करोड़ों रुपए की सहायता की पहल की, लेकिन ट्रस्ट ने अभी तक एक रुपए का चंदा या सहयोग राशि नहीं ली. वर्तमान में आकंड़ों के अनुसार कोरोना काल के बाद धार्मिक पुस्तकें ख़ास कर गीता, रामचरित मानस, शिव पुराण और भागवत जैसी पुस्तकों की बिक्री में दोगुना इजाफा हुआ. कोरोना में लाखों रुपए खर्च करने के बाद भी अपने प्रियजनों को खोने के दुःख ने लोगों को अध्यात्म की ओर सोचने पर विवश कर दिया. उस दौरान चर्चित रामायण सीरियल का प्रसारण और हाल ही कुछ सालों में धार्मिक कथाओं के आयोजनों, धर्म के प्रचार का भी असर यह हुआ कि धार्मिक पुस्तकों की रिकॉर्ड बिक्री हुई. 

गीता प्रेस गोरखपुर की स्थापना और प्रकाशन का इतिहास भी उतना ही दिलचस्प है. साल 1923 में जयदयाल  गोयन्दका और हनुमान प्रसाद ने एक प्रकाशक से गीता को छपवाया. उन्होंने देखा कि प्रकाशन के बाद कई जगह वर्तिनी और दूसरी गलतियां थी. जयदयाल और हनुमान प्रसाद पोद्दार ने तय किया कि इसे खुद अच्छे से प्रकाशित करनी होगी. और इसी सोच के साथ गोरखपुर में दस रुपए महीने के एक कमरे को किराए पर लेकर गीता को प्रकाशित की. और इस तरह गीता प्रेस की नींव रख दी गई. धीरे-धीरे धार्मिक सेवा की सोच लेकर लागत मूल्य से भी काम दाम पर पाठकों और श्रद्धालुओं को पुस्तकें उपलब्ध करवाना शुरू कर दी. इस टीम में साथी रामसुख दास महाराज भी जुड़े. इन विद्वानों की टिका को लोग बड़े रोचक ढंग से पढ़ते हैं. 

sales of religious books increased after covid19

शॉप पर खरीदारी करती भाविका पारखे (फोटो क्रेडिट : रविवार विचार) 

इंदौर के गीता प्रेस प्रतिष्ठान के प्रबंधक गुलशन शर्मा कहते हैं - " इस समय साढ़े 23 सौ से ज्यादा अलग-अलग भाषाओं में धार्मिक पुस्तकें प्रकाशित की जा रहीं हैं. इनमें रामचरित मानस,गीता, शिव पुराण जैसी पुस्तकें छाप रहीं हैं. कल्याण पत्रिका भी इसी प्रेस की देन है. प्रदेश में ही सालाना कारोबार साढ़े तीन करोड़ से बढ़ कर लगभग 7 करोड़ तक पहुंच गया.साथ ही पूरे देश में यह कारोबार लगभग 110 करोड़ रुपए तक हुआ. मैं खुद इस प्रतिष्ठान पर 22 सालों से सेवाएं दे रहा हूं. मेरे साथ महेश लोधी और संतोष पाटिल सहयोगी भी हैं. " 

इस अध्यात्म की बढ़ती प्रवृति का असर सबसे ज्यादा युवाओं पर भी पड़ा. प्रबंधक गुलशन शर्मा आगे बताते हैं -" आजकल युवा पीढ़ी भी पुस्तकों को बड़ी रूचि से खरीद कर पढ़ रहीं हैं." इंदौर की भाविका पारखे आधुनिक विचारों की समर्थक है. वे एक निजी कंपनी में जॉब करतीं हैं. बावजूद भाविका कहती हैं -" मैं आधुनिक विचारों के साथ अध्यात्म में रुझान रखती हूं. भारतीय सभ्यता और संस्कृति बेहद खूबसूरत है.हमारे पौराणिक इतिहास में श्रीराम हों या श्रीकृष्ण, चरित्र हमें जीने की राह दिखाते हैं. "

लगातार पेपर के दाम बढ़ने के बाद भी इस प्रेस से प्रकाशित पुस्तकें जैसे रामायण आज भी केवल साढ़े आठ सौ रुपए में उपलब्ध हो जाती है. जिसकी बाहर कीमत अनुमानित ढाई हजार होगी. प्रतिष्ठान पर पहुंचे युवा रेनु रेगी कहते हैं - "व्यक्ति कितना भी आधुनिक हो जाए, लेकिन हम अपनी संस्कृति से अलग नहीं हो सकते. मेरे परिवार में सभी लोग भी धार्मिक पुस्तकों को पढ़ना पसंद करते हैं. गीता प्रेस कारोबार नहीं बल्कि धार्मिक संस्कृति को बचाने में लगी है."

साल 1923 यानि हिन्दू कैलेण्डर अनुसार वैशाख शुक्ल त्रियोदशी संवत 1980 में इसकी शुरुआत हुई. पिछले साल पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, राज्यपाल आनंदी बेन पटेल और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यहां आयोजन में शामिल हुए और सचित्र रामचरित  मानस के नए संस्करण का विमोचन किया था. 

इंदौर रामायण धार्मिक पुस्तक गीता प्रेस अध्यात्म शिव पुराण रामचरित मानस भागवत